जिला चिकित्सालय में ही सोशल डिस्टेसिंग फेल@थोक में पहुंचे मरीज व परिजन, ओपीडी से चिकित्सक गायब

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(प्रकाश जयसवाल)

शहडोल मुख्यालय में बैठे कलेक्टर, कमिश्नर और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी पूरे जिले में कोरोना वॉयरस की रोकथाम के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन जिला चिकित्सालय में ही सोशल डिस्टेसिंग की व्यवस्था फेल हो चुकी है। लंबा-चौड़ा स्टाफ कोरोना वॉयरस के भय से मरीजों से दूर भाग रहा है, ओपीडी खाली पड़ी है, जिले भर की निजी क्लीनिक बंद होने के कारण मरीजों का पूरा दबाव यहां पड़ रहा है, ऐसा न हो उपचार कराने आये, मरीज और उनके परिजन यहां से बीमारियां लेकर लौटें।
शहडोल। शनिवार को संभाग के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल कुशाभाऊ ठाकरे जिला अस्पताल शहडोल में मरीजों की भीड़ लगी रही, चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा बनाये गये ओपीडी कक्ष जहां चिकित्सक बैठकर मरीजों का प्राथमिक परीक्षण व परामर्श देते हैं, वो पूरी तरह खाली रहा, चिकित्सालय का अन्य स्टाफ भी या तो वहां नहीं था, या था भी तो, अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहा था। सैकड़ा भर मरीज और उनके परिजन कोरोना वॉयरस के फैलने के भय को भूलकर एक साथ खड़े हुए नजर आ रहे थे। सोशल डिस्टेसिंग सिस्टम पूरी तरह से फेल हो चुका था। चिकित्सालय में पदस्थ निचले स्तर का स्टॉफ भी न तो, उन्हें सोशल डिस्टेंस का पालन करने के लिए कह रहा था और न ही चिकित्सक वहां पहुंच रहे थे, जिससे लोगों की भीड़ कम होती। सिविल सर्जन से होता हुआ यह मामला मेडिकल कॉलेज के डीन तक पहुंचा, आनन-फानन में कुछ चिकित्सकों को भेजा गया, जिससे धीरे-धीरे मरीज कम होते चले गये।
निजी क्लीनिकों की भीड़ ट्रांसफर
कोविड-19 के कारण घोषित किये गये लॉक डाऊन की वजह से मुख्यालय सहित जिले के अन्य कस्बों व ग्रामों में स्थित निजी क्लीनिक लगभग बंद है, मुख्यालय में ही ऐसे क्लीनिकों की संख्या 2 से 3 दर्जन के बीच है, जहां प्रतिदिन मुख्यालय व आस-पास के ग्रामों व कस्बों से 1 हजार के आस-पास मरीज पहुंचते हैं, इसके अलावा जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थित निजी क्लीनिकों में मरीजों की भरमार रहती है, लेकिन 24 मार्च के बाद लगभग बंद सी स्थिति होने के कारण यह सभी मरीज सरकारी अस्पतालों में ट्रांसफर हो रहे हैं। जिस कारण यहां मरीजों का दबाव दुगने से अधिक हो गया है।
चिकित्सक व प्रबंधन कोविड-19 में व्यस्त
कोविड-19 की आहट के बाद सिर्फ पुलिस और चिकित्सा दो ही ऐसे विभाग हैं, जिनकी जिम्मेदारियां कई गुना अधिक बढ़ गई है, संभावितों व अन्यत्र से जिले में आये लोगों की स्क्रीनिंग, डोर-टू-डोर जानकारी लेना व ऊपर तक भेजने के अलावा कोविड-19 के संदर्भ में की जा रही तैयारियां, ऐसे कई विषय हैं, जिन्होंने मूल चिकित्सकों को उलझा कर रखा है। ऐसे में ये चिकित्सक जिला चिकित्सालय में पूर्व की अपेक्षा कम समय दे पा रहे हैं।
मरीज-परिजनों की अपनी समस्याएं

