चोरी की रेत से पंचायत में हो रहा सड़क निर्माण

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     बिलों का हो रहा भुगतान, अफसर चुप्पी साधे बैठे

उमरिया। जिले का करकेली जनपद भर्रेशाही की चरम सीमा लांघ चुका है। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी उस पर अंकुश लगाने को तैयार नहीं हैं। प्रशासन की इस लापरवाही का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है जबकि भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त लोग रकम पीट कर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। हर जगह अनियमितता का बोलबाला है। लेकिन अफसरों का इस बात से कोई सरोकार नहीं रहता है। शासन का खजाना तो खाली हो रहा है लेकिन जनता को लाभ नहीं मिल रहा है। ग्राम पंचायत महिमार में भी इसी तरह अंधेर मची हुई है, लेकिन निर्माण कार्यों की स्थिति की समीक्षा नहीं हो रही है। रेत की खदाने बंद हैं फिर भी बिल लगाए जा रहे हैं।
सड़क निर्माण में हो रहा खेल
जनता की आवाजाही सुविधा के लिए एक सीसी सड़क 15 जून को स्वीकृत हुई थी। जिसका निर्माण 25 सितंबर 23 से शुरू हुआ था। बताया जाता है कि ग्रामपंचायत द्वारा एक ओर तो सड़क का गुणवत्ताविहीन निर्माण कराया जा रहा है और दूसरी ओर आराध्या ट्रेडर्स नामक एक वेण्डर संस्था द्वारा ताबड़तोड़ ढंग से रेत की सप्लाई की जा रही है। जो रेत लाई जा रही है उसके बिल भी पास हो रहे हैं। जनपद सीईओ को इस बात से मतलब नहीं कि रेत की जब वैधानिक खदाने बंद हैं तो रेत कहां से लाई जा रही है? निश्चित ही रेत की आपूर्ति अवैधानिक ढंग से हो रही है और चोरी की रेत पर शासन का पैसा व्यय किया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि चोरी का माल खरीदना अथवा उसका उपयोग करना भी अपराध की श्रेणी में ही आता है।
खनिज विभाग भी कमीशन ले रहा
खनिज विभाग की हालत तो यह है कि चाहे रेत की वैधानिक खदाने चलें अथवा अवैधानिक चलें उसे कमीशन सब तरफ से मिलना है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह भी खदानों की फिक्र मेें दुबला नहीं होता, न ही वह धरपकड़ करने जाता है। उसे यह कहने में भी गुरेज नहीं होता कि उसे नहीं मालुम कि अवैध खदाने कहां कहां चल रहीं हैं। क्योंकि उससे पूंछ कर कोई अवैधानिक काम नहीं करता है। लेकिन वहंी दूसरी ओर जब मुखबिर उसे अवैध उत्खनन की सूचना देते हैं तो अधिकारी के कारिंदे पूर्व से ही सूचना दे देते हैं। इसके बाद दबिश डाली जाती है। स्थल पर कुछ नहीं मिलता है, मुखबिर को ही झूठा साबित कर देते हैं।
सड़क का जायजा नहीं
सीईओ जनपद ने कभी महिमार गांव का भ्रमण कर यह देखने की जरूरत नहीं समझा कि आखिर सड़क किस तरह बनाई जा रही है। जितना बजट स्वीकृत हुआ है उस अनुरूप काम हो रहा है या नहीं। मटेरियल की लत्ता लपेटी कर अधिकांश बजट डकारा जा रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि घटिया निर्माण के कारण कुछ ही दिनों मे सड़क नष्ट हो जाएगी और आवाजाही की कठिनाई फिर उसी तरह से उत्पन्न हो जाएगी। शासन का बजट खत्म हो जाएगा लेकिन हालत जस की तस ही रह जाएगी।
जिला पंचायत सीईओ भी निष्क्रिय
जिला पंचायत सीईओ अगर चाहें तो प्रशासन के निचले अधिकारियों के सारे ढीले पेंच टाइट कर सक ते हैं। दो चार दिन वे अगर फील्ड का स्वयं मौका मुआयना करें तो उनके सामने सारी स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी। लेकिन वे भी झंझट में पड़ने की बजाय सीईओ जनपद की ही जमात में शामिल होना और लाभ कमाना ही ठीक समझते हैं। शासकीय दायित्व का ईमानदारी से पालन करने का पक्षधर कोई अधिकारी दिखाई नहीं पड़ता सब चोरों की पंगत में बैठकर मलाई छानना चाहते हैं। इसीलिए शासन की गौण खनिज सम्पदा बुरी तरह लुट रही है और उसके निगहबान मदहोशी के आलम में मस्त हैं।

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