सरपंच सचिव और रोजगार सहायक की तिकड़ी ने रोका हर्रा टोला का विकास

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सुधीर यादव :9407070722
शहडोल | ग्राम पंचायत हर्रा टोला में भ्रष्टाचार के चलते गांव के विकास कार्य और निर्माण रुक गए है| पंचायत में पदस्थ सचिव और सरपंच के भ्रष्टाचार के नए-नए किस्से सामने आते ही रहते हैं| शासन द्वारा लाखों रुपए की राशि ग्राम पंचायत को दी जाती है ताकि गांव का सही विकास हो सके | सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक की मिली भगत से निर्माण कार्य की राशि का आहरण तो कर लेते हैं, लेकिन मौके पर तब तक कोई काम शुरू नहीं करते जब तक उनकी शिकायत नहीं होती । इसके अलावा ग्राम पंचायत द्वारा फर्जी फार्मों के सहारे राशि का आहरण किया जा रहा है इसके अलावा खरीदी के लिए ना तो निविदा स्वीकृत होती है और ना ही खरीदी दर निर्धारित होती है, जिसकी बानगी जिले भर की कई ग्राम पंचायत में देखी जा रही है । साथ ही खदानें मौजूद न होने के बावजूद खनिज की खरीदी की जाती है इस पूरे मामले में जनपद से लेकर खनिज अमला चुप्पी साधे हुए हैं ।
बिलों के सत्यापन की फुर्सत नहीं
ग्राम पंचायत के विकास के लिए लाखों की राशि शासन द्वारा पंचायत के खाते में डाले गए लेकिन पंचायत का विकास कितना हुआ यह तो धरातल पर जाकर देखा जा सकता है| हर्रा टोला पंचायत के जिम्मेदार निर्माण कार्य के नाम पर शासकीय राशि का जमकर बंदर-बांट कर रहे हैं, निर्माण कार्य आधे-अधूरे तो कुछ शुरू ही नहीं हुए पर उप यंत्री द्वारा कोई मूल्यांकन नहीं किया जा रहा| इसके अलावा पंचायत में सैकड़ो की संख्या में फर्जी बिल लगाए गए हैं, लेकिन जनपद में बैठे जिम्मेदारों को बिलों के सत्यापन तक की फुर्सत नहीं|
सबसे अधिक आवास स्वीकृत
ग्राम पंचायत के सचिव और रोजगार सहायक लोगों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर उन्हें पात्र या अपात्र निर्धारित कर रहे हैं जो लोग उनकी जेबे गर्म कर रहे हैं, वह पात्र है और जो गरीब असहाय हैं, जो इनकी जेबे गरम नहीं कर पाते उन्हें अपात्र साबित कर दिया जा रहा है । जुबली इस पंचायत में सबसे अधिक पीएम आवास स्वीकृत हुए हैं, कुछ आवास बिना मापदंड के भी बनाए जा रहे हैं । जिन लोगों के पक्के मकान बने हुए हैं या जो लोग उच्च पद पर है उन्हें भी आवास की स्वीकृति मिल गई है|
मजदूरों के नाम पर गोल-माल
ग्राम पंचायत में जो भी निर्माण कार्य चाहे नाली निर्माण हो या शाला की बाउंड्री वॉल निर्माण या फिर पंचायत भवन मरम्मत या कोई भी निर्माण कार्य हो इनमें श्रमिकों के नाम पर जो भुगतान होते हैं उनमें कभी सरपंच की पत्नी तो कभी सचिव का परिवार तो कभी रोजगार सहायक की रिश्तेदारों के नाम पर भुगतान होते रहते हैं , जबकि गांव वालों की माने तो इनमें से किसी के परिवार के सदस्य को कभी मजदूरी करते नहीं देखा गया है|

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