जनसेवा में वर्दीधारियों ने झोंक दी जिंदगी, न समय की फिक्र-न अपने परिवार की चिंता

रीयल हीरो
सिर्फ सोने की छुट्टी, उसमें भी इमरजेंसी बुलावा
जो जहाँ है, वहीं करे ड्यिुटी, खाने-पीने और सोने का नहीं है ठिकाना
90 बरस की मां को बीमार हालत में छोड़कर लौटे उपनिरीक्षक
आज टोटल लॉक डाऊन का 14 वां दिन है, कोविड-19 के डर से समाज का हर वर्ग सकते में है, व्यवसायी, नेता, पत्रकार व अधिकारी घरों में सुरक्षित हैं, लेकिन चिकित्सकों और वर्दीधारियों को हमनें इस महामारी में स्वास्थ्य और सुरक्षा का जिम्मा देकर सड़क पर छोड़ दिया है।
शहडोल। टोटल लॉक डाऊन की प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद जिले में हजारों आवेदन अपने परिजनों को लाने और उन तक पहुंचने के लिए शासन के पास पहुंचे, तो हजारों ने बिना अनुमति के ही पीछे के दरवाजे से परिजनों तक पहुंच बनाई, लेकिन समाज में चिकित्सा और पुलिस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस व्यवस्था से बाहर, परिजनों से दूर अपनी सेवाएं देते रहे। चिकित्सक और उनसे से जुड़ा अन्य अमला तो, फिर भी अस्पताल के छत के नीचे और आधा समय परिवार के साथ गुजार रहे हैं, लेकिन वर्दीधारियों की पूर्व से तय छुट्टियां भी रद्द कर, जो जहाँ है, वहीं अपनी सेवाएं दे, जैसा आदेश शासन द्वारा देने के बाद सभी वर्दीधारी अपने घर व परिवार को भूल आमजनता को ही अपना परिवार मान पूरे समय अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
मोबाइल चालू कर, सिर्फ सोने की छुट्टी!
जिला मुख्यालय सहित पुलिस लाईन और जिले के लगभग थानों में पदस्थ वर्दीधारियों का कमोवेश एक सा हाल है, उन्हें सिर्फ नींद के लिए कुछ घंटों की छुट्टी मिल रही है, इस दौरान भी मोबाइल चालू रखे जा रहे हैं, ताकि आवश्यक कार्याे व लॉयन आर्डर के दौरान ड्यिुटी पर आने की सूचना वरिष्ठ अधिकारी दे सके।
खाना-पीना सब सड़क पर
वर्दीधारियों में यह जिम्मेदारी किसी आरक्षक या कोतवाल तक सीमित नहीं है, पुलिस अधीक्षक से लेकर पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय में पदस्थ कार्यालयीन कर्मचारियों तक को वर्तमान में सड़क का जिम्मा दिया गया है। माइक वन से लेकर माइक टू और टॉप-टू-बॉटम सभी कर्मचारियों की स्थिति एक सी है, 24 घंटे शिकायतों व सिफारिशों के साथ आ रही मोबाइल पर सूचनाओं ने पुलिसकर्मियों को खुद मोबाइल बना दिया है, यही कारण है कि सुबह के नास्ते से लेकर दोपहर का भोजन और रात का खाना भी सूनी सड़कों पर चौकीदारी करते बीत रहा है।
कोतवाल, खुद माँ की चिंता में व्याकुल
संभागीय मुख्यालय शहडोल के कोतवाली प्रभारी वर्तमान में लगभग 16 से 18 घंटे अपनी सेवाएं दे रहे हैं, बाकी के 6 से 8 घंटो में भी नींद के दौरान उनका सेल फोन चालू रहता है, बीते 2 वर्षाे से कोतवाली की जिम्मेदारी सम्हाल रहे रावेन्द्र द्विवेदी ड्यिुटी के दौरान भले ही हंसते हुए नजर आते हैं, लेकिन मूलत: सतना जिले के रामपुर बघेलान अंतर्गत शिवपुरा ग्राम के निवासी श्री द्विवेदी को टोटल लॉक डाऊन के दौरान अपनी 68 वर्षीय वृद्ध मां के गांव में अकेले रहने की चिंता अंदर ही अंदर व्याकुल किये हुए है, लॉक डाऊन के दौरान घर का किराना, मां की दवाएं और विपरीत परिस्थितियों में उनकी सेवा कैसे होगी, यह फिक्र शहर के लोगों ने उनके साथ मुलाकात के दौरान शायद ही महसूस की हो। श्री द्विवेदी के दो भाईयों में से एक बीमारी से तो, दूसरे लॉक डाऊन के कारण दूसरे शहर में फंसे हुए हैं, मां के साथ मोबाइल पर दिन में दो से तीन बार कुशलक्षेम पूछ लिया जाता है। लॉक डाऊन जल्द खत्म हो और अवकाश लेकर मां से मिल सके, इसका इंतजार श्री द्विवेदी को बेसब्री से है।
