सोन नदी का सीना फिर छलनी रेत माफिया बेलगाम, बुढार में फिर गूंजा अवैध खनन का डंका
क्या पुलिस और प्रशासन किसी नए बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं?शहडोल। सोन नदी का सीना एक बार फिर छलनी किया जा रहा है। बुढार थाना क्षेत्र अंतर्गत जरवाही घाट, बटली घाट, सोनवर्षा, सेमरा और मरजाद इलाके में अवैध रेत खनन का गोरखधंधा खुलेआम चल रहा है। रात के अंधेरे में डंपर, ट्रैक्टर और हाइवा की कतारें सोन नदी के घाटों से निकलती हैं और कोई रोकने वाला नहीं। यह सब उस समय हो रहा है जब न तो रेत का नया ठेका शुरू हुआ है, न ही खनन की कोई वैध अनुमति। लेकिन फिर भी सोन नदी की रेत बिक रही है खुलेआम, सरेआम, और प्रशासन की नाक के नीचे।
सूत्रों के मुताबिक, यह अवैध कारोबार पिछले कुछ दिनों से तेज़ी से बढ़ा है। पुराने अफसरों के तबादले के बाद खनन माफिया ने नई सेटिंग तैयार कर ली है। बताया जा रहा है कि बीते सप्ताह खनिज माफियाओं ने नए साहब से सौदा तय कर लिया और उसी रात से रेत की अवैध निकासी शुरू हो गई। अब 5500 प्रतिदिन मेटाडोर रेट फिक्स कर दिया गया है, जिसमें विभागीय और वर्दीधारी हिस्सेदारों तक रकम पहुंचाने की पूरी व्यवस्था तय कर दी गई है।
खनिज विभाग और वर्दी की साठगांठ का खुला खेल
खनिज विभाग की भूमिका सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में है। पूरे जिले में अवैध रेत खनन की खबरें हर रोज सामने आ रही हैं, लेकिन विभाग ने जैसे साइलेंट मोड ऑन कर लिया है। न कोई कार्रवाई, न कोई जब्ती, न ही किसी घाट पर निगरानी की पहल। ऐसा लग रहा है कि विभाग की नजरें अब वसूली पर टिकी हैं, न कि रोकथाम पर।
इधर, वन विभाग भी औपचारिकता निभाने से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। रात में जब दर्जनों ट्रैक्टर रेत लेकर गुजरते हैं, तो चौकियों पर खामोशी छाई रहती है। वहीं बुढार पुलिस की स्थिति और भी संदिग्ध हो गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्दी वाले अब रेत जांच को कमाई का जरिया बना चुके हैं कुछ रुपये लेकर गाड़ी छोड़ देना अब आम बात हो गई है।
क्या दोहराई जाएगी वो भयावह स्क्रिप्ट?
यह हालात नए नहीं हैं। पिछले वर्षों में शहडोल जिले में रेत माफिया के आतंक ने कई बार जानें ली हैं।
बीते साल ब्योहारी क्षेत्र में एक पटवारी की हत्या रेत माफियाओं ने इसलिए कर दी थी क्योंकि उसने अवैध खनन का विरोध किया था।
सोहागपुर क्षेत्र में एक पुलिस अधिकारी पर हमला हुआ जब उसने अवैध ट्रैक्टर रोकने की कोशिश की थी।
और अब बुढार में वही हालात दोहराने की तैयारी दिख रही है न कोई डर, न कोई रोक।
सवाल यह है कि क्या प्रशासन और पुलिस फिर किसी “बड़े हादसे” का इंतजार कर रहे हैं? क्या फिर किसी ईमानदार कर्मचारी की लाश ही कार्रवाई की शर्त बनेगी?
रात-दिन चल रहा रेत का काला कारोबार
जरवाही, बटली, सोनवर्षा और मरजाद घाटों से हर रात सैकड़ों ट्रॉली रेत निकल रही है। ट्रैक्टर और डंपर के काफिले दिन में भी गांवों के बीच से निकलते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अब तो ये धंधा जैसे वैध हो गया है। कई बार लोगों ने सूचना दी, लेकिन न तो थाना सक्रिय हुआ न ही खनिज अमला।
मौके पर देखा गया है कि घाटों पर भारी मशीनें भी लगाई जा चुकी हैं। पोकलेन और जेसीबी मशीनें सीधे नदी की धार में जाकर रेत निकाल रही हैं। इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हो रहा है और आसपास के गांवों में जलस्तर लगातार गिर रहा है। पर प्रशासन आंख मूंदे बैठा है।
वर्दी की ‘कमाई’ और जनता की परेशानी
पुलिस पर आरोप है कि बुढार क्षेत्र में रेत वाहनों की निगरानी अब सिर्फ नाम की रह गई है। दरअसल, यह निगरानी अब जांच से ज्यादा वसूली में बदल गई है। ट्रैक्टर रोककर कुछ नोट जेब में रख लेना, फिर गाड़ी को आगे बढ़ा देना यही अब नया नियम बन चुका है। कई बार ट्रैक्टर चालकों ने खुद कहा है कि हम पुलिस वालों को भी हिस्सा देते हैं, तभी गाड़ी चलती है।
यही कारण है कि रेत माफिया अब इतने निडर हो गए हैं कि खुलेआम रात में घाटों पर लाइट जलाकर रेत भरते हैं।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि अगर प्रशासन अब भी नहीं जागा तो सोन नदी का सीना ही नहीं, पूरे जिले की साख मिट्टी में मिल जाएगी।
पर्यावरण और जनहित पर भारी यह कारोबार
रेत की लगातार निकासी से नदी की गहराई असामान्य रूप से बढ़ रही है, जिससे तट के किनारे बसे गांवों में धंसान की स्थिति बन रही है। पानी की धारा बदलने से किसानों की सिंचाई पर असर पड़ रहा है और पेयजल संकट गहराता जा रहा है। लेकिन यह सब किसी को दिखाई नहीं दे रहा।
जनता अब सवाल कर रही है क्या प्रशासन किसी नई लाश के इंतजार में बैठा है? क्या फिर किसी कर्मचारी या पत्रकार को कुचल दिए जाने के बाद ही बुढार में कार्रवाई होगी?
अगर जिले के पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर ने अब भी इस पर सख्त कदम नहीं उठाए, तो यह मामला सिर्फ रेत का नहीं रहेगा यह पूरे शासन-प्रशासन की नाक का सवाल बन जाएगा।