सीवर हादसा: दो बैगा श्रमिकों की मौत ने उठाए सुरक्षा मानकों व प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल, ठेका कंपनी और निर्माण एजेंसी पर हत्या का मामला दर्ज क्यों नहीं?

स्थानीय लोगों के अनुसार, दोनों मृतक कुशल श्रमिक नहीं थे, फिर भी उन्हें गहरे खतरनाक गड्ढे में उतारा गया। करीब 11 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद दोनों के शव निकाले जा सके। महिपाल की गर्दन तक मिट्टी भरी थी और वह अंतिम समय तक बचने की गुहार लगाता रहा, परंतु रेस्क्यू टीम की देरी उसकी जान नहीं बचा सकी।
प्रशासन मौन, ठेकेदार गायब
घटना के बाद कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक तो मौके पर पहुंचे, लेकिन न तो ठेका कंपनी ‘स्नेहल ग्रुप’ के कोई वरिष्ठ अधिकारी आए, न ही निर्माण एजेंसी एमपीयूडीसी के अधिकारी घटनास्थल पर दिखे। यह रवैया दर्शाता है कि जिम्मेदारों के लिए मानवीय संवेदनाएं महज औपचारिकता रह गई हैं।
स्थानीय लोगों और मृतकों के परिजनों का आरोप है कि ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत से इस घटना को दबाने का प्रयास हो रहा है। कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष आजाद बहादुर सिंह ने शनिवार सुबह मृतक के घर पहुंचकर सोशल मीडिया पर लाइव होकर प्रशासन के दावों की पोल खोल दी। उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवारों को किसी भी प्रकार की सहायता नहीं दी गई, सिर्फ खानापूर्ति के लिए अंतिम संस्कार हेतु 8 क्विंटल लकड़ी दी गई।
कई जिलों में विवादों में रहा यह प्रोजेक्ट
गौरतलब है कि शहडोल का सीवर लाइन प्रोजेक्ट लंबे समय से विवादों में है। तय समयसीमा में कार्य पूरा नहीं हो पाने के बावजूद ठेका कंपनी को एक्सटेंशन दिया गया। बरसात के मौसम में सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर खुदाई कार्य कराया जा रहा है, जिससे आमजन को भारी असुविधा हो रही है। गहरे गड्ढों में बारिश का पानी भरने से लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। बावजूद इसके किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया।
अकुशल श्रमिक, अनुभवहीनता और लापरवाही—हादसा नहीं हत्या
स्थानीय नागरिक और सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग इस घटना को ‘हादसा नहीं हत्या’ मान रहे हैं। उनका कहना है कि ठेका कंपनी द्वारा बिना प्रशिक्षण व सुरक्षा के अकुशल श्रमिकों से काम करवाना सीधे-सीधे गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में आता है। बावजूद इसके केवल ‘मर्ग’ कायम कर पुलिस अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रही है।
प्रशासन की चुप्पी, ठेकेदार की हठधर्मिता
इस पूरे मामले में प्रशासन की निष्क्रियता और निर्माण एजेंसी की चुप्पी हैरान करने वाली है। एमपीयूडीसी के ज़िम्मेदार अधिकारी विजय सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया और टेक्स्ट संदेशों का भी कोई जवाब नहीं दिया। वहीं स्नेहल ग्रुप के पीसी नितेश मित्तल ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि वे बीते 15 दिन से बाहर हैं और जानकारी एमपीयूडीसी से ही मिल सकेगी।
पुलिस कार्रवाई पर भी उठे सवाल
थाना प्रभारी भूपेंद्रमणि पांडेय ने बताया कि मर्ग कायम कर लिया गया है और एमपीयूडीसी को पत्राचार कर ठेका कंपनी व सेफ्टी अधिकारियों की जानकारी मांगी गई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही आगे की कार्रवाई होगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि इतनी गंभीर घटना के बावजूद अब तक कोई एफआईआर क्यों नहीं की गई? क्या प्रशासनिक तंत्र दोषियों को बचाने की भूमिका में है?
क्या मिल पाएगा न्याय?
दो परिवार उजड़ गए, दो बच्चों के सिर से पिता का साया छिन गया, लेकिन दोषियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं के अनुसार, ठेकेदार और निर्माण एजेंसी द्वारा ‘डैमेज कंट्रोल’ के प्रयास किए जा रहे हैं और कथित रूप से नगद राशि का भी दुरुपयोग कर मामला दबाने की कोशिश हो रही है।
अब बड़ा सवाल यही है कि क्या शहडोल की यह घटना सिर्फ आंकड़ों में सिमट कर रह जाएगी, या फिर दो निर्दोष मजदूरों को मौत की गर्त में धकेलने वालों को न्यायिक दंड मिलेगा? जवाब शासन-प्रशासन को देना होगा।