मुझे माफ करना और संयम न खोना….

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सूदखोरों के जाल में फंसे युवक ने दी जान

(Anil Tiwari+91 70003 62359)
शहडोल। एक बार फिर सूदखोरों से तंग आकर युवक ने खुदकुशी कर ली, कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत दिग्मबर कॉम्पलेक्स सब्जी मण्डी के पास रहने वाले श्रेयांश कुमार जैन ने सूदखोरों से तंग आकर आत्महत्या कर ली, खबर है कि मृतक ने आत्महत्या से पहले सुसाइट नोट छोड़ा है, जिसमें लिखा है कि लाखों रूपये ब्याज में देने बाद भी मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा था। हालाकि सुसाइड नोट के अंत में लिखा कि मेरे भाई और पत्नी मुझे माफ करना और संयम न खोना। घटना की जानकारी लगते ही पुलिस घटना स्थल पहुंचकर मर्ग कायम कर विवेचना शुरू कर दी है।
पुलिस-प्रशासन की नरमी
सूदखोरों से परेशान लोग मौत का रास्ता चुनने को मजबूर हैं, आधुनिक युग में भी सूदखोरी जैसी समस्या समाज में दीमक का काम कर रही है। लोगों को बातों के जाल में उलझाकर रुपए उधार देना और फिर ब्याज की दरों को बढ़ा-चढ़ाकर उनकी संपत्त्यिों पर कब्जा करने का काम सूदखोर कर रहे हैं। पुलिस व प्रशासन सूदखोरों पर नरमी बरतते हुए है। जनता न्याय का दरवाजा खटखटाती तो है, लेकिन वह निराश होकर लौट जाती है, सूदखोरों से उन्हें निजात नहीं मिलती। आखिरकार उन्हें मौत का रास्ता अपनाना पड़ता है। श्रेयांश कुमार जैन की मौत ने यह साबित कर दिया कि संभागीय मुख्यालय में सूदखोर कितने हावी है कि लोग उनके भय से आत्महत्या करने को मजबूर हैं।
ये है साहूकारी के नियम
जानकारों की माने तो सूद पर पैसे चलाने वाले को नगर पालिका में 100 रुपए का आवेदन पत्र लेकर 1500 रुपए फीस, पैन कार्ड, एड्रेस प्रूफ, फोटो के साथ शपथ पत्र देना होता है। नपा जांच कर लाइसेंस देगा। अगर कर्जदार रकम वापस नहीं करे तो, साहूकार दादागिरी नहीं कर सकता। उसे सिविल कोर्ट में वसूली के लिए वाद दायर करना होता है। बिना पंजीयन ब्याज पर कर्ज देना अपराध है। दोषियों पर मनी लांड्रिंग एक्ट में कार्रवाई हो सकती है। बिना लाइसेंस ब्याज से रुपए देना व वसूली के लिए किसी को प्रताडि़त करना गंभीर अपराध है। मामले में दोषियों को मप्र ऋण संरक्षण अधिनियम 1937 की धारा 4 के तहत ऋण वसूली के लिए उत्पीडऩ पर सजा हो सकती है।
सुस्त हो चुकी पुलिसिंग
शहर में सूदखोरों का मकडज़ाल अब युवकों की जान ले रहा है। 10 से लेकर 40 प्रतिशत तक के ब्याज के गणित में यह सूदखोर जरूरतमंदों को ऐसा उलझाते हैं, वह जीवनभर इस उलझन से बाहर नहीं आ पाता। घर, जमीन, गहने सबकुछ बिक जाता है, लेकिन ब्याज पर ब्याज चलता ही जाता है। सूदखोरी का धंधा फल-फूल रहा है, गरीबों की जान ले रहा है, लेकिन सूदखोर बेखौफ हैं। इसकी वजह है- रसूखदारों को संरक्षण। इसमें माननीय से अधिकारी तक शामिल हैं, जिनकी जी- हुजूरी करते हुए यह सूदखोर आम जनता का जीना मुश्किल कर देते हैं। श्रेयांश कुमार जैन की मौत ने सूदखोरी के खेल को उजागर कर दिया है, हालाकि वर्तमान में जिस तरह से थाना क्षेत्रों में अपराध बढ़ रहे हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि पुलिसिंग पूरी तरह से सुस्त हो चुकी है। जागरूक लोगों ने कप्तान से मांग की है कि सूदखोरों सहित शहर में फैल रहे अपराध पर अंकुश लगाने कोई ठोस निर्णय लें।

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