ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में, निमोनिया कुपोषण एवं एनीमिया, के मामले बढ़े
मरीजों को गांवों में नहीं मिल पा रहा इलाज
शहडोल। आदिवासी अंचल में, निमोनिया और कुपोषण ने बच्चों को जकड़ रखा है। समुचित पोषण आहार व देखरेख के अभाव में यह बच्चे जन्म से ही इन बीमारियों की गिरफ्त में आ जाते हैं। इसके बाद इनकी ग्रोथ पूरी तरह से रुक जाती है। ऐसे कई मामलो में इन बीमारियों से ग्रसित बच्चों को जान भी गंवानी पड़ चुकी है। बच्चों को इस मंभीर बीमारी से बचाने के लिए दस्तक अभियान जिले के शहरी व ग्रामीण इलाकों में चलाया गया था। स्वास्थ्य अमला घर-घर जाकर 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों की जांच कर उनका फॉलोअप लिया। इस दौरान बच्चे दस्त व निमोनिया से पीड़ित भी पाए गए हैं। विभाग से तो चलाए जा रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर संसाधनों व सुविधाओं के अभाव में इनका प्रभावी असर देखने नहीं मिला है। गांव-गांव में बच्चे एनीमिया का दंश झेल रहे हैं। स्कूलों और आंगनबाड़ी केन्द्रों में इन बच्चों को समुचित दवाइयां व पोषण आहार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इनकी समुचित निगरानी का भी अभाव है। यही वजह है कि जिले में इन गंभीर बीमारियों ने घर कर रखा है। लगातार बढ़ती ठंड के बीच अब गांवों में बच्चों को निमोनिया भी तेजी से जकड़ रहा है। इस बीच गांव में इलाज न मिलने से झोलाछाप व गुनिया का सहारा लेते हैं।
ठंड की दस्तक के साथ शुरू हो गया संक्रमण
मिली जानाकारी में जिले भर में 1594 बच्चे दस्त, 374 गंभीर निमोनिया एवं 625 बच्चे जन्मजात विकृति चिन्हित हुए हैं। बीमारी से पीड़ित बच्चों को स्वास्थ्य विभाग ने उपचार के लिए अस्पताल में दाखिल कराया था।
बाल मृत्यु में कमी लाने अभियान
स्वास्थ्य विभाग ने 5 वर्ष तक के बच्चों की सेहत में सुधार व बीमारियों से ग्रसित होने से बचाव के साथ ही बाल मृत्यु दर में कमी लाने घर-घर दस्तक अभियान चलाया है। इसमें स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमला के साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बच्चों की स्क्रीनिंग कर बच्चों में खून की कमी, जन्मजात विकृति, कुपोषण, बच्चों की लंबाई, वजन के साथ ही अन्य गंभीर बीमारियों के बार में जानकारी एकत्रित कर स्वास्थ्य विभाग के पोर्टल में फीड कराते हैं। इसके साथ ही बच्चों को जरूरी दवाई भी उपलब्ध कराई जाती है।
घर-घर दस्तक देकर, बच्चों की जुटाई जानकारी
जिले में जुलाई से सितंबर तक दस्तक अभियान चलाया गया था। इस अभियान में स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला घर-घर जाकर जन्म से 5 साल तक के बच्चों के पालन-पोषण, कुपोषित बच्चों की पहचान, टीकाकरण, खून की कमी, दस्त रोग, विटामिन-ए का डोज, मां के दूध के फायदे, निमोनिया की पहचान, एनआरसी और एसएनसीयू से डिस्चार्ज बच्चों के फॉलोअप संबंधी जानकारी एकत्रित कर ऑनलाइन फीड कराई।
148 बच्चों में खून की कमी, 267 कुपोषित
जिले में 1 लाख 11 हजार 21 हजार बच्चों की स्क्रीनिंग की गई। इस दौरान 148 बच्चों में खून की कमी पाई गई। वहीं 267 बच्चे कुपोषण से ग्रसित मिले, इसमें से 168 बच्चों को एनआरसी में भर्ती कराया गया है। शेष बच्चों को पोषण आहार व चिकित्सकों के उचित सलाह के बाद घर में ही देखभाल की जा रही है।
गांवों में संसाधन व सुविधाओं का अभाव
शासन स्तर से कुपोषण व एनीमिया, जैसी बीमारियों को जड़ से समाप्त करने के लिए गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं के समुचित पोषण के लिए योजनाएं चलाई जा रही है। मॉनीटरिंग के अभाव में जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में समुचित संसाधन व सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में इन बच्चों को न तो समुचित पोषण आहार ही मिल पा रहा है और न ही समुचित इलाज।