निगम–माफिया के गठजोड़ ने पीएम आवास पर किया कब्जा, बच्चों को ठंड में बाहर निकाला.घर छीना, बचपन उजड़ा कागज़ सरकार के, कब्जा माफियाओं का नगर निगम की लापरवाही से गरीबों पर अत्याचार……अफसरों की चुप्पी पर सवाल
निगम–माफिया के गठजोड़ ने पीएम आवास पर किया कब्जा, बच्चों को ठंड में बाहर निकाला.घर छीना, बचपन उजड़ा कागज़ सरकार के, कब्जा माफियाओं का नगर निगम की लापरवाही से गरीबों पर अत्याचार……अफसरों की चुप्पी पर सवाल
कटनी।। नगर निगम की कार्यशैली एक बार फिर कठघरे में है। निगम सीमा क्षेत्र अंतर्गत वार्ड क्रमांक 17 पं. दीनदयाल उपाध्याय वार्ड में तिलक कॉलेज रोड पर
भूमाफियाओं द्वारा सरकारी जमीन और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने मकानों पर अवैध कब्जे का गंभीर मामला सामने आया है। आरोप है कि नगर निगम के अधिकारी-कर्मचारी भूमाफियाओं से मिलीभगत कर नियमों को ताक पर रख रहे हैं, जिसका खामियाजा गरीब आदिवासी परिवारों और मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। वार्ड निवासी उमेशकुमार सोनी ने बताया कि आदिवासियों की जिस भूमि पर पीएम आवास योजना के तहत मकान बनाए गए, पं. दीनदयाल उपाध्याय वार्ड में तिलक कॉलेज रोड पर वह भूमि शासकीय मद में दर्ज है। संबंधित भूमि खसरा नंबर 700/01, आबादी की सरकारी जमीन है। बावजूद इसके आर्यन कपूर, दुर्गेश कपूर और सुखबरिया बाई द्वारा बिना किसी वैध दस्तावेज के जबरन कब्जा किया जा रहा है। उमेश सोनी के अनुसार इस अवैध कब्जे की शिकायत दो बार नगर निगम में की गई थी, जिस पर निगम ने प्रारंभिक कार्रवाई करते हुए रोक भी लगाई थी, लेकिन बाद में भूमाफियाओं ने नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों से सांठगांठ कर दोबारा कब्जा कर लिया। मजबूर होकर 15 नवंबर को सीएम हेल्पलाइन में भी शिकायत दर्ज कराई गई, पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि भूमाफियाओं द्वारा गरीबों के आवासों पर ताले जड़ दिए गए, जिससे बच्चों को इस भीषण ठंड में घर से बाहर निकाल दिया गया। करीब दो सप्ताह से मासूम बच्चे खुले आसमान के नीचे ठंड में रात गुजारने को मजबूर हैं, लेकिन नगर निगम प्रशासन अब तक मौन साधे हुए है।
जानकारी के अनुसार शहर के पं. दीनदयाल उपाध्याय वार्ड में तिलक कॉलेज रोड पर स्थित खसरा नंबर 700/1 में जो कि शासकीय आबादी है। यहां पर सुनीता पति शंकर कोल को 2018 में प्रधानमंत्री आवास योजना की स्वीकृति मिली थी। पीएम आवास बनवाकर दंपत्ति ने तैयार किया, लेकिन कुछ साल पहले दोनों की मौत हो गई। सुनीता व शंकर की एक 17 वर्षीय बेटी अपने एक रिश्तेदार के साथ मकान में रह रही थी,पीड़िता सोनम कोल ने बताया कि उक्त पीएम आवास शंकर कोल और सुनीता कोल के नाम स्वीकृत हुआ था, जिसके लिए शासन से राशि भी मिली और विधिवत निर्माण कराया गया। अब उसी आवास पर दुर्गेश कपूर और सुखबरिया बाई द्वारा जबरन कब्जा कर लिया गया है और बच्चों को घर से बाहर कर दिया गया। नियमों के अनुसार शासकीय जमीन की किसी भी प्रकार की रजिस्ट्री या हस्तांतरण कलेक्टर की अनुमति और आदेश के बिना संभव नहीं है, इसके बावजूद खुलेआम कब्जा होना नगर निगम की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
यह मामला न केवल भूमाफियाओं के काले खेल को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि किस तरह निगम की लापरवाही और कथित मिलीभगत के चलते गरीबों पर अत्याचार हो रहा है। अब देखना यह है कि प्रशासन कब जागता है और मासूम बच्चों को इंसाफ और छत नसीब होती है या नहीं।
शुरू की गईं जांच
स्थानीय लोगों ने शासकीय जमीन में बने पीएम आवास में हो रहे कब्जे की शिकायत की तो बुधवार शाम को नगर निगम से अतिक्रमणदस्ते की टीम पहुंची। इस दौरान कब्जाधारी से चर्चा की तो कब्जाधारी कहने लगा कि उसने जमीन नहीं खरीदी, लेकिन इसका केस चल रहा है, लेकिन नगर निगम की टीम को कई दस्तावेज नहीं दिखा पाए। बताया जा रहा है कि कब्जाधारी ने किसी दूसरे व्यक्ति के नाम से उस जमीन को खरीदना बताया है। आदिवासियों की जमीन के साथ अब उनके आशियाने के भी खरीद-फरोख्त की जा रही है।
आबादी (सरकारी) भूमि की रजिस्ट्री सामान्यतः नहीं हो सकती।
(1)आबादी की सरकारी जमीन क्या होती है?
