कमीशन की दीमक ने चाट लिया विकास

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पंचायत में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े निर्माण कार्य

तालाबों की उपयोगिता पर भी उठने लगे सवाल, जांच की मांग

उमरिया। जिले की बिरसिंहपुर पाली जनपद की दर्जनों ग्राम पंचायत में जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। कमीशन खोरी के चलते सीसी सड़क से लेकर स्टॉप डैम, नाली-नाले और तालाबों से लेकर हर निर्माण कार्य बेहद घटिया स्तर की सामग्री से किया गया है। गुणवत्ता और मूल्याकंन में की गई लापरवाही के चलते हुए निर्माण कार्य अपनी अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं। इस तरह के भ्रष्टाचार में सरपंच-सचिव और रोजगार सहायक ही नहीं बल्कि, पंचायत विभाग के इंजिनियर, एसडीओ और पीओ नरेगा सहित अन्य अफसर भी अहम भूमिका निभा रहे है। ग्रामीण अब इनके खिलाफ लामबंद होने की तैयारी करते नजर आ रहे हैं।

भ्रष्टाचार के लग रहे आरोप

बिरसिंहपुर पाली जनपद अंतर्गत आने वाली कुछ ग्राम पंचायतों में इंजीनियर गजेंद्र सिंह राठौर द्वारा सरपंच, सचिव व रोजगार सहायक को कमीशन का मोह दिखाकर हितग्राही मूलक, जनहितकारी योजनाओं एवं ग्राम विकास की सरकारी योजनाओं को पलीता लगाया जा रहा है। संभागीय मुख्यालय से करीब 7 किलोमीटर दूरी पर बना हुआ एक तालाब अपने साथ की गई अनदेखी तो बयां कर ही रहा है, ऐसा नहीं है कि पूर्व में कभी तथाकथित इंजीनियर पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं, अगर इनके पुराने कार्यकाल की फाईल खंगाली जाये तो, बड़े भ्रष्टाचार का खुलासा हो सकता है।

तालाब की उपयोगिता पर सवाल

इंजीनियर गजेन्द्र सिंह राठौर को मिली लगभग पंचायतों में हुए निर्माण कार्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुके हैं, सूत्रों की माने तो शाहपुर ग्राम पंचायत में देव मड़इया के पास महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत तालाब का कार्य प्रारंभ 12 मार्च 2020 को किया गया था, जिसकी लागत 14.21 लाख रुपए है। लाखों खर्च के बाद भी यह तालाब अपनी उपयोगिता के लिए साबित सिद्ध होता नहीं दिख रहा। चर्चा है कि उक्त तालाब निर्माण में शासकीय राशि को हड़पने का प्रयास किया गया है। निर्मित तालाब की अगर एक बार पुन: जांच हो जाये, तो इंजीनियर के कारनामें खुलकर सामने आ जायेंगे।

तकनीकी मापदंडों का नहीं रखा ख्याल

आरोप है कि देव मड़इया के पास महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत तालाब के कार्य में तकनीकी मापदंडों की धज्जियां उड़ाई गई है, तालाब निर्माण किए जाने के मूल उद्देश्य के पूर्ति भी यहां दिखाई नहीं दे रही है। आलम यह है कि वर्तमान में बरसात में ही इस तालाब में पानी का भराव नाम मात्र है। अगर यह स्थिति इस बरसात के मौसम में है, तो आगे आने वाले समय में तलाब में पानी के भराव को लेकर क्या स्थिति बन सकती है, यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

फर्जी बिलों का खेला-खेल

ग्रामीणों का कहना है कि तालाब की पटल खुदाई नाम मात्र की हुई है और काली मिट्टी न डलवाकर वहीं की मिट्टी डाल दी गई है, तालाब में काली मिट्टी डालने का प्रावधान इसलिए है ताकि तालाब का पानी बाहर न जाकर वहीं रहे, दिखावे के लिए जिम्मेदार ने कुछ काली मिट्टी का उपयोग किया है, वहीं खबर यह भी है कि काली मिट्टी डालने के नाम पर फर्जी बिल पर राशि का आहरण किया गया है, जानकारों की माने तो तालाब निर्माण का कार्य गलत जगह कर शासन को चूना लगाने का काम किया गया है।

कार्यशैली को लेकर आक्रोश

ली अंतर्गत कथित इंजीनियर की पदस्थापना वाली पंचातयों में तालाब निर्माण की अपनी अलग ही कहानी बयां कर रही है, सूत्रों की माने तो ग्राम पंचायतों के सरपंच-सचिवों में इनकी कार्यशैली को लेकर भारी आक्रोश है, लेकिन दबाववश सरपंच-सचिव एवं रोजगार सहायक कुछ नहीं कह पाते। कुछ रोजगार सहायकों, सचिवों एवं सरपंचों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इंजीनियर राठौर द्वारा दबाव बनाते हुए मनमानी पूर्ण कार्य को अंजाम दिया जाता है। उनकी मनमानी को लेकर सवाल जवाब किया, तो वरिष्ठ अधिकारियों की कार्यवाही का भय दिखाकर अपने मंशानुरूप कार्य को अंजाम दिया जाता है। ग्रामीणों सहित जनप्रतिनिधयों का कहना है कि अगर कथित इंजीनियर को दी गई ग्राम पंचायतों में हुए निर्माण कार्याे की जांच की जाये तो, दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है।

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