बढ़ते पेट्रोल-डीजल की कीमतों से लोग फिर साईकिल की और लौटे

फि़टनेस तो किसी के लिए रोज़ी-रोटी कमाने का
ज़रिया बनी साईकिल
शहडोल। जिले में सन 1970 तक गिनती की साइकल हुआ करती थी लेकिन धीरे धीरे साइकिल की उपयोगिता और सर्वसुलभता ने इसे लोकप्रिय बना दिया और यह घर घर लोकप्रिय हो गई। लेकिन समय के साथ इसके स्वरुप और डिजाइन में व्यापक अंतर आया है। आज प्रचलित मॉडल से ज्यादा स्पोर्टी मॉडल साइकल ज्यादा पसंद की जा रही है।
पहली साईकिल 60 रुपये की थी
पंजाब साईकिल स्टोर्स के संचालक सरदार जसबीर सिंह और सरदार इंदरपाल सिंह ने बताया कि 1960 में पहली साईकिल हमारे दादा सरदार सुन्दर सिंह ने हमारे पिता सरदार रघुवंश सिंह के लिए केवल 60 रूपये में नागपुर से खरीदी थी। जो कि नॉर्टन कंपनी की थी। इसके बाद 1970 में हमने अपनी साईकिल की दुकान की शुरुआत की। इस समय शहडोल में केवल केवल 3 और साईकिल की दुकाने थी जिनमे ज्ञान साईकिल ,मोटवानी साईकिल और सिंध साईकिल स्टोर के नाम शामिल रहे। जहाँ पहली साईकिल हमने 165 रुपये में बेचीं थी। तब से लेकर आज तक लगातार साईकिल बिक्री का सिलसिला जारी है। पंजाब साईकिल स्टोर्स जिसका पूर्व नाम अजित साईकिल था, आज तक 1 लाख से अधिक साईकिल की बिक्री कर चुके है। अब 3000 से लेकर 25000 तक की साईकिल मिलती है जिनमे स्पोर्टी लुक, गेयर वाली साईकिल के साथ अन्य फीचर वाली साईकिल भी शामिल है जो युवाओं में लोकप्रिय है।
साइकल चलाने के फायदे
अपने शरीर को फिट रखने का एक सबसे असरदार तरीका है साइकिल चलाना है. कुछ शारीरिक गतिविधियां किसी अन्य तरीके से खुद को फिट रखने से कहीं बेहतर होती है. साइकिल चलाने से हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर, तथा मधुमेह जैसे रोगों के मृत्यु के जोखिम को कम करने में सहायता मिलती है. साइकिल चलाना बेहतर तरीके से सक्रिय रहने का अच्छा तरीका भी है। बिगड़ती लाइफस्टाइल मोटापे के साथ-साथ कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रही है। ऐसे में इन समस्याओं से बचाव करने के लिए शरीर में कुछ तरह की एक्टीविटी जरूरी है, ताकि शरीर को स्वस्थ्य रखने में कुछ मदद मिल सके। ऐसे में साइकिलिंग एक बेहतरीन एक्टिविटी साबित हो सकती है। साइकिलिंग करके खुद के शरीर को एक्टिव और फिट बनाना आसान हो सकता है।
साइकल का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि 1817 में जर्मनी के बैरन फ़ॉन ड्रेविस ने साइकिल की रूपरेखा तैयार की। यह लकड़ी की बनी सायकिल थी तथा इसका नाम ड्रेसियेन रखा गया था। उस समय इस साइकिल की गति 15 किलो मीटर प्रति घंटा थी। इसका अल्प प्रयोग 1830 से 1842 के बीच हुआ था। आज के समय में वाहन की बात की जाए तो एक से बढकर एक लाजवाब गाडिय़ां उपलब्ध हैं। कभी एक समय था कि हर किसी के पास साइकिल हुआ करती थी आम लोगों के लिए इससे बढिय़ा यात्रा का साधन कोई होता ही नहीं था। आज के समय में इसका वजूद कहीं खोता जा रहा है, अब सड़कों पर कार और बाइक इतनी ज्यादा दिखाई देती हैं। इस साइकिल का तो कोई नाम भी लेने को तैयार नहीं। भले ही हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन साइकिल का इतिहास बताता है कि आखिर ये कितनी खास थी।
साईकिल की उपयोगिता बरकऱार
नगर में पहले जहाँ कई साईकिल के पंचर बनाने वालों की दुकान थी और मात्र 2 या 3 रुपये में पंचर बन जाते थे और यह रोजगार का साधन था। आज भी आजीविका चलाने वालों के लिए साइकल किसी वरदान से कम नहीं हैं। दूध वाला सब्जी वाला अखबार वाले आज भी साईकिल का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन तेज़ रफ़्तार बाइक ने साईकिल की रफ़्तार को पीछे छोड़ दिया है, फिर भी साईकिल का वजूद आज भी बरकऱार है और सदैव रहेगा।