मंत्री मण्डल में संभाग के कोतमा को मिला प्रतिनिधित्व

सामान्य सीट से विजयी बीजेपी के ओबीसी विधायक बने राज्य मंत्री
कक्षा 9 वीं से ही छात्र संघ की राजनीति में थे सक्रिय
कोतमा विधानसभा से पहली बार किसी विधायक को मिला मंत्री पद
इन्ट्रो-लंबे इंतजार के बाद सोमवार को मंत्री मण्डल का गठन हुआ, जिसमें शहडोल संभाग की इकलौती सामान्य सीट कोतमा के विधायक दिलीप जायसवाल को राज्य मंत्री की शपथ दिलाई गई, कोतमा के गठन के बाद यह पहला मौका था, जब यहां के विधायक को मंत्री मण्डल में स्थान मिला है, 62 साल के दिलीप को 45 सालों से भाजपा की सक्रिय राजनीति का लाभ पार्टी ने दिया है।
शहडोल। 3 दिसम्बर को मध्यप्रदेश विधानसभा के नतीजे आने के बाद से ही पहले मुख्यमंत्री और उसके बाद मंत्री मण्डल में जगह पाने वालों को लेकर लगाये जा रहे कयासों का बाजार सोमवार को क्रिसमस-डे के दिन खत्म हो गया, मुख्यमंत्री की तरह ही भाजपा आलाकमान ने जब मंत्री मण्डल की अंतिम सूची के पत्ते खोले तो, तमाम राजनैतिक पण्डितों के कयास धराशायी हो गये, 2024 के लोकसभा चुनावों के साथ ही जातीय समीकरण और कांग्रेस के ओबीसी, एसटीएससी को सत्ता में भागीदारी देने के कार्ड को भाजपा के रणनीतिकारों ने एक निशाने से ही साध दिया। संभाग की 8 विधानसभा सीटों में से इकलौती सामान्य सीट कोतमा जो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमा पर अनूपपुर जिले में स्थित है, यहां से भारतीय जनता पार्टी से दूसरी बार विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे दिलीप जायसवाल को मंत्री मण्डल के पहले शपथ ग्रहण समारोह में स्थान दिया गया। इससे पहले शिवराज मंत्री मण्डल में संभाग के अनूपपुर और उमरिया से एक-एक कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन इस बार उन दोनों को फिलहाल किनारे कर नये चेहरे को जगह दी गई और दो की जगह एक को ही मंत्री मण्डल में शामिल किया गया
45 सालों से सक्रिय राजनीति में है दिलीप
कोतमा विधानसभा से दूसरी बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे दिलीप जायसवाल का राजनैतिक सफर 1977 से शुरू हुआ है, लगभग 45 साल पहले 1977 में हुए स्थानीय चुनावों में दिलीप जायसवाल जनता पार्टी के पोलिंग एजेंट बने थे, हालाकि इससे कुछ समय पहले ही उन्होंने कोतमा नगर के तत्कालीन वरिष्ठ भाजपाई रामरूप सराफ व अवधेश ताम्रकार से 1 रूपये का शुल्क जमा कर भाजपा की सदस्यता ली थी, तब से लेकर अब तक उनका जीवन कोतमा, बिजुरी के दो नगरों व विधानसभा क्षेत्र के तमाम गांवों के इर्द-गिर्द ही सिमटा रहा। कोतमा विधानसभा क्षेत्र में ही दिलीप जायसवाल का जन्म 3 सितम्बर 1961 को जन्माष्टमी के दिन हुआ था, श्री जायसवाल के पिता स्व. सिद्धूलाल जायसवाल कारोबारी थे, जो पहले बिजुरी के समीप गांव में और फिर बिजुरी में व्यवसाय करते थे। कक्षा 9 वीं से राजनैतिक जीवन का सफर शुरू करने वाले दिलीप जायसवाल बताते हैं कि 14 साल की उम्र में उन्होंने 26 जून 1975 को लगी इमरजेंसी के दिन और कांग्रेस की केन्द्र सरकार के द्वारा उस दौरान किये गये जुल्मों को करीब से देखा है। बीए स्नातक के प्रथम वर्ष की शिक्षा उन्होंने कोतमा के स्थानीय महाविद्यालय से 1980 में उर्त्तीण की थी, उनके परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती अर्चना जायसवाल पूर्व में बिजुरी नगर पालिका की अध्यक्ष रही हैं, 3 संतानों में से एक बच्ची डॉक्टर है, जो वर्तमान में नागपुर में अपनी सेवाएं दे रही है, दूसरी बेटी अनुष्का लॉ ग्रेजुएट है, वहीं पुत्र अमिषेक लॉ के साथ पत्रकारिता में मास्टर डिग्री लेकर वर्तमान में पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता है, हालाकि पूर्व में खेती के अलावा क्रेशर भी था, लेकिन उसे बंद कर दिया गया और आजीविका का एक मात्र साधन खेती-किसानी ही है।
