पेशे से व्यापार तक: मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़, 90 हजार में बिकता ‘गलत इलाज’! पुष्पांजलि नर्सिंग होम संचालक पर गंभीर आरोप, झूठी रिपोर्टों के आधार पर इलाज कर मरीज को मौत के मुंह तक पहुंचाया

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पेशे से व्यापार तक: मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़, 90 हजार में बिकता ‘गलत इलाज’!
पुष्पांजलि नर्सिंग होम संचालक पर गंभीर आरोप, झूठी रिपोर्टों के आधार पर इलाज कर मरीज को मौत के मुंह तक पहुंचाया
कटनी। “डॉक्टर भगवान का रूप होता है” – यह वाक्य अब समाज में सिर्फ कहावत बनकर रह गया है। आधुनिक दौर में चिकित्सा सेवा जैसे पवित्र पेशे में भी लालच, धोखा और ठगी की मिलावट हो चुकी है। ताजा मामला कटनी शहर से सामने आया है, जहाँ एक युवती ने पुष्पांजलि नर्सिंग होम के संचालक डॉ. नीरेश जैन पर फर्जी रिपोर्टों के आधार पर उसके पिता का इलाज कर 90 हजार रुपए वसूलने और जीवन से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है।
स्वात्ति रैकवार, निवासी भट्टा मोहल्ला (मदन मोहन चौबे वार्ड), ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय, रंगनाथ थाना और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में बताया गया कि उसके पिता कोमल रैकवार (उम्र 55 वर्ष) को बुखार की शिकायत पर 14 जून 2025 को पुष्पांजलि नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था।

गलत जांच, गलत इलाज – और मरीज़ की बिगड़ती हालत
स्वात्ति के अनुसार, भर्ती के बाद अस्पताल में कई जांचें कराई गईं – एक्सरे, ईसीजी, ब्लड रिपोर्ट आदि। डॉक्टर ने बिना सही निदान के ही इलाज शुरू कर दिया और मरीज की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती रही। पांच दिन तक इलाज के बाद डॉक्टर ने ऑपरेशन की बात कहते हुए उन्हें जबलपुर मेडिकल कॉलेज ले जाने की सलाह दी।
जब जबलपुर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स ने पुष्पांजलि नर्सिंग होम की दी गई फाइल जांची, तब एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ। फाइल में जो एक्सरे रिपोर्ट लगी थी, वह कोमल रैकवार की न होकर संतलाल यादव नामक व्यक्ति की थी, वहीं ईसीजी रिपोर्ट कमला दुबे नामक महिला की पाई गई। मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि कोमल को ऐसी कोई बीमारी थी ही नहीं, जिसका इलाज कटनी में चल रहा था।

थाने में उल्टा व्यवहार, डॉक्टर ने की अभद्रता

शिकायत पर जब पीड़िता थाना रंगनाथ पहुंची, तो वहां मौजूद थाना प्रभारी नवीन नामदेव ने उसे पुनः डॉ. नीरेश जैन के पास भेज दिया। अस्पताल पहुंचने पर डॉ. जैन ने फाइल से झूठी रिपोर्टें निकाल लीं और पीड़िता के साथ अभद्र व्यवहार कर भगा दिया।
स्वात्ति का कहना है कि अगर समय रहते जबलपुर न ले जाया जाता तो उनके पिता की जान भी जा सकती थी। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए और परिवार से ऐंठी गई 90 हजार रुपये की राशि वापस दिलाई जाए।
डॉक्टर या व्यापारी? बदलते चिकित्सा मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह
आज का सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या वाकई डॉक्टर अब मरीज नहीं, ‘कस्टमर’ देखने लगे हैं? क्या ‘दया’ की जगह ‘दाम’ ने ले ली है?
चिकित्सा एक ऐसा पेशा है जहाँ इंसान की जान और विश्वास जुड़ा होता है। लेकिन अब कई निजी अस्पताल और डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी भूलकर इसे व्यापार का माध्यम बना चुके हैं। इलाज के नाम पर महंगी जांचें, बिना ज़रूरत की दवाइयां, और फर्जी रिपोर्ट्स के आधार पर मोटी रकम वसूलना अब आम होता जा रहा है।
डॉक्टरी पेशा अब सेवा न होकर कमाई का जरिया बनता जा रहा है। यह घटना इस बात का उदाहरण है कि किस तरह गलत रिपोर्टें लगाकर मरीज को गलत दवाएं दी जाती हैं, फर्जी इलाज कराया जाता है और लाखों रुपए की वसूली होती है।

प्रशासन और समाज की ज़िम्मेदारी
जरूरत इस बात की है कि स्वास्थ्य व्यवस्था में जवाबदेही तय की जाए। अस्पतालों की नियमित जांच हो, फर्जीवाड़े पर कड़ी सज़ा हो और पीड़ितों को न्याय मिले।
साथ ही, समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा – अंधविश्वास और डॉक्टरों के प्रति अंधश्रद्धा की जगह अब सतर्कता और सवाल करने का समय है।

स्वात्ति रैकवार के साहसिक कदम ने एक गंभीर मामले को उजागर किया है, जो कई और अस्पतालों की हकीकत हो सकती है। यदि अब भी ऐसे डॉक्टरों और संस्थानों पर अंकुश न लगाया गया तो “सेवा का पेशा” पूरी तरह से “सौदे का कारोबार” बन जाएगा — और कीमत चुकाएगा सिर्फ एक आम मरीज, अपनी जान से।

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