वीडियो कॉल के दौरान भर आता है आरक्षक का गला
कोतवाली में पदस्थ आरक्षक 625 उमेश तिवारी की अपनी अलग कहानी है, लॉक डाऊन से पहले उमेश ने कक्षा 3 रीं में पढऩे वाले अपने बेटे को मामा के यहां मुम्बई भेजा था, महाराष्ट्र में कोरोना वॉयरस ने सबसे भयावक रूप लिया, ट्रेने बंद हुई, शुरू में लगा, जल्दी जिंदगी पटरी पर लौटेगी, लेकिन धीरे-धीरे करके पखवाड़ा होने को है, बेटा मां और पिता से मिलने के लिए मुम्बई से बार-बार पिता को वीडियो कॉल करता है, दोनों तरफ बात करते-करते ऑसुओं की धार बहने लगती है। देश-भक्ति और जनसेवा की शपथ और अपनी ड्यिुटी के आगे उमेश बेबस है।
सोचा था, मां को छोड़कर नहीं आऊंगा
कोतवाली में पदस्थ उपनिरीक्षक एम.पी. अहिरवार भी सतना जिले के कोठी अंतर्गत ग्राम झाली के मूल निवासी हैं, लॉक डाऊन से पहले उनकी 90 वर्षीय माँ श्रीमती रामसखी अहिरवार की हालत बहुत नाजुक हो गई थी। माँ पहले से ही लकवा ग्रस्त है, चिकित्सकों ने भी मना किया हुआ है, 15 दिन की छुट्टी लेकर श्री अहिरवार अधिकारियों से माँ के अंतिम समय मे उनकी सेवा करने की गुजारिश कर गांव गये थे, लेकिन लॉक डाऊन के दौरान छुट्टी निरस्त हुई, 23 मार्च को वापस लौटना पड़ा, माँ की हालत अभी भी नाजुक है।
सबकी अलग-अलग जिम्मेदारियां
पारिवारिक जिम्मेदारियों को छोड़ समाज को ही अपना परिवार मान चुके वर्दीधारियों की व्यक्तिगत जिंदगियों को जब हमने टटोला तो, कोरोना वॉयरस से अब तक हमें बचाने के लिए अपनी जिंदगी झोंकने वाले वर्दीधारी रीयल हीरों के रूप में नजर आये, कोतवाली में पदस्थ उपनिरीक्षक सुभाष दुबे की पत्नी की तबियत खराब है, सहायक उपनिरीक्षक राकेश बागरी के बच्चे की तबियत बिगड़ी हुई है, इन दोनों की जिम्मेदारी परिवार के अन्य सदस्यों ने ली हुई है, रामनारायण पाण्डेय के माता-पिता की तबियत ठीक नहीं है, तो आरक्षक महेन्द्र सिंह परस्ते खुद कोतवाली में सेवा दे रहे हैं और पत्नी मण्डला में अकेले है, आरक्षक राम प्रकाश सिंह के बच्चे बीमार हैं, मंटू यादव का पूरा परिवार बिहार में हैं, अन्य की तरह वे भी यहां शहर की सेवा में लगे हैं। आरक्षक हीरा सिंह के माता-पिता बाहर फंसे हैं, वहीं महिला आरक्षक सोनी नामदेव सुबह से शाम तक कोतवाली में अपनी सेवा देने के बाद मायके व ससुराल की जिम्मेदारी का निवर्हन कर रही हैं।
आइये आगे बढ़ , साझा करें जिम्मेदारियाँ
कोविड-19 के संकट के दौरान समाज का हर वर्ग परेशान हैं, ताजा हालातों पर गौर करें तो, अभी इस संकट से निजात का छोर नजर नहीं आ रहा है, ऐसी परिस्थितियों में राज एक्सप्रेस परिवार आमजनों से अपील करता है कि टोटल लॉक डाऊन का पालन करे, सोशल डिस्टेंस को बढ़ाने के लिए प्रशासन के सुझाये रास्तों पर चले, साथ ही अपनी जान जोखिम में डालकर पूरे समाज की रक्षा में जुटे वर्दीधारियों पर अनावश्यक बाहर निकलकर परेशान न करें।
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