शहडोल आरटीओ में कबाड़ बस को मिला नया जीवन! फर्जी झारखंड एनओसी से पंजीयन, दो बाबू गिरफ्तार, मास्टरमाइंड फरार

शहडोल। शहडोल आरटीओ कार्यालय में फर्जीवाड़े का बड़ा मामला सामने आया है, जिसमें 15 साल से अधिक पुरानी कबाड़ बस को फर्जी दस्तावेजों के सहारे नया नंबर और वैध पंजीयन दे दिया गया। झारखंड की एक फर्जी एनओसी के आधार पर इस गाड़ी को नया जीवन देने वाले खेल में आरटीओ कार्यालय के दो कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि मुख्य आरोपी फरार है।
जब सिस्टम सोता है, तब कागज़ जागते हैं!
पूरा मामला तब उजागर हुआ जब शिकायतकर्ता ने इस संदिग्ध बस की जानकारी पुलिस को दी और जांच में चौंकाने वाले खुलासे हुए। वाहन एमपी 18 6155 जो 1992-93 मॉडल की थी और जिसकी उम्र परिवहन नियमों के अनुसार परमिट के योग्य नहीं थी, को झारखंड के रांची आरटीओ की फर्जी एनओसी के जरिए पुष्पेन्द्र मिश्रा नामक व्यक्ति के नाम पर शहडोल में रजिस्टर कराया गया।
फर्जी कागज़ों से रजिस्ट्रेशन की पूरी स्क्रिप्ट
आरटीओ कार्यालय में कार्यरत बाबू अनिल खरे ने इस फर्जी एनओसी को जांचने का नाटक किया और फाइल को बिना आरटीओ के हस्ताक्षर के आगे बढ़ा दिया। इसके बाद बाबू एम.पी. सिंह बघेल ने दस्तावेजों पर दस्तखत किए और डिस्पैच सेक्शन की नीलमणि द्वारा एनओसी वाहन स्वामी को बाई हैंड सौंप दी गई। इतना ही नहीं, वाहन स्वामी ने खुद ही फर्जी सत्यापन पत्र भी तैयार कर लिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
जांच में निकली गाड़ी से छेड़छाड़
शिकायत मिलने पर पुलिस ने वाहन को जब्त कर लिया और टाटा कमर्शियल टीम से जांच कराई। जांच में यह सामने आया कि गाड़ी के चेचिस नंबर से छेड़छाड़ कर हथौड़े से नया नंबर पंच किया गया है। जब रांची आरटीओ से इस एनओसी की पुष्टि कराई गई तो सामने आया कि न तो वह नंबर झारखंड की किसी बस का है और न ही कोई एनओसी जारी की गई थी। बल्कि जिस नंबर (JH 01 P 4872) का उल्लेख था, वह वास्तव में मारुति वैगन आर के नाम पर पंजीकृत है।
दो गिरफ्तार, जांच में और नाम सामने आने की संभावना
इस मामले में अनिल खरे और एम.पी. सिंह बघेल को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि मास्टरमाइंड पुष्पेन्द्र मिश्रा अभी फरार है। पुलिस का कहना है कि यह फर्जीवाड़ा एक संगठित रैकेट की तरह काम कर रहा था, जिसमें आरटीओ कार्यालय के अन्य अधिकारी-कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं। यदि जांच निष्पक्ष और गहराई से की गई तो एक दर्जन से अधिक कर्मचारियों पर कार्रवाई संभव है।
न्याय की दिशा में उम्मीद
यह मामला न केवल परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि नियमों की धज्जियां उड़ाकर कैसे फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कबाड़ गाड़ियों को सड़कों पर उतारा जा सकता है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या इस मामले में न्याय मिलेगा या यह भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।