कंचनपुर ट्रेनिंग सेंटर के पास पहाड़ों का सीना छलनी — पंचायत की कथित अनुमति पर ठेकेदार का अवैध उत्खनन, खनिज विभाग लापता
सरपंच–सचिव–रोजगार सहायक की मिलीभगत से अवैध खनन, प्रशासन की चुप्पी से ठेकेदारों के हौसले बुलंद — पर्यावरण और सरकारी संपत्ति पर मंडराने लगा गंभीर खतरा
सुधीर यादव (9407070722)
शहडोल ।जिले के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत कंचनपुर एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला अत्यंत गंभीर है — सरकारी ट्रेनिंग सेंटर परिसर के पास पहाड़ नुमा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मिट्टी और मुरुम के अवैध उत्खनन का। चौंकाने वाली बात यह है कि यह पूरा काम पंचायत की कथित लिखित अनुमति पर किया जा रहा है, जबकि कानूनी रूप से किसी ग्राम पंचायत को इस तरह के खनन की अनुमति देने का अधिकार ही नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, कंचनपुर पंचायत के सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक ने एक ठेकेदार को लिखित अनुमति जारी कर दी, जिसके बाद वहां पोकेलैंड मशीनें, जेसीबी और डंपर धड़ल्ले से दौड़ने लगे। पहाड़ी क्षेत्र का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है — जो कभी प्राकृतिक हरियाली और ऊँचाई से सुसज्जित था, अब वहां खड्डे और कटे हुए पहाड़ दिखाई देते हैं।
कानून की खुली अवहेलना, पंचायत का आदेश अवैध
खनिज विभाग के नियमानुसार, किसी भी क्षेत्र में मिट्टी, मुरुम या पत्थर का उत्खनन केवल विभागीय अनुमति से ही किया जा सकता है। परंतु इस मामले में ग्राम पंचायत ने अपने स्तर पर ठेकेदार को अनुमति पत्र जारी किया, जो स्पष्ट रूप से खनिज नियमों और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन है।
वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि पंचायत की यह “अनुमति” पूरी तरह अवैध है और इसे देने के पीछे भारी लेनदेन की बू आ रही है। सवाल यह उठता है कि जब पंचायत को खनन का अधिकार ही नहीं है, तो फिर सरपंच और सचिव ने यह आदेश किस आधार पर दिया?
प्रशासन और खनिज विभाग की भूमिका संदिग्ध
इस पूरे प्रकरण में खनिज विभाग की भूमिका सबसे ज्यादा संदिग्ध मानी जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि खनिज अधिकारी न तो मौके पर पहुंचे, न ही कोई निरीक्षण किया। कई बार ग्रामीणों ने शिकायत की, लेकिन विभाग ने चुप्पी साध ली। ऐसा लगता है कि जिले में खनिज विभाग का अस्तित्व कागजों तक सीमित रह गया है।
वहीं, प्रशासन भी इस मुद्दे पर पूरी तरह मौन है। अधिकारियों की उदासीनता से ठेकेदारों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे अब रातों में भी मशीनें चलवा रहे हैं। सरकारी भूमि और पहाड़ों की परतें रोजाना ट्रकों में भरकर बेची जा रही हैं, जबकि सरकारी तंत्र हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
पर्यावरण पर गहरा संकट, भू-स्खलन और जलस्तर में गिरावट का खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह का अवैध उत्खनन पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है।
पहाड़ काटने से न केवल भू-स्खलन का खतरा बढ़ता है, बल्कि भूजल स्तर भी गिरने लगता है।
इसके अलावा, सरकारी ट्रेनिंग सेंटर जो पास ही स्थित है, उसकी भवन संरचना की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई है।
स्थानीय निवासी रामदास बैगा ने बताया —
“पहले यहां हरा-भरा पहाड़ी इलाका था। अब मशीनों ने पूरी जमीन खोद डाली है। बारिश में मिट्टी बहकर ट्रेनिंग सेंटर की ओर आ जाती है। यह सब अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है।”
लाखों रुपये का खनिज रोज निकल रहा है – किसके संरक्षण में?
