पार्टी आला कमान का फरमान सुनते ही झल्ला उठे थे, मंडल अध्यक्ष के दावेदार, तीखी प्रतिक्रिया के बाद आकाओं के भय से मुकरे नेता

दबी जुबान से दी धमकी, फिर अनुशासन का ओढ़ा चोला
दो दशक से भाजपा की नींव के पत्थर कहे जाने वाले कार्यकर्ताओ को उस वक्त झटका लग गया जब पार्टी ने अपने संविधान में आयु सीमा पर संसोधन कर दिया, फिर क्या समाचारों को ढाल बनाकर नेताओ ने छीटाकशी और खुद को अनुशासित कार्यकर्ता साबित करने लगे।शहडोल। मंडल अध्यक्ष बनने का सपना उस वक्त चूर हो गया, जब पार्टी ने आयु सीमा कुल 40 वर्ष तक ही कर दिया। जिले में ही नही बल्कि पूरे प्रदेश में कार्यकर्ता दबी जुबान से बगावती तेवर दिखा रहे है लेकिन खुलकर कहने में सबको परहेज है, वहीं दूसरी ओर आकाओं की फटकार की डर से कार्यकर्ता पार्टी के आदेश को मानकर आदर्श कार्यकर्ता के तौर पर खुद का बैनर चिपका रहे है। स्वाभाविक है जो कार्यकर्ता बीते दो दशक से दिनरात एक करके पार्टी के बुनियाद को मजबूत करता आ रहा है उसे एक फरमान ने निराश कर दिया और वह अनुशासन के भय से अपनी नाराजगी भी जाहिर नही कर पा रहा है, ऐसा ही कुछ हाल इन दिनों जिले में भाजपा कार्यकर्ताओ का है।
समाचार पत्रों को बना रहे ढाल
जिले में तो वैसे एक दर्जन से भी ज्यादा मंडल है लेकिन खैरहा मंडल काफी सुर्खियां बटोर रही है। पहले समाचार पत्रों ने नाराजगी छपती है और जब चिन्हित लोगो को छवि धूमिल होने का भय सताता है तो बाकायदा नेता मुकर भी जाते है। बीते दिन एक खबर का प्रकाशन हुआ था जिसमे में भाजपा मंडल के कुछ अनुभवी कार्यकर्ता पार्टी फरमान सुनकर झल्ला उठे थे, मेहनत पर पानी फिरता देख प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया। जिसके बाद एक खबर का प्रकाशन हुआ और नेताओं की नींद उड़ गई, आकाओं और अनुशासन के भय से अगले ही दिन समाचार पत्रों में खंडन छपवाने की होड़ मच गई। फिर क्या दो दिन बाद कुछ दलालों ने अपने चहेते नेताओ की साख बचाने रेस में जुट गए।
कौन सच्चा, कौन झूंठा..?
पार्टी के जिम्मेदार नेताओ को बेहतर पता है कि जिले का कौन सा कार्यकर्ता कितना पार्टी परस्त है कौन मतलब के लिए राजनीत कर रहा है। देश व समाज सेवा का संकल्प लेकर भाजपा में काम करने वाले कार्यकर्ता को पार्टी के अंदर ही तोड़फोड़ करने से फुरसत नही मिल रही है, वैसे तो पार्टी एक परिवार के भाव से काम कर रही है लेकिन कुछ राजनैतिक प्रतिस्पर्धा का भाव रखने वाले नेता सामने वाले को नीचा दिखाने का कोई मौका नही छोड़ना चाहते, वर्तमान में खैरहा मंडल इसका श्रेष्ट उदाहरण है। बैठक से निकलते ही सभी एक स्वर में नाराजगी का राग अलापते है, बैठक में उपजी बात सड़को पर आती है जब इन बातों को समाचार पत्र जिले भर में फैला देते है तो दूसरे दिन ईमानदार कार्यकर्ता होने का ढोंग रचा जा रहा है।
छवि धूमिल करने की होड़ !
मंडल अध्यक्षो की नियुक्ति में भले ही अभी दो से तीन दिन बांकी है, लेकिन पद पाने की लालच में कार्यकताओं ने छवि धूमिल करने का हथकंडा अपना रखा है। मंडल अध्यक्ष पद में लिए जैसे ही आयु सीमा का निर्धारण किया गया वैसे ही कुछ नेताओं के हलक से बात नीचे नही उतर रही। खैरहा मंडल में इसको लेकर जमकर पेपरबाजी की जा रही है, कोई खुद को पार्टी का बफादार कार्यकर्ता बताने में जुटा है तो कोई स्वयं को सच्चा सिपाही बता रहा है। सवाल यह है कि जब खबर का प्रकाशन हुआ तो यह बात रिपोर्टर तक पहुंची कैसे, और जब रिपोर्टर ने नाराजगी को आधार मानकर खबर का प्रकाशन कर दिया तो खंडन की जरूरत क्यों पड़ी, साजिश रचने वाले नेताओं को यह नही पता कि इन बातों और हथकंडों से पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी अंजान नही है, उन्हें सब पता है कि आखिर बैठक के बाद क्या हलचल हुई और खबर प्रकाशन के बाद खुद को सुप्रीम साबित करने के लिए नेता कौन-कौन से हथकंडे अपना रहे है।
यह चल रहा है जिले में…
बीते दिनों खैरहा मंडल और बुढ़ार मंडल की एक बैठक आयोजित की गई थी जिसमे पदाधिकारियों ने मंडल अध्यक्ष पद के लिए एक नया फरमान सुनाया जिसको सुन सभी भौचक्के रह गए। पार्टी ने मंडल अध्यक्ष के लिए अधिकतम आयु सीमा 40 वर्ष निर्धारित कर दिया। जिसके बाद मंडल अध्यक्ष दौड़ में शामिल अधिकतर कार्यकर्ता मैदान से बाहर हो गए। बैठक सम्पन्न होते ही नाराज कार्यक्रताओं ने प्रतिक्रिया देना प्रारम्भ कर दिया, अगले दिन एक खबर का प्रकाशन होता है जिसको पढ़कर कुछ समझदार नेता संचार के माध्यम से खुद को ईमानदार और अनुशासित कार्यकर्ता बताने की होड़ में जुटे हुए है। यह आलम सिर्फ खैरहा मंडल ही नही बल्कि जिले अन्य मंडलो में भी है जहां पर आयु सीमा ने दावेदारों की नींद उड़ाई है।