गांधी के फेर में प्रमाणित अपराध घिसट रहा विवेचना में

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अमलाई थाना प्रभारी और विवेचना अधिकारी का कारनामा
खुद की आरटीआई में दी जानकारी से भी मूंदी आंखे
मामला फर्जी मार्कसीट की प्रमाणित जांच का

(अमित दुबे+8818814739)
शहडोल। जनता को न्याय दिलाने के लिए देश भक्ति और जनसेवा की शपथ लेकर लोकसेवक बने वर्दीधारी जुगाड़ के आगे सारे कायदों को भूल चुके हैं, प्रदेश के मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक के निर्देश भी जिले के अमलाई थाने में बेअसर साबित हो रहे हैं। यही वजह है कि 2 वर्षाे से सोहागपुर एरिया में पदस्थ विजय गौतम नामक कालरी कर्मचारी की फर्जी मार्कसीट का मामला एफआईआर में तब्दील नहीं हो सका। पुलिस अधिकारी इस मामले को सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी के समान पालकर उसके अण्डे खा रहे है और 2 सालों से थाना प्रभारी कलीराम परते और जांच अधिकारी भूपेन्द्र सिंह जैसे पुलिसकर्मी इस मामले को पंजीबद्ध करने की बजाय उसे विवेचना के नाम पर घसीट रहे हैं।
क्या हैं एफआईआर के मायने
प्रदेश के विभिन्न थानों में पीडि़तों की शिकायतें दर्ज न कर उन्हें विवेचना में लेने और जुगाड़ बनाकर निपटाने की शिकायतों के बाद ही पुलिस मुख्यालय भोपाल से थानों में पहुंच रहे मामलो में तत्काल एफआईआर अर्थात प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के बाद मामले की विवेचना करने के आदेश दिये गये थे, लेकिन थानों में बैठे प्रभारियों ने इस आदेश को अपनी सुविधा के अनुसार लागू कर दिया। किस मामले में तत्काल एफआईआर के आदेश का पालन करना है और बाद में विवेचना करनी है और किसे जुगाड़ के खातिर विवेचना के नाम पर लटकाना है और तब तक सोने के अण्डे खाने हैं जब तक सामने वाला दे सके, उसके बाद आवश्यकता हुई तो एफआईआर करनी है, यह सब प्रभारियों ने तय करना शुरू कर दिया है। सोहागपुर एरिया में पदस्थ विजय गौतम नामक कालरी कर्मचारी के मामले में अमलाई पुलिस ने कुछ ऐसा ही किया। बीते 2 वर्षाे से प्रमाणित अपराध होने के बाद भी यहां आने वाले हर थाना प्रभारी ने इस मामले को जुगाड़ वाले चश्में से ही देखा और विवेचना जारी रखी।
रिकार्ड खुद बता रहे अपराध
अमलाई थाने में शिकायत के बाद इस मामले में विवेचना करीब 2 वर्षाे से चल रही है, इस दौरान पुलिस ने जो रिकार्ड इक_े किये, उसमें विजय गौतम के द्वारा एसईसीएल में नियुक्ति और उसके बाद जमा की गई माध्यमिक शिक्षा मण्डल की तीन अंकसूचियां है, जिसे एसईसीएल ने खुद प्रमाणित करके शिकायतकर्ता को सूचना के अधिकार से दी थी, बाद में यह अंकसूचियां पुलिस ने विवेचना के दौरान शिकायतकर्ता से ली, इसके बाद करीब 4 माह पहले अमलाई पुलिस में इस मामले की विवेचना कर रहे भूपेन्द्र सिंह ने माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल को पत्र लिखकर विजय गौतम की अंकसूची की प्रमाणित प्रति मांगी, थाने से पुलिसकर्मी डाक लेकर खुद भोपाल गये और 2 से 3 महीनों की मेहनत के बाद पुलिस को अंकसूची भी मिल गई। जिसके बाद पुलिस ने शिकायतकर्ता, आरोपी और इस मामले से जुड़े अन्य लोगों के बयान भी लिए,मजे की बात तो यह है कि चारों अलग-अलग अंकसूचियां, दर्ज किये बयान और उसके बाद विवेचना अधिकारी की जांच के उपरांत लिखी गई टीप के समस्त दस्तावेज खुद अमलाई पुलिस ने सूचना के अधिकार से शिकायतकर्ता को दिये, लेकिन विवेचना अभी भी जारी है।
वरिष्ठों का आदेश भी बेअसर
अचरज और शर्म की बात तो यह है कि इस मामले में समस्त साक्ष्यों के साथ थाने और एसडीओपी, पुलिस अधीक्षक से पुलिस महानिरीक्षक तक एक दर्जन शिकायतें हो चुकी हैं, लेकिन थाना प्रभारी कलीराम परते और विवेचना अधिकारी भूपेन्द्र सिंह की जांच खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, हालाकि अन्य दर्जनों मामलों में अमलाई पुलिस ही पहले मामला दर्ज करती है और फिर विवेचना शुरू करती है, लेकिन सोने के अण्डे देने वाले इस मामले में अमलाई पुलिस, पुलिस अधीक्षक और पुलिस महानिरीक्षक तक के आदेशों को किनारे करने में संकोच नहीं कर रही है।

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