जानकारों के अनुसार, यहां प्रतिदिन सैकड़ों ट्रॉली मुरुम निकाली जा रही है। इसका बाजार मूल्य लाखों में है। ग्रामीणों का आरोप है कि यह खनिज खुलेआम बेचा जा रहा है और राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
गांव के एक पूर्व जनप्रतिनिधि ने बताया —
“एक महीने में यहां पूरी पहाड़ी गायब हो रही है। ठेकेदार खुलेआम काम कर रहा है। पंचायत की अनुमति दिखाकर सब वैध बताया जा रहा है, जबकि असल में यह अपराध है।”
त्रिकोणीय मिलीभगत का खुलासा – पंचायत + ठेकेदार + विभाग
मामले की गहराई में जाएं तो यह साफ नजर आता है कि यह पूरा प्रकरण त्रिकोणीय मिलीभगत का परिणाम है। पंचायत अनुमति देती है, ठेकेदार उत्खनन करता है, और विभाग आंखें मूंद लेता है।
यह प्रणाली अब भ्रष्टाचार के एक नए मॉडल के रूप में उभर रही है, जिसमें गांव से लेकर जिले तक सबका हिस्सा तय होता है।
ग्रामीणों का आक्रोश, कार्रवाई की माँग
ग्रामीणों ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की माँग की है। उनका कहना है कि यह सिर्फ अवैध खनन नहीं, बल्कि सरकारी संपत्ति और पर्यावरण पर हमला है।
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो वे जिला मुख्यालय पर धरना देंगे।
ग्रामीण महिला शांति बाई कोल ने बताया —
“हमारे बच्चों का भविष्य दांव पर है। यहां ट्रेनिंग सेंटर है, लेकिन अब पूरा इलाका धूल और गड्ढों में बदल गया है। अधिकारी बस कागजों में जांच करते हैं, असल में कोई कुछ नहीं करता।”
कानूनी पहलू – पंचायत की अनुमति अवैध
कानूनी जानकारों के अनुसार, पंचायत राज अधिनियम 1993 के तहत ग्राम पंचायत को केवल सार्वजनिक निर्माण कार्यों में उपयोग हेतु सीमित मात्रा में मिट्टी उपयोग करने की अनुमति होती है, वह भी खनिज विभाग की स्वीकृति के बाद।
लेकिन यहां पंचायत ने स्वतंत्र रूप से ठेकेदार को खनन की अनुमति दी, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 379 (चोरी) और खनिज अधिनियम 1957 की धारा 4/21 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
प्रशासन कब जागेगा?
अब सवाल प्रशासन से है —
क्या कंचनपुर पंचायत ने खनन की अनुमति देकर अपने अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया?
क्या खनिज विभाग ने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी?
और सबसे बड़ा सवाल — लाखों रुपये के इस अवैध खनन से किसे लाभ पहुंचाया जा रहा है?
यदि अब भी प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की, तो आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र न केवल पर्यावरणीय रूप से बर्बाद होगा, बल्कि सरकारी संस्थानों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी।
HEH की माँग
HEH प्रशासन से मांग करता है कि:
1. कंचनपुर पंचायत द्वारा जारी लिखित अनुमति की जांच की जाए।
2. ठेकेदार, सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक के विरुद्ध तत्काल एफआईआर दर्ज हो।
3. खनिज विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की जांच की जाए।
4. ट्रेनिंग सेंटर के पास खनन रोककर पर्यावरण बहाली कार्य तत्काल शुरू किया जाए।
अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि —
कंचनपुर की यह कहानी सिर्फ एक पंचायत की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का आईना है जहां अवैधता को सरकारी अनुमति का कवच पहनाकर वैध बना दिया जाता है। जब तक शासन सख्ती नहीं दिखाएगा, तब तक पहाड़ कटते रहेंगे और व्यवस्था यूं ही खामोश रहेगी।