चिकित्सक कोरोना और दिगर कार्याे में पूरी तरह व्यस्त हैं, निजी चिकित्सालय, क्लीनिक बंद है, ऐसे में मरीजों के पास जिला चिकित्सालय आने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता, यह जानना भी जरूरी है कि लॉक डाऊन के दौरान जब बसें बंद है, निजी टैक्सियां भी बंद है, ऐसे स्थिति में जिले की 80 प्रतिशत आबादी जो गांवों में रहती है, वह किस तरह, किन साधनों से जिला चिकित्सालय पहुंचती होगी। शनिवार को जिला चिकित्सालय में अमझोर का एक ग्रामीण अपने 8 से 9 वर्ष के पुत्र को लेकर इलाज के लिए चिकित्सालय के सामने आने स्टैण्ड में घंटो बैठा रहा, बालक का दायां पैर टूटा हुआ था, तपती दोपहर में किसी जुगाड़ से अपने बेटे को लेकर यहां पहुंचे ग्रामीण की समस्या के सामने कोविड-19 की बीमारी छोटी नजर आने लगी थी।
दिया तले ही अंधेरा
शनिवार की दोपहर जिला चिकित्सालय में चिकित्सकों के इंतजार में मरीजों की भीड़ दिखी, यहां न तो सोशल डिस्टेसिंग का पालन हो रहा था और न ही मौके पर कोई ऐसा कर्मचारी तैनात था, जो ग्रामीणों को इस संदर्भ में बता सके। सवाल यह उठता है कि संभाग के जिस सबसे बड़े चिकित्सालय को लेकर हम कोरोना वॉयरस जैसे बीमारी से लडऩे का दावा कर रहे हैं, वहां का स्टॉफ, प्रबंधन और जिला प्रशासन तो, यहां आये मरीजों को आम बीमारियों से राहत नहीं दिलवा पा रहा है, ऐसी स्थिति में हम कोरोना जैसे भयंकर वॉयरस जिसने अमेरिका जैसी महाशक्ति की कमर तोड़ दी है, उसे हम कैसे झेल पायेंगे।
(बॉक्स बनाकर लगाये)
स्वास्थ्य से हट लॉक डाऊन में बिजी
जिला प्रशासन लॉक डाऊन के पहले दिन से अब तक सिर्फ उसे लागू करने में ही अपनी पूरी ताकत झोंक रहा, हालाकि कोरोना संक्रमण से जूझने के लिए वेंटिलेटर, आईसूलेशन वार्ड, एम्बुलेंस, सेनेटाइजर, मॉस्क की व्यवस्था तो की गई है, लेकिन इन सबके बीच हम स्वास्थ्य जुड़ी पुरानी समस्याओं को भूल चुके हैं, लॉक डाऊन में जिला प्रशासन इतना व्यस्त है कि कलेक्टर सहित सिविल सर्जन सहित मुख्य चिकित्सा अधिकारी को बेपटरी होती जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था नजर ही नहीं आ रही।
इनका कहना है….
मैं समझ सकता हूं, आदिवासी बाहुल्य जिले की तकलीफ कलेक्टर से अभी बात करता हूं।
डॉ. अशोक कुमार भार्गव
कमिश्नर, शहडोल संभाग
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हमारे जितने डॉक्टर हैं, अधिकतर डॉक्टरों को प्रशासनिक तथा कोरोना से संबंधित कार्यों में लगाया गया है। मेडिकल के डॉक्टरों को अपन ज्यादा कुछ कह नहीं सकते।
डॉ. विक्रय बारिया
सिविल सर्जन
कुशाभाऊ ठाकरे, जिला चिकित्सालय
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आपने गंभीर समस्या को संज्ञान में लाया है, मैं तत्काल हॉस्पिटल जाकर व्यवस्था को दुरुस्त करता हूं, रही बात डॉक्टरों की अनुपस्थिति की तो, मैं अभी सभी डॉक्टरों की खबर लेता हूं।
डॉ. मिलेंद शिरालकर
डीन मेडिकल कालेज, शहडोल

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