15 पंचायतों में उपयंत्री खेल रहा फर्जी बिलों का खेल

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पंचायतों में अभी भी जिंदा है टिन नंबर
लाखों की रेत, गिट्टी का भुगतान पर रॉयल्टी शून्य

(अमित दुबे-8818814739)
शहडोल। गोहपारू जनपद में बीते लंबे अर्से से जमे उपयंत्री आर.पी. तिवारी के पहुंच और रसूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वस्तु एवं सेवाकर की वन नेशन-वन टैक्स जैसे जीएसटी आदि लागू नहीं है। वर्षाे पहले टिन नंबर वाली व्यवस्था यहां आज भी लागू है, लगभग 15 पंचायतों में उपयंत्री के संरक्षण में बिल लग रहे हैं, जिनमें आज भी जीएसटी की जगह टिन नंबरों वाली संस्थाओं को भुगतान हो रहा है, इतना ही नहीं इन 15 पंचायतों में जिले व संभाग की तुलना में अवैध खनिज के भुगतान हो रहे हैं, उपयंत्री द्वारा लाखों रूपये का भुगतान ऐसे बिलों पर करने की मुहर लगाई गई है, जिसमें खनिज विभाग की ईटीपी ही नहीं है।
15 पंचायतों में फैली सल्तनत
जनपद पंचायत की 15 ऐसी पंचायतों जिनमें अन्य पंचायतों की तुलना में वार्षिक बजट कई गुना अधिक आता है, उनका प्रभार आर.पी. तिवारी को मिला हुआ है। इन पंचायतों में असवारी, बरेली, भदवाही, भर्री, छुहरी, हर्री, खाम्हा, लेढऱा, मझौली, मोहतरा, पोड़ी, रामपुर, सगरा, सुधवार व उचेहरा आदि शामिल है। इन 15 पंचायतों का वार्षिक बजट 50-50 लाख के आस-पास है, पंचायत के सरपंच, सचिव व रोजगार सहायक तो एक पंचायत तक ही सीमित है, लेकिन आर.पी. तिवारी का हिसाब-किताब आधी जनपद क्षेत्र में फैली पंचायतों में है।
टिन नंबर के बिलों पर भुगतान
आर.पी. तिवारी के प्रभाव वाली 15 पंचायतों में हो रहे भुगतानों पर नजर डाली जाए तो कुछ ऐसी फर्में हैं, जो इन 15 पंचायतों में कॉमन रूप से नजर आयेंगी। मजे की बात तो यह है कि विजय श्री इलेक्ट्रानिक्स एवं जनरल स्टोर गोहपारू और वर्षा इलेक्ट्रानिक्स एवं जनरल स्टोर, भोला प्रसाद जायसवाल जैसी अन्य कई फर्में है, जिन्हें बीते अंतराल में लाखों के भुगतान हुए हैं, लेकिन उनके बिलों पर जीएसटी की जगह आज भी टिन नंबर ही उल्लेखित है, जबकि बीते कार्यकाल के दौरान ही मोदी सरकार ने पूरे देश में टिन नंबर की व्यवस्था को समाप्त कर जीएसटी जैसी नई व्यवस्था लागू कर दी थी।
लाखों की खनिज कर की चोरी
उपयंत्री की लगभग पंचायतों में बीते कई वर्षाे में हुए निर्माण कार्याे में खनिज के रूप में रेत, गिट्टी, मुरूम आदि की बड़ी मात्रा में खपत की गई, इनके भुगतान भी करोड़ों में है। खुद उपयंत्री ने बिलों का निरीक्षण व एमबी भरते समय बिलों के साथ खनिज की रॉयल्टी पर्ची न तो संलग्न की और न ही उसके लिए किसी भी सरपंच या सचिव से कोई जवाब तलब किया। आरोप तो यह भी है कि लल्लू केवट, मेसर्स लल्लू अहिरवार, केशरवानी ट्रेडर्स जैसी कई फर्मों के साथ मिलकर उपयंत्री साझे का व्यापार कर रहे हैं, यही नहीं खनिज के रूप में हुए करोड़ों के भुगतान शासन की रॉयल्टी चोरी कर किये गये, लगभग खनिज अधिकृत फर्म या खनिज ठेकेदार से क्रय न करके क्षेत्र की नदियों और पहाड़ों से चोरी करवाया गया, जिससे क्षेत्र में असमाजिक कार्याे को बढ़ावा मिला और रॉयल्टी के रूप में शासन को मिलने वाले लाखों रूपये के कर की भी हानि हुई।

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