रविकांत उपाध्याय “गंजबासौदा मध्यप्रदेश”

बड़ा देव को चढ़ता है नई फसल का पहला अन्न

गोंड जनजाति की अनूठी परंपरा, बड़ादेव को चढ़ाये बिना

नहीं ग्रहण करते नया अनाज

शहडोल। जिले के अनेक ग्राम गोंड जनजाति बाहुल्य है, यह जनजाति लगभग सम्पूर्ण जिले में निवासरत गोंड जनजाति में से ज्यादातर मुख्य रूप से किसान हैं। कृषि के साथ, वे अपनी आजीविका के लिए मवेशियों को भी पालते हैं। इनकी प्रमुख पारम्परिक फसलो में कोदो और कुटकी के रूप में जाना जाने वाला प्रधान भोजन गोंड लोगों का प्रमुख भोजन है। लेकिन आज यह जनजाति सभी प्रकार की प्रचलित खेती भी कर रही है। गोंड जनजाति की एक अनूठी परंपरा है जिसमें वह अपनी उगाई उपज का पहला हिस्सा अपने आराध्य बड़ा देव को अर्पित करते हैं, उसके बाद ही वह उस अनाज को ग्रहण करते है।

दोनों फसलों का चढ़ता है प्रसाद

विकासखंड सोहागपुर के ग्राम पचड़ी निवासी कमला सिंह गोंड ने बताया कि हम रबी और खरीफ दोनों फसलों कि पैदावार को पहले अपने पूज्य देव बड़ा देव को अर्पित करते है। ऐसा करने से देवता हमे अपना आशीर्वाद प्रदान करते है और समाज में खुशहाली रहती है। अभी खरीफ की फसल का समय है और अभी की उगाई हुई फसलों को हम पूजा करके बड़ा देव को अर्पित करेंगे। बिना पूजा किये हम फसल का एक दाना भी नहीं खा सकते है। यह हमारे समाज कि पुरानी परम्परा है जो लम्बे समय से चली आ रही है जिसका पालन हम सभी करते आ रहे हैं।

नए चावल से बनांते है भोग

कमला सिंह गोंड ने बताया कि पूजन की विधि नवरात्री के सप्तमी अष्टमी और नवमी में से किसी एक दिन में की जाती है। जिसमें नारियल, हल्दी और नए चावल को पीस कर बनाया गए, पकवान के साथ उड़द की दाल के बड़े, फल एवं फूल का प्रसाद बनकर बड़ा देव को अर्पित करते हैं और इसी दिन हम अपने पितरो को भी बड़ा देव से मिलाते है। पितृ पूजा परिवार के सदस्य के मृत होने के 5 से 8 साल के बाद की जाती है। यह हमारे समाज की अत्यंत पवित्र प्रथा है, जिसक पालन हम सब पीढिय़ों से करते आ रहे है। इस दौरान पारम्परिक वाद्य यंत्र नगडिय़ा, ढोल, मांदर आदि भी बजाकर पारम्परिक नृत्य भी किया जाता है। नई फसल का उत्सव गोंड समाज के लिए बहुत ही आनंद का पल होता है।

गोंड बाहुल्य है सम्पूर्ण संभाग

वैसे तो गोंड जनजाति भारत के कई राज्यों में विस्तारित है लेकिन खासतौर मध्यप्रदेश के शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, बालाघाट, छिंदवाड़ा आदि में इनकी बहुलता है। गोंड जनजाति बड़ा देव को अपना आराध्य मानती है। कही-कही पर बड़ा देव, महादेव को ही बड़ा देव माना गया है। अपनी अनूठी विरासत के साथ अनेक जनजातियां पूरे अंचल पर निवास कर रही हैं, जिनकी वास्तविक स्थिति और सामाजिक स्तर का आकलन करना अत्यंत आवश्यक है, साथ ही इनकी परम्परा और रीति-रिवाज में छिपे वैज्ञानिकता और रहस्य पर शोध किया जाये तसे कई अनूठे परिणाम देखने को मिलेंगे।

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