धनपुरी में न्यूनतम तो बुढ़ार में अधिकतम उम्रदराज को दी जिम्मेदारी
शहडोल। जिले में भाजपा के संगठन चुनाव से उठी आग ठण्डी होने का नाम नहीं ले रही है, जैतपुर और केशवाही मण्डल में स्थानीय विधायक और जिलाध्यक्ष के बीच हुआ विवाद भी चर्चाओं में रहा, इस दौरान धनपुरी मण्डल से सैकड़ा भर पदाधिकारियों की इस्तीफे की खबर ने सरकार जाने के बाद बचे-कुचे भाजपाईयों के खेमें में खलबली मचा दी। धनपुरी और बुढ़ार मण्डल के चुनावों में संगठन के खिलाफ उठे स्वर भी उफान पर हैं। आरोप है कि जिलाध्यक्ष इन्द्रजीत सिंह छाबड़ा ने 30 नवम्बर को अपनी होने वाली संभावित विदाई से पहले अपने मोहरे बैठाने के फेर में संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों को गुमराह किया, यही नहीं उम्र की सीमा को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनाई गई, जिस कारण पार्टी का झण्डा उठाने वाले जमीनी कार्यकर्ता और पदाधिकारी काफी नाराज हैं।
धनपुरी-बुढ़ार में बदल गये कायदे
5 वर्षो तक धनपुरी नगर पालिका में जिस तरह जिलाध्यक्ष ने जिस तरह से नियमों को तोड़ा मरोड़ा, उसी तर्ज पर मण्डल के चुनावों में भी उम्र की सीमा को धनपुरी में लागू किया गया तो बुढ़ार में अपने प्यादे को बैठाने के लिए इसे नजर अंदाज कर दिया गया, आरोप है कि धनपुरी में आलोक राय, अनिल दाहिया, सचिन यादव, दिलीप चतुर्वेदी जैसे संगठन के पुराने वफादारों को 40 वर्ष की उम्र का डण्डा दिखाकर उनके आवेदन ही नहीं लिये गये, पुत्र मोह में फंसकर जिलाध्यक्ष ने रायशुमारी को भी तरजीह नहीं दी और अंत में राकेश तिवारी की जगह अन्य को मण्डल अध्यक्ष बना दिया, वहीं बुढ़ार में कामाख्या राव को मण्डल अध्यक्ष बनाने के लिए न तो उसकी अंकसूची और न ही शासन की समग्र आईडी में 40 वर्ष से अधिक उम्र को ही देखा गया, जबकि बुढ़ार में अंजनी तिवारी और कृष्ण कुमार को 40 वर्ष से अधिक उम्र बताते हुए पहले ही दौड़ से बाहर कर दिया गया, बाद में आदित्य पाण्डेय, कृष्ण, सुजीत केवट, अर्जुन सोनी को भी किनारे करते हुए रायशुमारी और अंकगणित में अर्जुन सोनी और कृष्ण से कम अंक मिलने के बाद भी कामाख्या की ताजपोशी कर दी गई।