दिलीप के साथ बदला कोतमा का भाग्य
45 वर्षाे के राजनैतिक सफर के बाद मोहन यादव के मंत्री मण्डल में दिलीप जायसवाल को स्थान मिलना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं है, चुनावों से पहले टिकट को लेकर जद्दोजहद और टिकट मिलने के बाद चुनाव जीतने की जंग और अब मंत्री मण्डल में स्थान ने दिलीप जायसवाल के राजनैतिक महत्वकांक्षाओं को शायद अंतिम पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया, दिलीप के साथ ही कोतमा विधानसभा क्षेत्र का भी भाग्य भाजपा आलाकमान और भाजपा के प्रचण्ड आंधी ने बदल दिया है। यह पहला मौका है जब मध्यप्रदेश मंत्री मण्डल में कोतमा विधानसभा से चुने हुए प्रत्याशी को मंत्री मंडल में शामिल किया गया, अब तक कांग्रेस, भाजपा व गैर सरकारों में कभी भी कोतमा को यह स्थान नहीं मिला था। 2008 में दिलीप जायसवाल को पहली बार कोतमा विधानसभा सीट से टिकट मिली, उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मनोज अग्रवाल को मात दी थी, विजयी होने के बाद भी भाजपा ने 2013 के चुनावों में दिलीप की टिकट काट दी, लेकिन जिस पर भरोसा जताया, वे कांग्रेस से चुनाव हार गये। 2018 में दूसरी बार दिलीप को टिकट मिली, लेकिन इस बार भी कोतमा की जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताया, दिलीप का संघर्ष यहीं नहीं रूका, लगातार क्षेत्र का भ्रमण और जनता के बीच मुद्दों को लेकर मुखर रहे दिलीप को उनके इसी स्वभाव के कारण भाजपा ने 2023 में तीसरी बार टिकट दी और उन्होंने कांग्रेस के विधायक रहे सुनील सराफ को मात देकर कोतमा को फिर भाजपा मय कर दिया।
8 में 7 विधायकों के बाद भी 1 मंत्री पद
संभाग के तीन जिले जिसमें शहडोल की तीन, अनूपपुर की तीन और उमरिया की दो विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा के प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधायक बने, बावजूद इसके अन्य संभागों की तुलना में भाजपा आलाकमान ने संभाग को सिर्फ एक ही मंत्री पद वह भी राज्य मंत्री का पद दिया, जबकि पूर्व में उमरिया जिले के मानपुर से वर्तमान विधायक सुश्री मीना सिंह लगातार कैबिनेट मंत्री रही हैं, वहीं बांधवगढ़ सीट भी भाजपा का गढ़ रही है, यहां से कई बार सांसद और विधायक रहे जनसंघी ज्ञान सिंह के पुत्र शिव कुमार दूसरी बार विधायक बने हैं, उमरिया जिले को मंत्री मण्डल से किनारे रखा गया, शहडोल मुख्यालय की जयसिंहनगर सीट से आदिवासी महिला विधायक श्रीमती मनीषा सिंह ने संभाग में सबसे अधिक वोटों से जीत दर्ज की, जैतपुर से जयसिंह मरावी छठवी बार विधायक बने, श्री मरावी पूर्व सरकार में मंत्री भी रहे हैं, इसी तरह ब्यौहारी से युवा व कोल समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले शरद कोल ने तमाम कयासों को धता बताते हुए, अभूतपूर्व जीत दर्ज की, बावजूद इसके शहडोल पूर्व के मंत्री मण्डल की तरह इस बार भी तीनों विधानसभा भाजपा को देने के बाद भी मंत्री पद से अछूता रहा। अनूपपुर में बिसाहूलाल पूर्व में कैबिनेट मंत्री थे, जिन्हें अभी बाहर रखा गया है, लेकिन कोतमा से दिलीप जायसवाल को मंत्री मण्डल में जगह और अनूपपुर से वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व विधायक रामलाल रौतेल अभी भी अध्यक्ष मध्यप्रदेश कोल विकास प्राधिकरण (कैबिनेट मंत्री दर्जा) होने के कारण अनूपपुर की कमी तो, पूरी हो गई, लेकिन अभी भी शहडोल की दो दशक से अधूरी मंत्री पद की आस पूरी नहीं हुई।