सीएस शपथ पत्र दें कि अस्पताल की उन्हे जानकारी नहीं रहती

जब रोगी का शपथ पत्र बनेगा तब अस्पताल में शुरू होगा इलाज
इंट्रो-जिला अस्पताल में सिविल सर्जन की प्रशासनिक व्यवस्था में अराजकता इस कदर हावी हो चुकी है कि डॉक्टर रोगियों से उपचार के लिए सरेआम घूंस मांगने लगे हैं। सर्जरी के एक मामले में जब डाक्टर पर कार्रवाई हुई तो सिविल सर्जन ने फरमान जारी कर दिया कि अब भर्ती होने वाले रोगी को शपथ पत्र देना होगा कि उसने डाक्टर को रिश्वत नहीं दी है। ऐसा आदेश प्रदेश का शायद पहला आदेश है।
शहडोल। जिला अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने सिविल सर्जन ने ठोस व प्रभावी कदम उठाने की बजाय शपथ पत्र बनवाने का एक बेहूदा फरमान जारी किया है। जिस अस्पताल में रोगियों से रिश्वत वसूलने का खेल चल रहा था उसके मुखिया तो सिविल सर्जन ही हैं। सब कुछ उन्ही के मातहत डाक्टर कर रहे थे। अगर सिविल सर्जन में इतनी खुद्दारी है तो सबसे पहले वे ही इस बात की शपथ दें कि अस्पताल में जो होता है उनकी जानकारी में नहीं होता है और आगे से केवल सर्जन ही नहीं कोई भी डाक्टर या स्टाफ किसी रोगी से रिश्वत नहीं लेगा। तब तो शपथ पत्र की प्रक्रिया ठीक मानी जा सकती है। रोगी को ही पीड़ा सहनी पड़े, रोगी का ही ऑपरेशन हेा और रोगी को ही शपथ देनी पड़े। सिविल सर्जन केवल दूसरों का दर्द बढ़ा सकते हैं लेकिन दवा नहीं दे सकते। सिविल सर्जन का आदेश विचारणीय है।
इस तरह हुई थी घटना
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों जिला अस्पताल में विधायक जयसिंह मराबी के वाहन चालक से आपरेशन के नाम पर डॉ. अपूर्व पाण्डेय ने चार हजार रुपए की रिश्वत ले ली थी। जिसकी शिकायत कलेक्टर से हुई थी और फिर कलेक्टर की नोटशीट पर कमिश्नर ने डॉक्टर को निलम्बित कर दिया था। यह मामला मीडिया की सुर्खियों के साथ जनचर्चा का विषय बना रहा और लोगों ने अस्पताल प्रशासन की जमकर निंदा की थी। डॉक्टर अपूर्व पाण्डेय का यह कोई पहला मामला नहीं था उन्होने कुछ और भी रोगियों से पैसों की मांग की थी। सूत्रों के अनुसार अस्पताल मेें इस तरह के खेल काफी दिनों से चल रहे थे।
ऐसा जारी हुआ सीएस का फरमान
शनिवार को सिविल सर्जन डॉ. जी.एस. परिहार ने जिला चिकित्सालय में कार्यरत समस्त सर्जिकल विशेषज्ञ, अस्थि रोग विशेषज्ञ एवं पीजीएमओ सर्जरी को आदेशित किया है कि ऑपरेशन के पहले मरीज एवं उनके सगे संबंधी परिजनों से शपथ पत्र लें, जिसमें उल्लेख हो कि हमारे द्वारा ऑपरेशन के लिए चिकित्सक को कोई पैसा नहीं दिया गया है। शपथ-पत्र अधोहस्ताक्षरी के समक्ष प्रस्तुत करने के पश्चात ही ऑपरेशन करना सुनिश्चित करें। ऐसा न करने पर संबंधित चिकित्सक व विशेषज्ञ के विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी। मसला यह है कि क्या शपथ पत्र से भ्रष्टाचार रुक सकता है? अगर चोरी घर के लोग ही कर रहे हों तो क्या उसकी निगरानी की जा सकती है?
रोगी की बढ़ेेगी परेशानी
सिविल सर्जन के आदेश का पालन करने के लिए पीडि़त रोगी को कितना कष्ट सहना पड़ेगा इस मानवीय पहलू पर भी विचार किया जाना आवश्यक है। उसका इलाज तब तक शुरू नहीं होगा जब तक कि शपथ पत्र बनकर तैयार नही होगा। सिविल सर्जन की मंशा शायद यह है कि मरीज अब अस्पताल में भर्ती हेा तो कार्यालय के दिनों में भर्ती हो, अवकाश के दिन में भर्ती न हो, ताकि उसका शपथ पत्र बन सके। अब रोगी के परिजनों को शपथ पत्र बनवाने में भी व्यय करना पड़ेगा। माना जाता है कि किसी अस्पताल में इस तरह का आदेश प्रदेश का एक अनोखा आदेश है। जहां रोगी को शपथ पत्र देना होगा। भ्रष्टाचार रोकने के तो पहले से ही इतनी कानून बने हुए हैं उन्ही का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है। सीधी सच्ची बात यह है कि अगर नीयत में खोट हो तो कोई कागज उसे ठीक नहीं कर सकता है।