कांग्रेस से लड़ेगें रामलाल या होगी दूसरी रणनीति!

(अमित दुबे+8818814739)
शहडोल। संभाग का अनूपपुर जिला बीते कुछ महीनों से राजनीति का रण क्षेत्र बना हुआ है, बीते 2 दशकों से एक-दूसरे के घोर विरोधी माने जाने वाले बिसाहूलाल और रामलाल एक मंच पर नजर आ रहे हैं, राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं है। बिसाहूलाल के मामले में भी अंत तक किसी को यह भरोसा नहीं था कि 4 दशकों तक कांग्रेस की राजनीति करने वाले बिसाहूलाल जिसे कांग्रेस ने फर्श से अर्श तक पहुंचाया, वे प्रदेश कांग्रेस सरकार के ताबूत में ही कील ठोकने का काम करेंगे। बीते कुछ माहों में राजनीति का परिदृश्य इस तरह बदला की, विचारधाराओं का चोला उतारकर किनारे रख दिया गया।
नये परिस्थितियों को देखा जाये तो, बिसाहूलाल के भाजपा में आने भर से पार्टी ने उन्हें बिना चुनाव लड़े ही कैबिनेट मंत्री बना दिया, जबकि भाजपा की तीसरी पारी के दौरान रामलाल रौतेल न सिर्फ चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, बल्कि प्रदेश में कोल समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय जनता पार्टी का इकलौता युवा चेहरा थे, इतना ही नहीं उन्हें संगठन के वरिष्ठ भगवत शरण माथुर तक का आशीर्वाद प्राप्त था, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अमरकंटक में नर्मदे हर सेवा न्यास समिति के विकास के लिए रामलाल ने अपना सर्वस्व झोंक दिया था। बावजूद इसके तमाम प्रयासों के बाद भी उन्हें मंत्री मण्डल में जगह नहीं दी गई थी, रामलाल और उसके समर्थक उन दिनों में पार्टी के लिए किये गये त्याग की तुलना वर्तमान में मिले प्रसाद से कर रहे हैं।
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यह भी माना जा रहा है कि बिसाहूलाल के भाजपा में आने और कैबिनेट मंत्री बनने के बाद उनकी जीत लगभग तय है, लेकिन उनकी इस जीत में रामलाल का भविष्य कहां ठहरेगा। इसको लेकर रामलाल के समर्थक पसोपेश हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि 2 दशकों से अधिक के राजनैतिक जीवन में अनूपपुर में बिसाहूलाल सिंह और रामलाल रौतेल ही दो ऐसे नेता हैं, जिन्होंने स्व. दलबीर सिंह के बाद पार्टी से हटकर न सिर्फ अपनी छवि बनाई बल्कि आदिवासी गांवों के अंतिम छोर तक अपने निष्ठावान कार्यकर्ता भी बनाये, जो विपरीत परिस्थितियों में स्लीपर सेल की मानिंद पार्टी से परे हटकर अपने नेता के लिए सर्वस्व त्यागने को तैयार रहते हैं।
बिसाहूलाल के राजनैतिक जीवन के चार दशकों पर पलटकर देखा जाये तो, इस दौरान उन्होंने तात्कालीन केन्द्रीय मंत्री रहे स्व. दलबीर सिंह तक से खुन्नस होने पर पूरे संभाग में अपनी अलग टीम बना ली और भाजपा में आने से पहले तक वे स्व. दलबीर सिंह के बाद स्व. श्रीमती राजेश नंदनी और बाद में शहडोल सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह तक से गुटीय राजनीति करते रहे, बिसाहूलाल के संदर्भ में यह भी माना जाता रहा है कि अनूपपुर हो या, संभाग की कोई भी दूसरी विधानसभा, बिसाहूलाल के सितारे भले ही गर्दिश में रहे हों, वे अपने विरोधियों को राजनैतिक चतुराई से निपटाते रहे हैं, शहडोल में कभी बिसाहूलाल के सबसे करीबी रहे रविन्द्र तिवारी और अनूपपुर के चचाई निवासी मत्स्य विभाग के कर्मचारी व भूपेन्द्र सिंह के अनुज जीतेन्द्र सिंह आदि इसके उदाहरण हैं। बदली परिस्थितियों में यह माना जा रहा है कि बिसाहूलाल सिंह किसी भी स्थिति में भविष्य में रामलाल के लिए उपजाऊ जमीन शायद ही छोड़े, जिसमें रामलाल का भविष्य संवर सके, रामलाल खुद कुशल राजनैतिक होने के कारण इन बातों को भांप चुके हैं, उनके समर्थकों का यह दर्द गाहे-बगाहे सामने आ ही जाता है।
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हालाकि अनूपपुर जैसी स्थिति प्रदेश के उन सभी 24 विधानसभा क्षेत्रों में हैं, जहां कांग्रेस विधायकों ने भाजपा का दामन थामा और अब उनमें से कई मंत्री भी हैं, बहरहाल रामलाल का राजनैतिक जीवन उस दो राहे पर जाकर खड़ा है, जहां दोनों ही रास्ते असमंजस व चुनौतियों भरे हैं। यदि रामलाल पार्टी पर निष्ठा दिखाते हुए बिसाहूलाल को विधानसभा पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं तो, 3 साल बाद होने वाले चुनावों में पार्टी बिसाहूलाल को किनारे कर उन्हें टिकट देगी, यह अभी से तय करना, चांद पर घर बसाने जैसा है। रामलाल के सामने दूसरा रास्ता कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लडऩा भी हो सकता है, लेकिन अभी तक की परिस्थितियों में न तो कांग्रेस उन्हें लिफ्ट देती नजर आ रही है और न ही इस विषय में रामलाल का रूख ही नजर आ रहा है, हालाकि राजनीति में कुछ भी संभव है, वैसे भी अनूपपुर की राजनीति की तासीर न सिर्फ कांग्रेस की मानी जाती है, बल्कि 2 दशकों का इतिहास देखा जाये तो, इस दौरान एक बार बिसाहूलाल तो दूसरी बार रामलाल को जनता ने विधानसभा पहुंचाया है, इस हिसाब से इस बार बारी तो दूसरे लाल की है।