छठ पूजा: आस्था और श्रद्धा का महापर्व
सूरज श्रीवास्तव
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कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाला छठ महापर्व भारतीय संस्कृति की अद्वितीय परंपराओं में से एक है, जो चार दिनों तक सूर्य देव की उपासना का विशेष विधान लेकर आता है। इस पर्व में व्रतियों द्वारा सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा की जाती है, जिसमें विशेष नियमों का पालन करना होता है।
छठ पूजा का आरंभ इस वर्ष 5 नवंबर को “नहाय खाय” के साथ हो रहा है। इस दिन श्रद्धालु नदी, तालाब या किसी पवित्र जल स्रोत में स्नान कर पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं। इसे स्वच्छता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, जो पर्व की शुरुआत का प्रतीक है।
पर्व का दूसरा दिन 6 नवंबर को “खरना” के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन व्रतधारी नए मिट्टी के चूल्हे पर खीर बनाते हैं और इसे छठी मैया को भोग लगाकर ग्रहण करते हैं। खरना के बाद से व्रत की पूर्णता का नियम शुरू हो जाता है।
7 नवंबर को छठ पूजा के तीसरे दिन व्रतधारियों द्वारा निर्जला उपवास रखा जाता है। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान होता है, जहां हजारों श्रद्धालु एकत्र होकर जलाशयों पर सूर्यास्त के समय सूर्य देव की आराधना करेंगे।
अंतिम दिन, 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व का समापन होता है। इस दिन व्रतियों का उपवास टूटता है और परिवार में प्रसाद वितरण कर पर्व का पारण होता है। छठ पूजा की महत्ता और उल्लास से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत पूरे भारत में हर्षोल्लास का वातावरण बना रहता है।
यह पर्व न सिर्फ आस्था का प्रतीक है बल्कि इसमें प्रकृति के प्रति आभार और संतुलन बनाए रखने का संदेश भी निहित है।