अनूपपुर। लाल की तीर्थयात्रा – भाग 1

लाल की तीर्थयात्रा – भाग : 1
अनूपपुर। फाल्गुन के त्यौहार के आगमन के साथ ही जिले के विकास के ” लाल ” को लगा कि उन्हें भी अपने पापों का प्रायश्चित कर ही लेना चाहिए , लाल ने जैसे ही अपना यह निर्णय अपने हनुमान रूपी शिष्य अग्रवाल को बताई तो अग्रवाल को यह अवसर “बिल्ली के भाग्य से सींका टूटने” जैसा लगा , बस फिर क्या “लाल ” निकाल पड़े बेंगलुरु दर्शन को और सीधे उसी धर्मशाला में पहुंचे जहां कुछ तीर्थयात्री पहले से ही मौजूद थे , “लाल “धर्मशाला में विद्यमान स्पा रूपी मोक्ष कुंड से ” मय से मीना से ना साकी से , ना पैमाने से , दिल बहलता है मेरा स्पा में पहुंच जाने से ” का जाप करते हुए निकले ही थे कि भोपाल की इन्द्रसभा से भेजे गए दो दूत उनका हिसाब – किताब लेने लगे , बस फिर क्या ? धर्मशाला को बहत्तर हजार का दान देकर नागा रूप अपनाए “लाल” को अपनी लंगोट की सुध भी नहीं रह गई , जैसा कि अक्सर होता है कि अपने आका की चारित्रिक रक्षा का दायित्व हर दास का होता है , अग्रवाल नागा स्वरूप अपनाए ” लाल” की लंगोट कसने में लग गए , दूतों ने “लाल” को पहले इस नागा रूप में देखकर साष्टांग प्रणाम किया और धर्मशाला से पुनः इन्द्रसभा को लौटने की मनुहार करने लगे , लाल की तामसी प्रवृति एक बार फिर से उनके इन्द्रियों पर भारी पड़ने लगी, आनन – फानन “लाल” वापिस फिर से इन्द्रसभा लौट आए , इन्द्रसभा में अभी एक ही दिन बीता था कि लाल वहां के आतिथ्य सत्कार से संतुष्ट नहीं हुए , अभी भी उनके दिल में “ये दिल मांगे मोर” की हिलोरें मार रहीं थीं । राजा शिव जिन्हें लगभग डेढ़ साल पहले ही राज्य की प्रजा ने इन्द्रसभा से बेदखल कर दिया था अपने कुछ पिटे हुए दूतों के साथ इन्द्रसभा के बाहर नौ मन चमेली का तेल और मुद्राओं की थैली लेकर “लाल” के स्वागत के लिए आतुर हमेशा कि भांति अपनी बत्तीसी दिखाते खड़े मिले , ” मेरे तो गिरधर गोपाल , दूसरो न कोय” का भजन और मुद्राओं से भरी थैली ने “लाल” की आंखों पर गहरा प्रभाव डालते हुए मस्तिष्क पर वज्रपात कर दिया और “लाल” के मानस – पटल पर अचानक की अजीज नाजां की वह प्रसिद्ध कव्वाली ” आज जवानी पर इतराने वाले कल तू पछताएगा” की गूंज सुनाई देने लगी , फिलहाल “लाल” आगे जो भी हो अंजाम देखा जाएगा कि तर्ज पर कमलदल के ऊपर भौंरे की तरह झूल रहे है , और अपनी तीर्थयात्रा के चश्मदीद रहे हनुमान रूपी अग्रवाल को दूध में पड़ी मक्खी कि तरह अलग कर दिया है ।
लाल की इस तीर्थयात्रा से कमल दल का वह पुराना भौंरा जो समय – समय पर अपने स्वामी के ट्रस्ट के माध्यम से मां नर्मदा की सेवा भी करता है उसकी हालत ” ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं ” जैसी है परन्तु ना चाहते हुए भी और भरी आंखों से “सुनी जो उनके आने की आहट , गरीब खाना सजाया हमने,कदम मुबारक हमारे दर पे, नसीब अपना जगाया हमने ” वाला स्वागत गीत गा रहे है !
और अंत में रही बात कमलदल के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की तो उन्हें “कर्तव्य पथ पर जो भी मिला , यह भी सही वह भी सही ” का पाठ ही कंठस्थ कराया जाता रहा है, इस तीर्थ यात्रा के पश्चात कार्यकर्ताओं को जल्द ही विकास रूपी “लाल” का रथ खींचने का अवसर मिलेगा ………… निरंतर
नट-खट चाचा