मिठाइयों में मिलावट कर जहर बांट रहे मिष्ठान भण्डार

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कमीशन खाकर चुप्पी साधे बैठा विभागीय अमला, जनस्वास्थ्य खतरे में

 

शहडोल। होली का पर्व करीब आता जा रहा है, खाद्य सामग्रियों के सौदागर अपना मुनाफा बढ़ाने जमकर मिलावटखोरी कर रहे हैं। नकली तेल, नकली घी, नकली मावा, व नकली मसालों का इस्तेमाल कर मिठाई, नमकीन व अन्य सामग्रियां बनाई जा रहीं हैं। इन्हे इस बात का कोई खौफ नहीं कि कानून व्यवस्था नाम की भी कोई चीज है। कानून का कोड़ा चलाने वालों को इन्होने बंधुआ बनाकर रख लिया है। गड्डियां सबको मिल रही हैं। मिठाइयों में आकर्षण पैदा करने उनमें प्रतिबंधित कलर मिलाए जा रहे हैं। लोगों का स्वास्थ्य खराब होता है तो होता रहे उनकी बला से ।

राजस्थान स्वीट्स को ही देख लें

बुढ़ार नगर स्थित राजस्थान स्वीट्स मिष्ठान भंडार तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां जनस्वास्थ्य के लिए हानिप्रद  पाम आयल का उपयोग किया जा रहा है। पाम आयल से मिठाइयां व अन्य नाश्ते के सामान बनाए जा रहे हैं। घटिया तेल से अन्य नमकीन व कचौरियां, समोसे आदि बनाकर बेचे जा रहे हैं। डाक्टरों का मानना है कि इस तेल से किडनी की शिकायत हो सकती है। इसके यहां पाम आयल के पूरे केन आते हैं और यह इस तेल का एक बड़ा उपभोक्ता है। इसके अलावा केसर, इलाइची, व अन्य सामानों के रासायनिक एसेंस उपयोग मेें लाए जा रहे हैं। दो कौड़ी की मिठाई  सैकड़ों रुपए किलो बेच कर मुनाफा कमाया जा रहा है और लोगों को चूना लगाया जा रहा है। जानकारी तो यह भी मिली है कि इस दूकानदार द्वारा बड़ी कंपनियों के नाम का उपयोग कर स्वयं का घटिया प्रोडक्ट बेचा जा रहा है। जिसमें मैन्यूफैक्चर व एक्सपायरी कुछ दर्शित नही रहता।

कई डेयरी वाले भी इसी होड़ में

जिले के कई मिष्ठान भंडार संचालक व डेयरी वाले भी मिलावटखोरी के इसी धंधे ेमें लिप्त हैं। अमानक स्तर की खाद्य सामग्रियों का इस्तेमाल कर उन्हे ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है। छेना पनीर की बदबू रसायन से साफ कर और मावे की फफूंद  को पोंछ कर खोवे की मिठाई के नाम पर भारी भरकम कमाई की जा रही है। दो कौड़ी की मिठाई सैकड़ों रुपए में यहां भी बेची जा रही है। मिष्ठान भण्डार के संचालक जन स्वास्थ्य से सरोकार नहीं रखते हुए  केवल अपना मुनाफा कमा रहे हैं।

टॉरगेट पूरा करना काफी है

जांच के लिए खाद्य एवं औषधि विभाग और नापतौल विभाग है, इन दोनो का काम  जांच पड़ताल करना और रिपोर्टिग करना है। लेकिन दोनो छुटभइयों के यहां जांच पड़ताल कर अपना विभागीय टारगेट पूरा कर मजे से शहरों में मलाई छानते रहते हैं। नापतौल विभाग को तो कोई जानता ही नहीं है। पेट्रोल पम्पों की जांच व दूकानों की जांच, तराजू बाट आदि की जांच भी इसे ही करना चाहिए, तराजू बाट की जांच  करना इसी की जिम्मेदारी है लेकिन कभी जांच पड़ताल नहीं की जाती है।

गड्डी ले रहे तो जांच क्यों करेंगे?

संभाग मुख्यालय में जितनेे डेयरी संचालक और मिष्ठान भण्डार संचालित हैं उन सभी का सेम्पल लेना जरूरी है। खाद्य सामग्र्रियों की नियमित जांच पड़ताल नहीं होने का एक बड़ा कारण विभागीय अमले के आर्थिक समीकरण का होना है। अमले की तो यही मंशा रहती है कि खूब मिलावटखोरी करो लेेकिन हमारी गड्डी सेट रखो तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय। देानो खुश, रहा सवाल पब्लिक का तो उसे उसके हाल पर छोड़ दो।

 

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