जिले के एकमात्र संग्रहालय की हालत खराब

रखरखाव के अभाव में नष्ट हो रही हैं धरोहरें
शहडोल। नगर के एकमात्र तीर्थंकर महावीर पुरातत्व संग्रहालय का बुरा हाल है। देखरेख के अभाव में संग्रहालय में रखी गई धरोहर बर्बाद हो रही है। इस गैलरी में प्रमुख तौर पर आसपास के इलाकों से खुदाई में मिली पत्थर की प्रतिमाओं शिलाओं और आकृतियों को संरक्षित किया गया है। इस संग्रहालय को मुख्य रूप से प्राचीन काल के पुरावशेषों और इतिहास की जानकारी देने के लिए की गई थी। यहां बहुत सी ऐसे प्रतिमाओं को सुरक्षित रखा गया है। जिनकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत लाखों में है लेकिन देखरेख और प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह सब नष्ट होने की कगार पर है।
प्राचीन प्रतिमाओं के बुरे हाल
जिले के पुरातात्विक धरोहर धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदहारण आप संग्रहालयजाकर देख सकते हैं शासन की लगातार अनदेखी के कारण प्रतिमाये चिन्ह धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। इसे सहजने के लिए संग्रहालय में बनाई गई व्यवस्था का कोई मतलब नहीं है जिले में ऐसी प्राकृतिक धरोहर हैं जिनकी तुलना भारत के कुछ सबसे पुराने धरोहरों से की जाती है। इनके बावजूद संरक्षण को लेकर शासन कोई प्रयास नहीं कर रहा है। इन स्थानों के बारे में कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं कलेक्टर पुरातत्व संघ का पदेन अध्यक्ष होता है । इसके बावजूद पुरातात्विक धरोहरों का बुरा हाल है। इसी कारण इन सभी प्राकृतिक धरोहरों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। संग्रहालय में प्राचीन जैन प्रतिमाएं वराह नटराज और पुरावशेष आम जान के दर्शनार्थ रखे हुए हैं है। लगातार जर्जर स्थिति में होने के कारण अब इन स्थानों पर पर्यटक नहीं के बराबर हैं। जिले में पुरातत्व संग्रहालय भी जर्जर पुरातात्विक धरोहरों को सहेजने के लिए संग्रहालय की शुरुआत की गई थी। संग्रहालय में प्राचीन मंदिरों से और खुदाई में मिली खंडित मूर्तियां,कलचुरी वंश की मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन,शिल्पियों द्वारा बनाई गई कलाकृति,और पुरातत्व के अवशेष कुछ जिले से अनूठे कला के नमूने मौजूद है।लम्बे समय से मेंटनेंस नहीं किये जाने के कारण संग्रहालय की दीवार में दरार आ गई है और पूरा भवन जर्जर हो गया है। पूरा परिसर में पेड़ पौधे और कचरा फैला हुआ,जिले में धरोहरों को सहेजने और उनकी जानकारी जुटाने जिला पुरातत्व समिति गठित भी बनाई जाती है लेकिन जिले में ऐसी कोई समिति का उल्लेख या कार्य कभी दिखाई नहीं पड़ता है,जिसके चलते हमारे धरोहरों की उपेक्षा हो रही है।