मिसाल: सिक्ख समुदाय की 5 बेटियों ने दी माँ को मुखाग्नि @ अर्सा पहले इकलौते बेटे ने वृद्ध माँ और पिता को किया था घर से बाहर

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करोड़ों की संपत्ति हड़पने के बाद भी बेटे ने माँ को नहीं दी मुखाग्नि

(शम्भू यादव@9826541548)

शहडोल। बीते दशकों में नगर पंचायत बुढ़ार के वार्ड नंबर 14 से पार्षद रह चुके 88 वर्षीय हरवंश सिंह छावड़ा की पत्नी श्रीमती शांति देवी छावड़ा उम्र 87 वर्ष का निधन बीती 23 जुलाई को हुआ, हरवंश सिंह छावड़ा कई दशको से बुढ़ार के वाशिंदे है और बालवाड़ी स्कूल के ठीक सामने उनका खुद का मकान बना हुआ है। 5 पुत्रियों और 1 पुत्र के पिता हरवंश सिंह बीते कई माहों से एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं, पांचों बच्चियों की शादी अन्य जिलों व प्रदेशो में कई वर्षाे पहले हो चुकी है, इकलौते पुत्र अमरजीत सिंह छावड़ा ने वृद्ध हरवंश की संपत्ति से बाहर कर माता-पिता दोनों को घर से निकाल दिया था, जिस कारण दोनों वृद्ध उम्र के आखरी पड़ाव में अपनी बड़ी बच्ची श्रीमती बलजीत कौर उम्र 62 वर्ष के यहां धनपुरी नगर पालिका के वार्ड नंबर 1 स्थित आवास में रह रहे थे।
माँ की मौत से भी नही जागा जमीर
23 जुलाई को वृद्ध शांति देवी हरवंश सिंह को अकेला छोड़ के दुनिया से अलविदा हो गई, इसकी खबर समाज के लोगों के साथ ही अन्य जिलो में रह रही चारो बच्चियों और रिश्तेदारों सहित पुत्र अमरजीत तक भी पहुंची, 24 को अंतिम संस्कार स्थानीय शांतिवन में करना तय हुआ, लेकिन पहले से वृद्ध माँ और पिता को घर से निकाल चुके अमरजीत का कठोर मन व जमीर माँ की मौत से भी विस्मित नहीं हुआ,। हिन्दु धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार सिक्ख धर्म में भी मुखाग्नि बेटे के द्वारा ही दी जानी चाहिए, यहाँ, यह काम इकलौते बेटे अमजीत की जगह शांति देवी की पांचों बेटियों जिनमें बलजीत कौर 62 वर्ष, सुरेन्दर कौर 58 वर्ष, जसपाल कौर 55 वर्ष, कमलजीत कौर 50 वर्ष, बलवीर कौर 46 वर्ष ने मिलकर किया।
मिसाल बनी बेटियां
उम्र के आखिरी पड़ाव में 8 दशक पूरे कर चुके 88 वर्ष के हरवंश सिंह छावड़ा शांतिदेवी की मौत के बाद अकेले बचे हैं, उनके जीवन भर की कमाई और समाज में कमाई गई इज्जत पर इकलौते बेटे ने बट्टा लगा दिया, इससे पूर्व भी अमरजीत के द्वारा वृद्ध माता-पिता को घर से बेइज्जत कर बाहर निकालने की कहानी आस-पड़ोस के लोगों के साथ ही पूरे नगर व थाने तक पहुंच चुकी है, लेकिन इस बात का किसी को अंदाजा नहीं था कि जिसने 9 माह तक कोख में पालकर अपने खून से सींचा, उसे पहले तो, घर से निकाल दिया और जब उसने अंतिम सांसे ली, न तो वह वहाँ आया और न ही अंतिम संस्कार में उसे मुखाग्नि दी। शांति देवी की पांचो बेटियों ने आगे आकर माँ को मुखाग्नि देने के साथ ही, समाज के सामने मिसाल भी पेश की।

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