मृत्यु प्रमाण पत्र को तरस रहे मातहत के वारिस

निजी चिकित्सालय ने रूपयो के खातिर रोक दिये दस्तावेज
कोरी साबित हो रही सूबे के मुखिया की घोषणाएं
जनपद पंचायत बुढ़ार में पदस्थ कर्मचारी की हुई थी संक्रमण से मौत
शहडोल। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह ने आमजनों की संक्रमण से मौत तथा शासकीय कर्मचारियों की मौत को लेकर राहत के पिटारे खोलने का दावा किया था, जमीनी स्तर पर आम लोगों की बात तो दूर, कोरोना से सामने आकर जूझने वाले शासकीय कर्मचारियों के परिजन ही अपनो के बिछड़ जाने के बाद राहत के लिए दर-दर भटक रहे हैं, हालात इतने बदतर हैं कि मृत्यु के उपरांत न तो, जिला प्रशासन के किसी नुमाइंदे और न ही किसी कर्मचारियों के हितों की लड़ाई लडऩे वाला कोई संगठन इनकी सुध ले रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा की गई घोषणाओं से राहत मिलना तो, दूर परिजनों को मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए भी भटकना पड़ रहा है, शर्म तो इस बात की है कि जिला प्रशासन ने जिस अस्पताल को कोरोना मरीजों के लिए चिंहित किया था, उसी सूची के देवांता नामक निजी चिकित्सालय ने महज रूपये न मिलने पर बैगा परिवार को मौत के बाद डिस्चार्ज के दस्तावेज नहीं दिये।
पहले बकाया, फिर देंगे दस्तावेज
जिले की बुढ़ार जनपद में पदस्थ समग्र विस्तार अधिकारी के पद पर कार्यरत श्याम लाल बैगा नामक कोरोना फ्रंट वर्कर बीते मई माह में कोरोना से संक्रमित हो गया था, हालात खराब होने पर उसे सिंहपुर रोड स्थित देवांता चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, 7 मई को श्याम लाल को भर्ती कराने के बाद उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ, 20 मई को चिकित्सालय में उसकी मौत हो गई। परिजनों की माने तो, प्रतिदिन 20 से 25 हजार रूपये का शुल्क अस्पताल को दिया जा रहा था। मृत्यु के दौरान लगभग 80 हजार रूपये बकाया रह गये थे, जिन्हें न देने के कारण अस्पताल प्रबंधन ने डिस्चार्ज और अन्य कोविड संबंधी दस्तावेज अभी तक नहीं दिये, इस वजह से मृत्यु प्रमाण पत्र भी नहीं बन पाया।
संरक्षित जाति से था मृतक
कोरोना संक्रमण काल के दौरान फं्रट वर्कर के रूप में कार्य कर रहे मृतक श्याम लाल को मध्यप्रदेश सहित अन्य कई राज्यों में बैगा संरक्षित श्रेणी में रखा गया है, बीते कुछ दशकों से बड़ी तेजी से विलुप्त हो रही इस प्रजाति के संरक्षण के लिए प्रदेश और सरकार ने उन्हें अन्य जातियों की तुलना में विशेष संरक्षण और सुविधाएं दी हुई है, अचरज इस बात का है कि जब प्रशासनिक व्यवस्थाएं बैगा जनजाति के कोरोना फं्रट वर्कर रहे युवा की मौत के बाद अन्य सुविधाएं व राहत तो दूर, किसी निजी चिकित्सालय के शोषण से उसके परिवार को मुक्ति नहीं दिला पा रही है, ऐसे में अन्य योजनाओं का लाभ कैसे मिलेगा, यह सहज समझा जा सकता है।
अकेले श्याम लाल नहीं, दर्जनों तरस रहे राहत को
कोरोना संक्रमण काल से आमजनों की बात तो दूर, राज्य और केन्द्र सरकार के दर्जनों कर्मचारी जिन्होंने फं्रट वर्करों के रूप में आगे आकर कोरोना से युद्ध लड़ा और शहीद हो गये, उनके परिजन आज भी अपनी ही बिरादरी के नौकरशाहों की मनमर्जी का दंश झेल रहे हैं, आदिवासी क्लब प्राथमिक स्कूल सोहागपुर में पदस्थ मो. यूसुफ खान की 22 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज में कोरोना से मौत हो गई थी, आज तक न तो विभाग से और न ही जिला प्रशासन के किसी नुमाइंदे ने घर जाकर इनकी सुध ली और न ही अभी तक तमाम घोषणाओं में से कोई भी सहायता परिजनों को नहीं मिल सकी है। केन्द्र सरकार के दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में पदस्थ 53 वर्षीय संजीव गिरधारी लाल मेश्राम स्थानीय रेलवे के अस्पताल में मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक के पद पर पदस्थ थे, कोरोना संक्रमण व संक्रमितों की सेवा में वे खुद कोरोना का शिकार हो गये और 6 मई को इनकी मृत्यु हो गई। श्यामलाल और युसुफ खान की तरह संजीव गिरधारी लाल के परिजनो की भी रेल प्रबंधन ने अब तक कोई सुध नहीं ली।