फॉरेस्ट प्रोटेक्टर ग्रुप कर रहा है 70 प्रकार से भी ज्यादा तितलियों का सरंक्षण

जिला मुख्यालय में बाणगंगा में बनाया तितलियों के लिए इकोसिस्टम
शहडोल। तितलियों की आबादी को बेहतर पर्यावरणीय दशाओं के संकेतक के तौर पर जाना जाता है, परागण , खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिकी तंत्र में भी तितलियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन आज प्रदूषण कीटनाशकों के उपयोग और जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन की मार पडऩे से तितलियों की आबादी पर संकट मंडराने लगा है। इसीलिए अब संरक्षणवादी इन्हें सहेजने पर जोर दे रहे हैं। विशेष तौर से सिर्फ तितलियों को ही संरक्षित करने वालों के बारे में आपने बहुत कम सुना होगा. बहुत कम ही ऐसे लोग हैं जो सिर्फ तितलियों के संरक्षण के लिए ही उनके अनुकूल वातावरण तैयार कर उन्हें संरक्षित कर रहे हैं, ऐसा ही एक ग्रुप है फॉरेस्ट प्रोटेक्टर ग्रुप जिसकी अनूठी पहल ने सभी को अपना दीवाना बना लिया है। फॉरेस्ट प्रोटेक्टर ग्रुप ने जिला मुख्यालय में बाणगंगा में प्राकृतिक तौर पर एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार किया है, जो तितलियों के लिए आदर्श है, यहां अलग अलग प्रजाति की तितलियां आकर रहती हैं।
तितलियों के लिए अनुकूल जिले की जलवायु
बायोडायवर्सिटी एक्सपर्ट और फॉरेस्ट प्रोटेक्टर ग्रुप के फाउंडर मेंबर संजय पयासी बताते हैं कि इस जगह पर हमने जिन तितलियों को आईडेंटिफाई किया है. उनकी 70 से ज्यादा स्पेसीज हैं. उन्होंने कहा कि अगर सीजन में और तीन चार महीने और हम यहां अपना प्रयास जारी रखते हैं, तो ये संख्या करीब 100 से ज्यादा तरह की तितलियों तक पहुंच सकती हैं। तितलियों का तो इकोसिस्टम में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। वेअनेक जीवों का भोजन बनती है हैं। कितने ही पौधों को वो एक तरीके से डीकंपोज करने का काम करती हैं। बहुत सारी प्रजातियों के लिए के लिए पॉलिनेशन का काम तितलियां करती हैं, एक स्वस्थ और संतुलित इकोसिस्टम के लिए तितलियों का होना बहुत जरूरी है। ब्लूमॉर्नमोन एमपी की सबसे बड़ी बटरफ्लाई कही जाती है। बैंडेड पीकॉक एक हरे रंग की मेडलिक कलर की बिल्कुल रंगीन सुंदर सी तितली है। जो यहां पाई जाती है ,कम दिखने वाली तितली ट्री ब्राउन होती है। बैम्बू ट्री ब्राउन वो दोनों प्रजाति यहां पर मिलती है। जिले का जो एनवायरमेंट है वह चारों तरफ हरियाली से घिरा हुआ है। यहां लगातार सदानीरा नदी नाले बहते रहते हैं, तितलियों को मॉइस्चर वाली जगह धूप और छाया वाली जगह पसंद होती है। थोड़ा सा दलदल हो वो पडलिंग करती हैं. उनको जो आवश्यक खनिज चाहिए होता है। उनके पोषण के लिए वो दलदली क्षेत्रों में नमी वाले जगहों पर मिलता हैं, शहडोल के आसपास नमी वाले जगह नमी वाला जंगल जो रहता है।
हर तितली का अपना प्लांट
हर एक तितली का होस्ट प्लांट अलग होता है. तितलियों का एक होस्ट प्लांट होता है और दूसरा होता है फूड प्लांट यानी कि जिन फूलों पर हम तितलियों को बैठे हुए देखते हैं, उसमें वो पराग यानी की नेक्टर कंज्यूम करती हैं. जो उनका भोजन होता है. जिन-जिन पेड़ों पर फूल हैं और उसमें तितलियां बैठती है वह फूड प्लांट कहलाते हैं, और जिन पौधों पर तितलियां अंडे देती है। वह उनके लार्वा होस्ट प्लांट कहलाते हैं, तो हर तितली का होस्ट प्लांट अलग होता है। स्वेलो टेल बटरफ्लाई नींबू के पेड़ पर ही बैठना पसंद करती है। बैरोनेट नाम की तितली तेंदू के पेड़ में अंडे देती हैं। मीठी नीम के पेड़ में कॉमन क्रो नाम की तितली अंडे देती है। संजय पयासी बताते हैं कि उनकी योजना रहती है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ ऐसे लगाए जाएं जो किसी तितली के काम आ सके. उन्होंने यहां पर 35 तरह के तितलियों के होस्ट प्लांट खुद लगाए हैं।
लोगों को जागरूक करने का प्रयास
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट और फारेस्ट प्रोटेक्टर ग्रुप के फाउंडर मेंबर रवि शुक्ला बताते हैं कि हम पिछले 1 साल से संभाग में तितलियों का सर्वे कर रहे थे। यहां आने पर हमने देखा कि बहुत सारी जिन प्रजातियों को हम जंगलों में ढूंढते थे। वो इस जगह पर इक_े मिल गईं, तब हमें ख्याल आया कि जब इस तरह का इकोसिस्टम यहां है और तितलियों की वो सारी प्रजाति जिन्हें हम जंगलों में ढूंढते हैं यहां उपस्थित हैं, तो हमने इनका संरक्षण करना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि हम समय-समय पर वर्कशॉप के साथ बटरफ्लाई वाक करवाते हैं, फोटोग्राफी प्रतियोगिता करवाते है।
फॉरेस्ट प्रोटेक्टर ग्रुप की अनूठी पहल
फॉरेस्ट प्रोटेक्टर ग्रुप की यह अनूठी पहल तारीफ के योग्य है. जिस तरह से उन्होंने अलग-अलग तरह की तितलियों के लिए एक आदर्श माहौल तैयार किया है। करीब 70 से भी ज्यादा तितलियों की इस स्पेसीज को संरक्षित रखा है, और उन तितलियों के बारे में बच्चों को युवाओं को यहां लाकर बता रहे हैं। उन्हें प्रकृति से जोड़ रहे हैं, उनकी यह पहल अब चर्चा का विषय बनी हुई है, हर प्रकृति प्रेमी अब उनकी बस तारीफ कर रहा है।