मामा की स्टोरी का क्लाइमेक्स जानती है जनता, विकास यात्रा बेमानी

घिसी पिटी रीलों से ऊब गई जनता, नए क्रियेशन की सख्त जरूरत
प्रदेश की सत्ता पर आसीन भारतीय जनता पार्टी के सीने में जनता के दुख दर्द की ऐसी हूक उठी कि वह लाव लश्कर लेकर गली कूचों में ही उतर आई। भविष्य के चुनावों ने शायद उसे कुछ याद दिलाया है। इसलिए मामा की यूनिट डीजे बैण्ड आदि म्यूजिक सिस्टम के साथ विकास यात्रा के नाम पर आउट डोर सिनेमा तैयार करने आ गई है। लेकिन जनता इस बार सिनेमा से दूर छिटक रही है क्योंकि वह मामा की स्टोरी का क्लाइमेक्स जानती है।
शहडोल। विधानसभा के चुनाव करीब आ रहे हैं इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी ने प्रशासन की सारी मशीनरी अब विकासयात्रा के नाम पर जनमत तैयार करने में लगा दी है। दफतर, स्कूल छोडक़र देहाती क्षेत्रों में भ्रमण कर जनता से संपर्क करने का प्रयास किया जा रहा है। कल तक जिनके दीदार दूभर थे वही अफसर, पार्टी प्रतिनिधि, विधायक आदि जनता तक पहुंच कर उनकी समस्याएं पूछने लगे। यह जानने का प्रयास करने लगे कि उन्हे योजनाओं का लाभ मिल पा रहा है या नहीं। किसी सूची में उनका नाम है या नही तुरंत जोडऩे की कार्रवाई हो रही है। एक शेर याद आता है कि हम ढूंढ़ते थे जिसको गली गली वह अपने ही मकान के पीछे मिली। लेकिन अफसोस कि सारी हमदर्दी केवल चुनावी है। चुनाव गुजरते ही पिक्चर फिर वही ब्लैक एण्ड व्हाइट होगी।
जनता विकासयात्रा से बिदक रही
विकास यात्रा जिन ग्रामीण क्षेत्रों से होकर गुजरती है वहां लोगों की भीड़ अब विकासयात्रा के स्वागत के लिए खड़ी दिखाई नहंी पड़ती। लोग टका सा जवाब देकर अपने काम में चले जाते हैं। किराए की भीड़ भी इक_ी नहीं हो पा रही है। कार्यक्रमों में कुर्सियां खाली पड़ी दिखाई पड़तीं हैं। उमरिया में तो एक स्थान पर लोग उल्टा भडक़ कर आक्रामक हो उठे थे। विकास यात्रा वहां से फौरन आगे के लिए कूंच कर गई थी। वजह साफ है जनता, पार्टी और सरकार ऐसी रीलें देखकर ऊब गई है। सरकार की हमदर्दी जताने वाली यह रीलें अब घिस पिट चुकी हैं। जनता जान चुकी है कि सरकार जो स्क्रिप्ट लेकर आई है उसका क्लाइमेक्स क्या होने वाला है।
बच्चों का समय बर्बाद कर रहे
विकास यात्रा में रैलियों के लिए स्कूली बच्चों का उपयोग किया जा रहा है। प्रशासन ने इस मामले में तेवर कसे हैं कि जहां से विकास यात्रा गुजरेगी वहां के स्कूली बच्चे और हेडमास्टर सब शामिल होंगे। हेडमास्टर चूंकि सरकार के वेतनभोगी कारिन्दे हैं इसलिए उन्हे अफसरोंं की मिजाजपुरसी करनी पड़ती है। जबकि बच्चों से रैलियां निकलवाई जातीं हैं और डीजे की धुनों पर डांस कराया जाता है। यह सारा शोर शराबा जनता को एकत्र कर उसका सुख दुख पूछने के लिए है। किसका क्या बना बिगड़ा है चलो बताओ, लेकिन बताने वाले पीछे खिसक जाते हैं। परीक्षाओं के समय जबकि बच्चों की पढ़ाई जोर शोर से होनी चाहिए तब सरकार उनका समय बर्बाद करा रही है।
यात्राओं से हालात नहीं बदलते
जनता जानती है कि यह सब तो सिर्फ एक दिखावा है हिन्दी सिनेमा कुछ देर मन बहलाता है लेकिन मामा का सिनेमा मन बदलता है, मन को भटकाता है अंत में मिलता केवल सरपंच और सचिव को ही है। जिनके घोटालों की एक तो जांच नहंी होती और अगर हो भी गई तो कार्रवाई नहीं होती। प्रदेश सरकार का सारा खजाना उड़ा ले जाने वालों की क्या कोई खोज खबर लेती मामा की सरकार। योजनाओं के पात्र हो भी जाएंगे तो कौन सा लाभ मिलने वाला है। लिहाजा ऐसी यात्राओं के दृष्य देखकर क्या होगा, नया क्या है इस बार के दृष्य में?
संकल्प दिलाने का मतलब ?
यह भी जानकारी मिली है कि कहीं कहीं लोगों से संकल्प भी दिलाया जा रहा है। जैसे अनूपपुर में तो जल संचय का संकल्प दिलाया खाद्य व आपूर्ति मंत्री बिसाहू लाल सिंह द्वारा दिलाया गया है। क्या मंत्री महोदय ने कभी जल स्तर की स्थिति जानने की कोशिश की? क्या उन्होने प्रदेश सरकार के सामने कभी चिंता जताई? संकल्प तो सिर्फ एक कर्मकाण्ड है जो सरकारी कोरम पूरा करता है। सच यह है कि संकल्प का उल्लंघन सबसे अधिक किया जाता है। संकल्प के अनुरूप आचरण करना न तो अफसरों को रास आता है न मंत्रियों को, न जनता को।