मनरेगा के निर्माण कार्यो में उपयंत्री,उपसरपंच से करा रहा ठेकेदारी

स्टीमेट दरकिनार,स्टापडैम व बडे खेत तालाव में लीपापोती
शहडोल। जिले के गोहपारू जनपद में कोरोनाकाल में भी मनरेगा के तहत हुये निर्माण कार्यो में मजदूरो को काम के लाले पड़े रहें। जनपद क्षेत्र के मजदूर काम के लिए दर-दर भटकते रहे। इधर जनपद के उपयंत्री दिनेश सारीवान ने मिलकर खुद ठेकेदार बन कार्य कराया। इसमे आधा दर्जन अघोषित ठेकेदारो के नाम भी शामिल है। जिसमें नवाटोला के उप सरपंच नरेन्द्र यादव का नाम भी स्थानीय लोगो की जुवान पर है। जिसकी शिकायत भी हो चुकी है। लेकिन जिला पंचायत के जिम्मेदार अशिकारियो के कान में जूं तक नहीं रेगी। अब जनपद के सभी निर्माण कार्यो की शिकायत नवागत कलेक्टर बंदना वैद्य से की गई है। जिनसे जांच और कार्यवाई की उम्मीद बढ़ी है।
अघोषित ठेकेदार बना उपसरपंच
वैसे तो गोहपारू जनपद के अधीन ग्राम पंचायत नवा टोला में नरेन्द्र यादव उपसरपंच है। जो क्षेत्र में चल रहे मनरेगा के तहत होने वाले निर्माण कार्यो में शासन के मंशा के विपरीत ठेकदारी कर रहा है। जिसमे उपयंत्री दिनेश सारीवान भी शामिल है। इसमे नदी पुर्नजीवन के कार्य भी शामिल है। जिसमें नरेन्द्र यादव व उपयंत्री सारीवान करोड़ो के काम ठेकेदारी में खुद किया है। जबकि ये कार्य मनरेगा के पैसे से हो रहे है। जिनमे मजदूरो को अधिक से अधिक काम देना था। लेकिन अधिकांश काम ठेकेदरी में कराकर फजीँ विल बनाकर आहरित कर स्वंम की तिजोरी भरी गई है। जिसकी अगर जांच कराई जाए तो करोड़ो रुपए के घोटाले सामने आएगे। साथ ही करोड़ो रुपए की रिकवरी निकलेगी। जो अब अभी हाल ही में हुए प्रशासनिक फेरबदल से संभव दिख रहा है। उपसरपंच द्वारा अभी हाल में नदी पुर्नजीवन के तहत नवाटोजा में एक स्कूल के उत्तर ओर दूसरा स्कूल के दक्षिण नाले में बनाए गए स्टापडैम की गुणवत्ता की जांच कराई जाए तो क्षेत्र में कराए गए सभी निर्माण कार्यो की कलाइ्र खुल जाएगी।
निर्माण में तकनीक की अनदेखी
नदी पुर्नजीवन में ‘रिज टू व्हैलीÓ के सिद्धांत में सर्वप्रथम मृदा संरक्षण के कार्य सम्पादित कराये जाते हैं, जिनमें लूज बोल्डर स्ट्रक्चर, गली प्लग इत्यादि हैं। उक्त कार्यो को सम्पादित कराये जाने के पश्चात् ही बड़े कार्य सम्पादित कराये जाते हैं जिनमें बड़े तालाब एवं स्टॉपडैम सम्मलित हैं, जबकि संबंधित पंचायतों में मृदा संरक्षण करने से पूर्व ही जल संरक्षण के कार्य सम्पादित कराये जा रहे हैं जो कि तकनीकी रूप से अनुचित है। संबंधित पंचायतों में जो जल संरक्षण के कार्य कराये गये हैं जैसे कि बड़े तालाब जिनमें अपस्ट्रीम एवं डाउन स्ट्रीम के स्लोप का ध्यान नहीं रखा गया है, जानकारी के अनुसार पड़ल निर्माण में काली मिट्टी का उपयोग भी नहीं किया गया है। स्टापडैम के कार्यो में बिना डिजाईन के सम्पादन किया गया है न ही कैचमेन्ट, एफलक्स एवं सिल्ट फैक्टर का ध्यान रखा गया। एफलक्स का ध्यान न रखे जाने के कारण स्टापडैम का गेट बन्द होने के बाद नाले के संरचना के बगल से बह निकलने का भय है। सिल्ट फैक्टर का ध्यान न रखे जाने के कारण अत्यधिक गाद जमने का भी डर है। हाल ही के निर्मित स्टापडैमों में दरारे आ गई हैं जिससे प्रतीत होता है कि संरचना में टेम्प्रेचर रेनफोर्समेन्ट भी नहीं दिया गया है।
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इनका कहना है
अगर निर्माण कार्य स्टीमेंट के अनुसार नहीं कराये गये हैं, मनरेगा की राशि से कराये गये काम में अगर मजदूरों को काम नहीं दिया गया है, उपयंत्री खुद ठेकेदारी करके काम कराया है, तो निश्चित तौर पर उसके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
उमाकांत राव
सचिव
पंचायत एवं ग्रामीण विकास, भोपाल