..तो क्या नेताओं की जीतते ही बदल जाती है मंशा !

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कमीशन के चक्कर में विकास के पहिए थमें

वार्डो में नागरिक मूलभूत सुविधाओं से वंचित

ब्योहारी। नगरपालिका व नगरीय निकाय चुनाव के आरक्षण की प्रक्रिया के बाद नगर परिषद अध्यक्ष पद के दावेदारों में सरगर्मी तेज हो गई है। नगरीय निकाय का अध्यक्ष पद अनारक्षित पुरुष घोषित होने के बाद यहां की राजनैतिक गतिविधियों में बडा इजाफा देखा जा रहा है। राष्ट्रीय दलों भाजपा कांग्रेस बहुजन और आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेताओं ने अपने दलों के आकाओं तक दौड़ लगा खुद को अध्यक्ष पद के काबिल बता यहां से पार्टी उम्मीदवार बनाये जाने का दबाव बना रहे है। राष्ट्रीय पार्टी के चुनाव चिन्ह की मांग करने वालों की कतार बड़ी लंबी है। यहां सामान्य वर्ग के रसूखदार व प्रभावशाली लोग जहां नगर परिषद अध्यक्ष पद की दावेदारी जता रहे है। वहीं कुछ पिछड़े वर्ग के लोग भी चुनाव मैदान में उतरने की मंशा जता रहे है।
झूठे वायदों का भरोसा
वर्ष 2008-9 के नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा प्रत्याशी उज्वल केशरी पार्षदों की बहुमत के साथ जीत दर्ज कर अध्यक्ष पद सम्हाला था। जिसके बाद बर्ष 2014-15 का चुनाव पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित हुआ, जिसमें भाजपा की पुष्पा शत्रुधन पटेल ने भी 15 वार्डो में से 08 वार्ड पार्षद जीत पूरे पांच साल मनमानी परिषद चलाई । लोगों का मानना है कि प्रदेश में भाजपा और यहां भी भाजपा की नगर सरकार रही, लेकिन विकास के मामले में नगरीय क्षेत्र आज भी एक दशक पीछे चल रहा है। जिन विकास कार्यो के स्थानीय मुद्दों और झूठे वादों पर भरोसा कर यहां के भोले भाले मतदाताओं ने अपना जनप्रतिनिधि चुना। वो परिषद के अध्यक्ष व वार्ड पार्षद निर्वाचित होते ही अपना मंसूबा बदल नगर विकास के वादे को भूल केवल अपने निजी हितों और अपनों के विकास में ही लगे रहे।
पार्षदों में नहीं बची क्षमता
नगरीय निकाय के चुनाव में निर्वाचित जनप्रतिनिधि अगर चाहते तो क्षेत्र का सर्वांगीण विकास हो सकता था। लेकिन कार्यकाल के दौरान केवल अपना उल्लू सीधा कर मलाई छानने में ही पूरा कार्यकाल बिता देते है। पिछले नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों ने नगरीय क्षेत्र में विकास के मुद्दे पर भारी बहुमत से जीत दर्ज कराई थी। पिछली परिषद में चुने गये अध्यक्ष व पार्षदों में अब इतनी क्षमता शेष नही बची कि वो अपने किसी परिजन या समर्थक के लिए वोट मांगने जनता के पास जा सके।
सबक सिखाने की तैयारी
आम जनमानस इस बार अपने पूर्व निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को सबक सिखाने के मूड में दिख रहा है। अभी तक के चुनावों में राष्ट्रीय दलों के चुनाव चिन्ह का सहारा ले, आम नागरिकों को चहुंमुखी विकास के सब्जबाग दिखा यहां से निर्वाचित ज्यादातर परिषद अध्यक्ष और पार्षद नगरीय क्षेत्र में होने वाले तमाम विकास कार्यो में ठेकेदारी और कमीशन खोरी के खेल मे लग जाते है और कुछ जनप्रतिनिधि होने की धाक का फायदा उठा शासकीय व सार्वजनिक निस्तारण बाली भूमि पर अवैध कब्जा कर हड़पने में लग जाते है।
भाजपा के दावेदारों की सूची
नगरीय निकाय चुनावों की घोषणा के बाद भाजपा कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों ने अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर नगरीय निकाय की चुनावी जमावट शुरु कर दी है। भाजपा से अध्यक्ष पद के सम्भावित दावेदारों में वीरेश सिंह रिंकू, श्रीकृष्ण राजन गुप्ता, उज्वल केशरी, रामेश्वर चौधरी, सुधीर गुप्ता, संजय गुप्ता, पुष्पेन्द्र पटेल, रमजान कादरी, रामखेलावन सोनी, रामसुमिरन चतुर्वेदी, मनोज ताम्रकार,राजेन्द्र गुप्ता में से किसी एक को पार्टी यहां से अपना प्रत्याशी बना सकती है।
यह भी अध्यक्ष पद की दौड़ में
वहीं कांग्रेस से संतोष कुमार शुक्ला, हरिमोहन तिवारी, विनोद ताम्रकार, अरुणोदयानंद शुक्ला, अरविंद पांडेय, गंगाराम वर्मन, राजूअमर पैलेस, शेख रब्बानी, हरेन्द्र सिंह,पुष्पेन्द्र पटेल में कोई एक अध्यक्ष प्रत्याशी हो सकता है। वहीं बहुजन समाज पार्टी से सीतेश त्रिवेदी, समीम खान में से कोई एक पार्टी का प्रत्याशी बन सकता है। सपाक्स पार्टी भी इस बार यहां से प्रत्याशी उतार सकती है। अगर ऐसा हुआ तो विजय गुप्ता,शिव कुमार द्विवेदी, रामराज गुप्ता, एस.के. शर्मा में से कोई अध्यक्ष पद का प्रत्याशी हो सकता है।
भाजपा के लिए आसान नहीं
अबकी बार का नगर निकाय चुनाव भाजपा के लिए उतना आसान नही दिख रहा जितना पहले रहता था। जिसका कारण पिछले चुनावों में यहां की जनता ने भाजपा प्रत्याशियों पर भरोषा कर जो जनमत दिया, उसके विपरीत इन जनप्रतिनिधियों ने विकाश के मुद्दे को छोड़ केवल अपने स्वार्थ सिद्धि के काम में ही लगे रहे। जिससे अब स्थानीय नागरिक ऐसी पार्टियों के स्वार्थी नेता और मौकापरस्त जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध कमर कस सबक सिखाने के मूड़ में दिख रही है।

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