सार्वजनिक शौचालयों के न ताले खुले न उपयोग हो रहा

संचालित करने की समस्या, करोड़ों का व्यय बेकार
शहडोल। स्वच्छतापूर्ण पद्धति से निस्तारी सुविधा के संदर्भ में जन जन को जागरुक करने के उद्देश्य से सरकार ने वर्षों पहले सार्वजनिक पक्के शौचालयों का निर्माण करा करोड़ोंं रुपए फूंक दिए लेकिन इन शौचालयों का आज तक उपयोग नहीं हो सका। आलम यह है कि ग्रामपंचायतों में शौचालय कक्ष बनने के बाद से उनमें जो ताला पड़ा कि फिर आज तक नहीं खुला। कमरे बनवाकर पैसा तो फूंक दिया लेकिन अब इतनी कूबत नहीं है कि इन शौचालयों का संचालन किया जा सके। जिले भर की सभी लगभग 390 पंचायतों में निर्माण हुआ और करोड़ों का धन खर्च हुआ। शासन इन शौचालयों के माध्यम से आय का भी स्त्रोत निर्मित करना चाहता था।
यह था शौचालय का उद्देश्य
शौचालयों का निर्माण कराने के बाद उसे राहगीरों के लिए खोला जाना था। एक तरह से इसका उपयोग सुलभ कॉम्पलेक्स की तरह उपयोग किया जाना था। लोग इधर उधर खुली जगह में गंदगी नहीं करें और सुरक्षित जगह का उपयोग कर उसका मूल्य चुकाएं। दूसरी ओर निस्तारी सुविधा देने वाले कुछ शुल्क लेकर उसे उपयोग करने दें। इससे एक ओर तो आय का साधन तैयार होगा और दूसरी ओर लोगों की आदत में सुधार होगा। वे खुली जगह का इस्तेमाल करने से बाज आएंगे।
अभी तक रूपरेखा तय नहीं
ग्रामपंचायतेां में अभी तक यह तय नहीं हो पाया कि शौचालयों का संचालन किसके सुपुर्द किया जाए। पहले प्रयास किया गया कि स्वसहायता समूहों को इन्हे सौंप दिया जाए। लेकिन समूहों ने इसे लेने से इंकार कर दिया, तब से यह अधर में लटक गया। समूहों ने इसके संचालन में अपनी असमर्थता जतायी। इसमें सबसे बड़ी असुविधा सफाई की है, पंचायतों में सफाई कर्मी नहंी मिलते हैं। शौचालयों की सफाई कौन करेगा यही अहम मसला है। शौचालयों का संचालन मुख्यतया पानी की उपलब्धता और सफाई सुविधा पर निर्भर करता है। ग्रामपंचायतों में देानेां की कमी है।
एकांत में बने शौचालय
शौचालयों का निर्माण आवाजाही वाले स्थलों में राहगीरों की सुविधा के लिए कराया जाना था। लेकिन चूंकि पंचायतों में सरकारी जगह मौके पर नहीं मिल सकी, इसलिए जहां कोने एकांत में जगह मिली शौचालय बनवा दिए गए। ऐसी जगहों में निर्माण कार्य तो करा दिया गया लेकिन निस्तार करने वालों की आवक जावक ही नहीं है, शौचालय किसके लिए खोले जाएंगे। इसके अलावा इन शौचालयों में पानी की भी विशेष व्यवस्था नहंी है। एक अड़ंगा यह भी है। इस तरह आज तक शौचालयों के ताले नहीं खुले। शौचालय धीरे धीरे जर्जर होते जा रहे हैं।