न्याय की भूख……प्लांट गेट पर टूटा एक परिवार, दो मासूमों की आंखों में सवाल क्या मजदूर की आवाज़ अपराध है? जेके व्हाइट सीमेंट प्लांट के बाहर इंसाफ की तस्वीर पत्नी-बच्चों संग धरने पर बैठा श्रमिक
न्याय की भूख……प्लांट गेट पर टूटा एक परिवार, दो मासूमों की आंखों में सवाल क्या मजदूर की आवाज़ अपराध है? जेके व्हाइट सीमेंट प्लांट के बाहर इंसाफ की तस्वीर पत्नी-बच्चों संग धरने पर बैठा श्रमिक
कटनी।। जिले के रूपौंद स्थित जेके व्हाइट सीमेंट प्लांट का मुख्य द्वार सोमवार दोपहर एक औद्योगिक परिसर नहीं, बल्कि एक टूटते हुए परिवार की पीड़ा का साक्षी बन गया। यहां कोई नारा नहीं था, कोई उग्र प्रदर्शन नहीं बस जमीन पर बैठा एक श्रमिक, उसकी पत्नी और दो मासूम बच्चे, जिनकी आंखों में डर, भूख और भविष्य की अनिश्चितता साफ झलक रही थी। धरने पर बैठे पूर्व श्रमिक प्रदीप रजक की कहानी सिर्फ नौकरी छूटने की नहीं है, यह उस परिवार की है, जो रोज़ी-रोटी, सम्मान और न्याय तीनों के लिए एक साथ संघर्ष कर रहा है।
आवाज़ उठाई, तो अपराधी बना दिया गया
प्रदीप रजक बताते हैं कि वे वर्ष 2016 से जेके व्हाइट सीमेंट प्लांट में काम कर रहे थे। वर्षों की मेहनत के बाद उन्हें यही प्लांट अपना भविष्य लगता था। लेकिन प्रदीप का कहना है कि जब उन्होंने मजदूरों के अधिकारों, शोषण और अनियमितताओं के खिलाफ आवाज उठाई, तो यही आवाज उनके लिए सजा बन गई। उनका आरोप है कि 13 मई 2025 को कंपनी प्रबंधन ने पुलिस के साथ मिलकर उन्हें धारा 151 के तहत झूठे मामले में फंसा दिया, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा। मैं अपराधी नहीं था, फिर भी मुझे जेल भेज दिया गया प्रदीप कहते हैं।
जेल से बाहर… लेकिन काम से बाहर
जेल से लौटने के बाद प्रदीप को उम्मीद थी कि सच्चाई सामने आएगी और वे फिर से काम पर लौट सकेंगे। लेकिन उनके अनुसार, प्लांट के गेट उनके लिए बंद कर दिए गए। उन्होंने कई बार अंदर जाने की कोशिश की, अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही मिली। धरने पर बैठी उनकी पत्नी की आंखें बार-बार बच्चों की ओर जाती हैं जैसे हर पल डर हो कि अगला सवाल क्या होगा: पापा,आज खाना मिलेगा?
भुखमरी की कगार पर खड़ा मेरा परिवार
धरने के दौरान प्रदीप भावुक होकर कहते हैं कि मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है। न नौकरी, न आमदनी। बच्चे भूखे हैं। अगर मुझे वापस काम पर नहीं लिया गया, तो मेरे पास सपरिवार आत्मदाह करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। ये शब्द सिर्फ चेतावनी नहीं, बल्कि एक मजबूर इंसान की टूटती हुई अंतिम उम्मीद की गूंज हैं।
कंपनी का पक्ष: अनुशासनहीनता का आरोप
वहीं, कंपनी प्रबंधन का कहना है कि 8 मई 2025 को प्रदीप रजक ने बिना पूर्व सूचना के अन्य मजदूरों को भड़काकर काम बंद करवा दिया था। इससे प्लांट को आर्थिक नुकसान हुआ, और इसी आधार पर अनुशासनहीनता की कार्रवाई करते हुए उन्हें बाहर किया गया। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक श्रमिक की गलती अगर मान भी ली जाए उसकी पूरी जिंदगी और उसके बच्चों का भविष्य छीन लेने का आधार बन सकती है?
पुलिस की मौजूदगी, लेकिन समाधान अधूरा
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बड़वारा पुलिस मौके पर पहुंची। थाना प्रभारी के.के. पटेल ने बताया कि परिवार को समझाने का प्रयास किया गया है और कंपनी के अधिकारियों से बातचीत कर समाधान निकालने की कोशिश की जाएगी। हालांकि, फिलहाल कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। सोशल मीडिया पर सवाल, सिस्टम पर निगाह प्लांट गेट के बाहर बच्चों के साथ धरने पर बैठे इस परिवार की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं। लोग सवाल पूछ रहे हैं क्या न्याय इतना महंगा हो गया है?,क्या मजदूर की आवाज उठाना अपराध है?और क्या दो मासूमों की भूख किसी के लिए मायने नहीं रखती?
एक परिवार, एक संघर्ष
जेके व्हाइट सीमेंट प्लांट के गेट पर बैठा यह परिवार आज सिर्फ अपनी नौकरी की लड़ाई नहीं लड़ रहा —
यह लड़ाई है सम्मान की, जीविका की और इंसाफ की।
अब देखना यह है कि प्रशासन, कंपनी प्रबंधन और समाज तीनों में से कौन इस परिवार की पीड़ा को सच में सुनेगा, और कौन सिर्फ तमाशबीन बना।.