सार्वजनिक नल बंद, हैंडपंप अतिक्रमण का शिकार, करोड़ों की पालिका ने जनता को पानी के लिए मोहताज किया
शहडोल।नगर पालिका परिषद धनपुरी पर जनता की मूलभूत जरूरतों की अनदेखी का आरोप गंभीर होता जा रहा है। करोड़ों के बजट वाली पालिका बड़े-बड़े विकास कार्यों के दावे तो करती है, लेकिन सबसे जरूरी पेयजल व्यवस्था को लेकर पूरी तरह असंवेदनशील दिखाई दे रही है। हाल ही में पालिका ने नगर के व्यस्ततम आजाद चौक क्षेत्र और अन्य इलाकों में लगे चार सार्वजनिक नलों को अचानक बंद कर दिया। इनमें से दो नल कांग्रेसी पार्षदों के प्रतिष्ठानों के सामने तथा दो अन्य प्रतिष्ठानों के सामने सालों से चल रहे थे। इन नलों से आसपास के लोग, सब्जी मंडी में आने वाले ग्रामीण और राहगीर अपनी प्यास बुझाते थे, लेकिन अब इन्हें बंद करने से नागरिक भटकने को मजबूर हो गए हैं।स्थिति और बदतर तब हो गई जब चौक के किनारे लगा एकमात्र पुराना हैंडपंप भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया। दुकानों और ठेलों के कब्जे के बीच दबा यह हैंडपंप वर्षों से बंद पड़ा है। नगर पालिका का ध्यान इस ओर नहीं है। साफ-सफाई न होने से यहां कचरे का ढेर लग गया है। जनता को पानी की सुविधा देने वाला यह हैंडपंप अब गंदगी में दफन होकर बेकार पड़ा है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि गुरुवार और रविवार को सब्जी मंडी में दूर-दराज़ से आने वाले लोग सबसे ज्यादा परेशान होते हैं। नगर पालिका ने यदि कोई नई व्यवस्था बनाने की योजना बनाई भी है तो पहले वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए थी, उसके बाद पुराने नल बंद करने का निर्णय लिया जाना चाहिए था। अचानक सार्वजनिक नल बंद कर देना सीधा जनता को परेशान करने वाला कदम है।
लोगों का सवाल है कि आखिर किसके इशारे पर नल बंद किए गए? क्या कांग्रेसी पार्षदों ने खुद ही अपने प्रतिष्ठानों के सामने लगे नल बंद करने की पहल कर दी? अगर ऐसा है तो यह जनता के साथ सीधी नाइंसाफी है। और यदि ऐसा नहीं है तो पार्षदों को भी इस मामले पर खुलकर बोलना चाहिए, क्योंकि जनता में यह संदेश जा रहा है कि उन्होंने ही अपने निजी स्वार्थ के लिए यह कदम उठवाया। अगर इस मामले के पीछे वास्तव में उनकी भूमिका है तो जनता के गुस्से का सामना भी उन्हें ही करना पड़ेगा।
भाजपा परिषद भी इस मुद्दे पर खामोश बैठी है। विपक्ष में रहकर जनता की चिंता जताने वाले लोग अब सत्ता की गोदी में बैठकर सब भूल गए हैं। पानी जैसी मूलभूत सुविधा से जनता को वंचित करना किसी भी हाल में बर्दाश्त योग्य नहीं है। नगर पालिका के इस रवैये से साफ है कि करोड़ों के ठेके और दिखावटी काम प्राथमिकता हैं, लेकिन आम नागरिकों की बुनियादी जरूरतें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं।
जनता अब सवाल पूछ रही है–आखिर कब तक उन्हें पानी की एक-एक बूंद के लिए भटकना पड़ेगा? क्या नगर पालिका केवल बड़े कामों के शोर-शराबे में ही व्यस्त रहेगी और छोटे मगर सबसे जरूरी कामों को यूं ही अनदेखा करती रहेगी? जनता की फिक्र छोड़ने वाली पालिका के खिलाफ अब आवाज उठने लगी है, और यदि हालात नहीं सुधरे तो इसका खामियाजा सत्ता पक्ष और जिम्मेदार पार्षदों दोनों को भुगतना पड़ सकता है।