कार्यालय का आदेश या कर्मचारियों का अपमान? सहायक आयुक्त का अजीबो-गरीब फरमान
(शुभम तिवारी)
उमरिया। जिले में सरकारी विभागों की लापरवाही और मनमानी अक्सर सुर्खियों में रहती है, लेकिन इस बार सहायक आयुक्त जनजातीय कार्य कार्यालय का आदेश खुद सवालों के घेरे में है। हाल ही में जारी आदेश में लिखा गया है कि विभाग अंतर्गत एसटी/एससी/ओबीसी वर्ग के कर्मचारी अक्सर दफ्तर में शराब, गांजा और अन्य नशे की हालत में पहुंचते हैं और शाखा प्रभारियों से विवाद करते हैं।
आदेश में यह भी उल्लेख है कि 1 सितम्बर 2025 के बाद यदि कोई कर्मचारी नशे की हालत में पाया जाता है तो जिला मेडिकल बोर्ड से उसका परीक्षण कराया जाएगा और वरिष्ठ कार्यालय को कार्रवाई हेतु भेजा जाएगा।
सवाल यह है कि सहायक आयुक्त ने बिना किसी ठोस जांच और प्रमाण के पूरे एसटी/एससी/ओबीसी वर्ग के कर्मचारियों को नशेड़ी बताकर क्यों कलंकित किया? अगर वास्तव में ऐसे मामले पहले सामने आए थे तो अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की गई? क्या विभाग कर्मचारियों पर अनुशासन लागू करने में नाकाम रहा है या फिर यह आदेश केवल कर्मचारियों की गरिमा को ठेस पहुंचाने और जातिगत पूर्वाग्रह फैलाने का कुत्सित प्रयास है?
इस आदेश से न केवल विभागीय माहौल खराब होगा बल्कि कर्मचारियों में गहरी नाराजगी भी फैलना तय है। एक जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी का यह बयान कार्यालय की गरिमा बढ़ाने की जगह स्वयं विभाग की साख पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है। स्थानीय सामाजिक संगठनों और कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यह आदेश एसटी/एससी/ओबीसी कर्मचारियों का खुला अपमान है।