जिला अस्पताल में दावाओं का टोटा, रोगी हो रहे परेशान

ग्रामीण अस्पतालों में न जांच की सुविधा न डाक्टर मिलते
शहडोल। जिला अस्पताल में आज भी न तो दवाएं पर्याप्त मिल रही हैं और न डाक्टरों की उपलब्धता रहती है। ओपीडी में एक दो डाक्टर उपलब्ध रहते हैं जहंा भारी भीड़ लगी रहती है। पेयजल की समस्या तो यहां स्थाई हो चुकी है। इस आदिवासी बहुल जिले में जन जन तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाने के लिए सरकार ने निरंतर स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया है। ग्रामीण अंचलों से लेकर संभाग मुख्यालय तक सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था है। मुख्यालय में तो जहां 4 सौ बिस्तरा शासकीय अस्पताल है वहीं एक मेडिकल कॉलेज भी है। लेकिन अव्यवस्थाओं का आलम ऐसा है कि रोगियों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है। अफसरों की गैरजिम्मेदाराना कार्यशैली सारी व्यवस्थाओं पर पानी फेर देती है।
दवांए कब आंएगी?
जिला अस्पताल की हालत ऐसी है कि यहां पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से दवाओं का अभाव बना हुआ है। ओपीडी में डाक्टर को दिखाने के बाद जब रोगी पर्चा लेकर दवा वितरण केन्द्र मे आता है तो उसे एक दो दवाएं कम दी जाती हैं और स्पष्ट कह दिया जाता है कि यह दवा यहां उपलब्ध नहीं है। यह स्थिति यहां काफी समय से बनी हुई है। मजबूर होकर रोगी मेडिकल स्टोर से संपर्क कर महगे दामों दवाई खरीदता है। इसी अस्पताल में पानी की भी सुविधा नहीं रह गई है। गर्मी केे समय यहां घड़े रखवाकर प्याऊ खेाल दिया गया था। लेकिन ठण्ड के इस मौसम में अब उसका भी सहारा नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी परेशानी
ग्रामीण अंचलों में खण्ड स्तर पर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र व ग्रामीण बस्तियों के बीच प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, उपस्वाथ्य केन्द्र संचालित किए हैं। यही नहीं चिकित्सा को नि:शुल्क बनाने के लिए 16 प्रकार की जांच एक्स रे आदि की नि: शुल्क सुविधा प्रदान की है। लेकिन इतने इंतजाम के बाद भी लोगों को इलाज की पर्याप्त सुविधा नहीं मिल पा रही है। कारण यह है कि सुविधाओं में कहीं बुनियादी खामियां हैं तो कहीं अमले ने स्थिति बिगाड़ रखी है। सिंहपुर सीएचसी अस्पताल का संचालन 50 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है, लेकिन आज तक यहां रेडियोलाजिस्ट का पद स्वीकृत नहीं है। इस कारण एक्सरे मशीन भी नहीं मगाई गई है।
एक्सरे के लिए भटकते हैं रोगी
सिंहपुर में लगभग 50-55 वर्ष पूर्व एक 30 बिस्तरा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र संचालित किया गया था। उन दिनों रेडियोलाजिस्ट का पद सृजित किया जाना था। जिसकी प्रक्रिया भी चली लेकिन बाद में बेध्यानी के कारण वह शिथिल प? गई और आज भी उसकी फाइल नहीं खुली। स्थिति यह है कि यहां आज भी रेडियोलाजिस्ट का पद स्वीकृत नहीं है। न रेडियोलाजिस्ट आया और न एक्सरे मशीन आई। हालत यह है कि यहां के रोगी को मजबूरन 12 किमी दूर शहडोल जाना पड़ता है।
झोला छाप डाक्टरों का धंधा
ग्रामीण क्षेत्रों में खासतौर बुढ़ार और जयसिंहनगर के आसपास झोला छाप डाक्टरों की भरमार है। यहां चूंकि ग्रामीण अंचलों में डाक्टरों की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है इसलिए रोगी झोला छाप डाक्टरों के पास जाकर इलाज कराते हैं और कुछ दिन बाद मुश्किल में पड़ जाते हैं। सरकार ने रिमोट एरिया में ड्यूटी करने वाले डाक्टरेां को पृथक से भत्ता देती देती है। इसके बावजूद वे अस्पतालों में नहीं रहते। बताते हैं कि खैरहा अस्पताल की यही स्थिति है।