गांव/शहर की वह जमीन जो सरकार के नाम दर्ज होती है जैसे: आबादी भूमि, शासकीय भूमि, सार्वजनिक उपयोग की भूमि इसका उपयोग आमतौर पर रास्ता, नाली, चौक, सामुदायिक कार्य आदि के लिए होता है
(2)ऐसी जमीन की रजिस्ट्री क्यों नहीं हो सकती?
क्योंकि कोई व्यक्ति उसका मालिक नहीं होता
रजिस्ट्री केवल स्वामित्व (Ownership) वाली भूमि की ही हो सकती है सरकारी जमीन का विक्रय कानूनन प्रतिबंधित है
(3) कब अपवाद हो सकता है?
कुछ सीमित परिस्थितियों में:यदि सरकार द्वारा विधिवत पट्टा (Lease/Patta) दिया गया हो,भूमि को पहले निजी खातेदारी में बदला गया हो,कलेक्टर/राज्य शासन के आदेश से नामांतरण हुआ हो
बिना इन शर्तों के की गई रजिस्ट्री:अवैध (Illegal) मानी जाती है,भविष्य में निरस्त (रद्द) की जा सकती है
कब्जाधारी पर अतिक्रमण की कार्रवाई हो सकती है
(3) यदि किसी ने करवा भी ली हो तो?
केवल रजिस्ट्री होना मालिकाना हक का प्रमाण नहीं है
राजस्व रिकॉर्ड (खसरा, नक्शा, बी-1) में यदि जमीन सरकारी है तो रजिस्ट्री शून्य मानी जाएगी
शहरी क्षेत्र में सरकारी / आबादी भूमि की रजिस्ट्री न होने का आधार सीधे-सीधे इन कानूनी नियमों और धाराओं पर टिका होता है
(1) मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 धारा 57
सभी अनुदानित न की गई भूमि शासन की होती है
जो भूमि किसी व्यक्ति को विधिवत आवंटित/पट्टे पर नहीं दी गई वह सरकारी भूमि मानी जाती है
ऐसी भूमि पर निजी स्वामित्व या बिक्री का अधिकार नहीं,इसलिए उस पर की गई रजिस्ट्री शून्य (Void) होती है। धारा 165 के अनुसार केवल वही व्यक्ति भूमि बेच सकता है जिसके पास कानूनी स्वामित्व/अधिकार हो,सरकारी भूमि पर कब्जाधारी भू-स्वामी नहीं होता
इसलिए कब्जे के आधार पर रजिस्ट्री अमान्य।
धारा 250 के अनुसार सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा हटाने का अधिकार प्रशासन बिना कोर्ट के भी कार्रवाई कर सकता है
(2) ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 धारा 7
केवल वही व्यक्ति संपत्ति का हस्तांतरण कर सकता है
जो उसे कानूनन हस्तांतरित करने में सक्षम हो
सरकारी भूमि बेचने वाला व्यक्ति सक्षम नहीं
इसलिए रजिस्ट्री कानूनन प्रभावहीन
(3) रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908
धारा 17 रजिस्ट्री दस्तावेज़ केवल प्रक्रिया है
यह स्वामित्व का प्रमाण नहीं बनती,गलत भूमि की रजिस्ट्री होने पर भी सरकारी हक समाप्त नहीं होता
(4) नगर निगम / नगर पालिका अधिनियम शहरी क्षेत्र की नजूल/सरकारी भूमि नगर निगम/पालिका की संपत्ति होती है बिना परिषद/शासन अनुमति विक्रय अवैध। न्यायालय का सिद्धांत (स्थिर कानून) सरकारी भूमि की अवैध रजिस्ट्री से कोई अधिकार पैदा नहीं होता
सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कई निर्णय
“Fraud on Government Land = Void Transaction” शहर की आबादी/सरकारी जमीन की रजिस्ट्री MP भू-राजस्व संहिता की धारा 57, 165
और TPA की धारा 7 के तहत अवैध व शून्य है।