कृषि उपज मण्डी से नदारद रहता है शासकीय अमला

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अनुशासनहीनता हावी, लाखों के शेड खाली पड़े, किसानो से सरोकार नहीं

शहडोल। किसानों के आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए शासन द्वारा संचालित कृषि उपज मण्डी एक अर्से से अव्यवस्था की शिकार है। यहां न तो कार्यालयीन अमले का पता रहता है न मण्डी परिषद के सदस्य ही यहां आते हैं। मण्डी में कार्यालय में कार्यावधि में भी सन्नाटा छाया रहता है। मण्डी के निकम्मेपन के कारण किसान तो वर्षों से यहां नहीं आ रहे है। शासन द्वारा किसानों के लिए बनवाए गए लाखों रुपए के शेड बनवाए गए लेकिन  सब बेकार पड़े हैं। मण्डी का शासकीय अमला अनुशासनहीनता का आदी हो चुका है। इधर करीब एक सप्ताह से मण्डी सचिव कार्यालय में दिखाई नहीं पड़े हैं, उनके पास बहाना यह है कि वे उमरिया शहडोल दो जिले के प्रभार में हैं। यहां के बिगड़े हालात का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव किसानो पर पड़ रहा है। मण्डी के कई कर्मचारी मुफ्त की वेतन ले रहे हैं।

कार्यालय में छाया सन्नाटा

मण्डी का कार्य संचालित करने के लिए यहां एक सचिव, तीन बाबू और पांच सहायक उपनिरीक्षक हैं। सहायक उपनिरीक्षक मैदानी अमला माना जाता है जो फील्ड का भ्रमण कर  कार्रवाई कर मण्डी के पक्ष में शुल्क जमा कराएं। लेकिन इनके द्वारा न तो भ्रमण किया जाता है न कार्रवाई की जाती है और न कार्यालय में ही आते हैं। सहायक उपनिरीक्षकों की अनुशासनहीनता काफी बढ़ चुकी है। इसके अलावा सचिव भी यदा कदा ही नजर आते हैं।  गणतंत्र दिवस पर भी वे दिखाई नही  पड़े और करीब एक सप्ताह से वे कार्यालय नहीं आए हैं। गणतंत्र दिवस पर यहां के भारसाधक अधिकारी तहसीलदार ने ध्वज फहराया था।

वर्षों से भंग पड़ी मण्डी

बताया गया कि मण्डी की परिषद करीब चार-पांच वर्षों से भंग है लेकिन यहां कोई चुनाव नहीं कराए गए। इसलिए किसानों के हितों की बात उठाने वाली इकाई अब यहां कार्यरत नहीं है। पूर्व में जब मण्डी अध्यक्ष बैठते थे तो कार्यालय में एक अनुशासन बना रहता था। बैठके होती थी उसमें किसानों के कृषि उत्पाद के संबंध में व कृषि विकास के मुद्दे तय किए जाते थे। लेकिन वर्षों से भंग पड़ी मण्डी के चुनाव के लिए प्रशासन ने भी पहल नहीं की। जबकि नगरीय निकायों व ग्रामपंचायतों के चुनाव समय पर संपन्न हो गए।

लाखों के शेड खाली पड़े

शासन ने मण्डी के अधिकार क्षेत्र में बड़े शेडो का निर्माण इसलिए कराया था कि जिससे किसान यहां अपने कृषि उत्पाद का अच्छा मूल्य प्राप्त करने नीलामी की प्रक्रिया करा सकें।  उनका गेहूं व धान यहीं शेडों में रखा जाकर व्यापारियों द्वारा नीलामी कराई जाने का प्रावधान है। लेकिन यह प्रक्रिया यहां वर्षों से नहीं कराई गयी, मण्डी के कर्मचारियों ने कभी किसानों को प्रोत्साहित नहीं किया न कभी उन्हे शासकीय योजनाओं की जानकारी दी। शासन की मंशा रही कि किसान अगर समर्थन मूल्य पर अपना उत्पाद बेचना चाहते हैं तो वे उपार्जन केन्द्रों में बेच सकते हैं अगर उन्हे समर्थन मूल्य से अधिक अपने उत्पाद का लाभ लेना है तो फिर नीलामी की प्रक्रिया सरलता से करा लें। लेकिन मण्डी का अमला अपने इस दायित्व से मुह फेरे हुए है।

दबिश नहीं पड़ती

मण्डी के अंदर अनुशासनहीनता इसलिए हावी है क्योंकि यहां बड़े अधिकारी कभी औचक निरीक्षण करने नहीं आते हैं। किसान यहां आते नहीं हैं इसलिए कर्मचारियों की शिकायतें भी नहंी होती हैं। सभी सहायक उपनिरीक्षक यहां मनमानी ढंग से कभी कभार एक दो घंटे के लिए आते हैं बाकी समय इधर उधर घूमते दिखाई पड़ते हैं। यहां के भार साधक अधिकारी  तहसीलदार भी उनसे कभी सवाल जवाब नहीं करते। कप्तान के बिना यहां भर्रा मचा हुआ है।

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