खनिज विभाग से नहीं छूट रहा सैनिक का मोह

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शहडोल। स्थानीय खनिज विभाग अपनी स्वेच्छाचारिता के लिए एक बार फिर चर्चा में आ गया है। मामला नगर सैनिक की सेवा को लेकर सामने आ रहा है। हालात चाहे जैसे हों विभाग की वसूली व अवैध उत्खनन परिवहन की प्रक्रिया बेखटके जारी रहती है। इसके लिए कुछ पक्के व अभ्यस्त निचले कर्मचारी बड़े काम के साबित होते हैं। अवैध कारोबार में इन्ही की सेवा ली जाती है। शायद यही कारण है कि कलेक्टर द्वारा स्थानांतरित किए जाने के बाद भी खनिज विभाग का नगर सैनिक उसी जगह पर आज भी कार्यरत है। लेकिन ऊपर के आदेशों की अवज्ञा करना तो शायद कलेक्टर ने ही सिखाया है।

मामला यह है कि कलेक्टर ने जिले के सभी विभागों में पदस्थ नगर सैनिकों को इधर से उधर कर दिया था। इसी तारतम्य में खनिज विभाग का नगर सैनिक मृगेन्द्र सिंह भी हटाया गया था। लेकिन उसके हटने से विभागीय अफसरों को अपने खेल में असुविधा होती प्रतीत हुई और उन्होने फिर जैसे तैसे उसकी नियुक्ति उसी जगह पर पूर्ववत करा ली है। बताया गया कि नगर सैनिक को नई जगह जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसका आदेश स्वयमेव निरस्त हो गया है। नगर सैनिक की शासन सम्मत ड्यूटी की अगर चर्चा की जाए तो उस ड्यूटी का पालन कोई दूसरा नगर सैनिक भी कर सकता था। फिर भी मृगेन्द्र सिंह को नहीं हटाया गया। चर्चा है कि नगर सैनिक मृगेन्द्र सिंह खनिज विभाग के अफसरों की पहली पसंद है। इसका कारण यह है कि वह इंसपेक्टरों के इशारों पर वसूली करने में मददगार साबित होता है। मृगेन्द्र सिंह एक अरसे से इंसपेक्टरों के साथ रहकर इस कार्य में माहिर और अभ्यस्त हो चुका है और रेत, मुरुम आदि का अवैध कारोबार करने वाले माफिया के लोग भलीभांति पहचानते हैं। इसलिए उसके माध्यम से वसूली करना बड़ा आसान रहता है। मृगेन्द्र सिंह स्वयं भी यहां से हटने का इच्छुक नहीं था क्योंकि वसूली की छांछ उसे भी मिलती रही है।

खनिज विभाग एक ऐसा विभाग है जहां शासन के कानून कायदे नहीं बल्कि स्वेच्छाचारिता और अमले की मनमानी काम करती है। अगर प्रशासनिक प्रक्रिया सब पर एक समान लागू होती है तो फिर किसी एक कर्मचारी को  खास तरह का लाभ दिलाना पक्षपात की श्रेणी में आता है। इसका असर दूसरे कर्मचारियों पर पड़ता है और वे कुण्ठा के शिकार होते हैं। प्रशासन से उनका विश्वास उठता है और इसका असर जनता के कार्यों पर पड़ता है। लेकिन इतनी दूर तक सोचने की अब जरूरत नहीं रही केवल अपने निहित स्वार्थ देखे जाते हैं और उसी के अनुसार जायज व नाजायज बर्ताव किया जाता है।

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