कक्का….ये क्या हो रहा है, छोट अस्पताल… बड़का अस्पताल का पुजा रहा दवाइयां

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(शुभम तिवारी)शहडोल। लगभग 5 साल पहले जब प्रदेश के मुखिया रहे शिवराज सिंह चौहान ने शहडोल में मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की तो सहसा किसी को भी एक बार में यकीन नहीं हुआ कि इस आदिवासी अंचल में भी मेडिकल कॉलेज खुलेगा, समय बितता गया, दूसरी बार घोषणा हुई, फिर तीसरी बार बजट आवंटन की खबर आई, टेंडर निकाला गया और फिर काम भी भूमि पूजन के साथ शुरू हुआ तो लगा कि चलो अब विखंडित शहडोल को संभाग का दर्जा धीरे-धीरे ही सही मिलने तो लगा है, लेकिन मेडिकल कॉलेज के खुल जाने के बाद जिस तरह धीरे-धीरे खुशियां लोगों को मिली थी, वह खुशियां एक-एक करके वापस होती चली गई, कोरोना काल में जब एक साथ कई मौतों की खबर आई तो लोगों की खुशी काफुर हो गई, सब जगह से यह बात सामने आने लगी कि इससे अच्छा तो जिला चिकित्सालय ही था, ऊंच-नीच होती थी लेकिन डॉक्टर मान ही जाते थे, थोड़ा दबाव भी काम आ जाता था, थोड़ा राजनीतिक रसूख और शहर के बीचो-बीच होने का फायदा भी मिलता था, चाहे रेलवे स्टेशन से यात्रा कर आने वाले मरीज हो या फिर बस स्टेशन से उतरकर यहां पहुंचने वाले मरीज, सबको कुछ दिक्कतों एवं परेशानियों के बीच सुविधा नसीब हो ही जाती थी, मेडिकल कॉलेज ने बीते वर्षों में जिस तरह अपना विश्वास खोया है उसे सहेजने के लिए ना तो मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और नहीं स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कोई प्रयास किए हैं।

बीते दिवस यह खबर आई की मेडिकल कॉलेज में अचानक कई आवश्यक दवाएं खत्म हो गई और उसकी आपूर्ति जिला चिकित्सालय के स्टोर से की गई, अस्पताल प्रबंधन से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब आवश्यक दवाओ की आपूर्ति जिला चिकित्सालय ने मेडिकल कॉलेज के लिए की हो, यह बात जग जाहिर है कि मेडिकल कॉलेज और जिला चिकित्सालय को मिलने वाले वार्षिक बजट में जमीन आसमान का अंतर रहता है, बीते दिनों यहां के नर्सिंग स्टाफ के साथ बदसलूकी की और उनके द्वारा ज्ञापन दिया गया और अस्पताल के अंदर पहले कचरा संग्रहण को लेकर तो कभी डॉक्टरों की टीम के द्वारा मरीज के साथ मारपीट करने जैसे कई मामले अभी थानों में लंबित पड़े हैं, यह सब तो चलता ही रहता है लेकिन जिस तरह यह खबर सामने आई की मेडिकल कॉलेज जहां शहडोल ही नहीं अनूपपुर, उमरिया, डिंडोरी और पड़ोसी प्रदेश छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में मरीज आते हैं उसे दवाओं की आपूर्ति के लिए जिला चिकित्सालय पर निर्भर रहना पड़े, यह अपने आप में शर्म की बात है।

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