जनहित के भवन पर जमीन का पेच: शासकीय भूमि को निजी बताने पर उठा सवाल, पारदर्शिता की कसौटी पर राजस्व तंत्र

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जनहित के भवन पर जमीन का पेच: शासकीय भूमि को निजी बताने पर उठा सवाल, पारदर्शिता की कसौटी पर राजस्व तंत्र
ढीमरखेड़ा/कटनी।। ढीमरखेड़ा जनपद पंचायत के बहुप्रतीक्षित नवीन जनपद भवन निर्माण को लेकर उत्पन्न भूमि विवाद ने शासकीय भूमि की वास्तविक स्थिति, राजस्व अभिलेखों की विश्वसनीयता और अवैध कब्जों के बढ़ते मामलों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा दो माह पूर्व बड़वारा में आयोजित कार्यक्रम के दौरान लगभग सवा पाँच करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले नवीन जनपद भवन का भूमिपूजन किया गया था। लेकिन भूमिपूजन के बाद भी आज तक निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं हो सका है। दरअसल, जिस महात्मा गांधी खेल मैदान को क्षेत्रवासी वर्षों से लीज वाली शासकीय भूमि मानते आए हैं, उसी भूमि पर भवन निर्माण प्रस्तावित था। जब ठेकेदार द्वारा निर्माण कार्य शुरू करने की प्रक्रिया की गई, तब राजस्व अमले की ओर से उक्त भूमि को निजी बताया गया। इस जानकारी के सामने आते ही ग्रामीणों में असमंजस और आक्रोश की स्थिति बन गई।
भूमि को निजी बताए जाने के विरोध में भाजपा और कांग्रेस के जनप्रतिनिधि एकजुट होकर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व (एसडीएम) निधि गौतम से मिले। जनप्रतिनिधियों का कहना था कि वर्षों से शासकीय उपयोग में रही भूमि अचानक निजी कैसे हो सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि राजस्व अभिलेखों में गोलमोल कर शासकीय भूमि की स्थिति बदली गई है, जिसकी निष्पक्ष और विस्तृत जांच आवश्यक है। जनप्रतिनिधियों ने यह भी स्पष्ट किया कि नवीन जनपद भवन का निर्माण जनहित से जुड़ा विषय है और इसे मुख्यालय स्थित महात्मा गांधी खेल मैदान में ही बनाया जाना चाहिए।
ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने इस अवसर पर एक और गंभीर मुद्दा उठाया। उनका आरोप था कि क्षेत्र में शासकीय भूमि और वन भूमि पर धड़ल्ले से अवैध कब्जे हो रहे हैं। दूसरे जिलों से आकर लोग जंगल की जमीन पर पेड़ काटकर खेती कर रहे हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचने के साथ-साथ शासकीय संपत्ति भी नष्ट हो रही है। उन्होंने प्रशासन से इस पर तत्काल रोक लगाने और दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की।
जनपद पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सुनीता संतोष दुबे ने भी इस विषय में एसडीएम को पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है। पत्र में उल्लेख किया गया है कि शासन द्वारा नवीन जनपद भवन के लिए प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है और संबंधित खसरा नंबर 86 एवं 87 की भूमि को पूर्व में पटवारी प्रतिवेदन के आधार पर शासकीय बताते हुए राजस्व अभिलेखों में दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसके बावजूद वर्तमान में उसी भूमि को निजी बताए जाने से जनहित का कार्य अधर में लटक गया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए एसडीएम निधि गौतम ने तहसीलदार से समस्त दस्तावेजों और अभिलेखों की जांच कर वास्तविक स्थिति स्पष्ट करने का आश्वासन दिया है। साथ ही वन भूमि पर अवैध कब्जे और पेड़ों की कटाई के मामलों में वन विभाग से रिपोर्ट लेकर नियमानुसार कार्रवाई करने की बात कही है।
उल्लेखनीय है कि ढीमरखेड़ा जनपद पंचायत का वर्तमान भवन जर्जर और अनुपयुक्त है, जिससे अधिकारियों, कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों को लंबे समय से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण पिछले दो दशकों से नवीन भवन की मांग कर रहे थे। ऐसे में भवन निर्माण से जुड़ा भूमि विवाद केवल एक प्रशासनिक मसला नहीं, बल्कि जनहित, विकास और शासन की पारदर्शिता से जुड़ा विषय बन गया है।
यह पूरा घटनाक्रम इस ओर संकेत करता है कि यदि शासकीय भूमि के अभिलेख समय पर स्पष्ट, पारदर्शी और अद्यतन न हों, तो विकास कार्य भी सवालों के घेरे में आ जाते हैं। अब निगाहें प्रशासनिक जांच और उसके निष्कर्ष पर टिकी हैं, जिससे यह तय होगा कि जनहित का यह महत्वपूर्ण भवन कब और कहां आकार ले पाता है।

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