सतगुरू की कृपा से नास्तिक को भी सच्चाई की शक्ति का प्रमाण मिल जाता है

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सतगुरू की कृपा से नास्तिक को भी सच्चाई की शक्ति का प्रमाण मिल जाता है
मानव मानव में जन्म भेद और वर्ण भेद का सतगुरू रविदास ने विरोध किया
प्रकृति के भीतर पहुंचकर परमाणु शक्ति को प्रसन्न करके उसे मनाने में सक्षम थे
अनूपपुर। सतगुरू रविदास की वाणी में सब जगत समता और समानता दिखाई देता है। समाज में फैली कुरीतिया आडम्बर और अंधविश्वास के लिए क्रांतिकारी सतगुरू माने जाते है। मानव मानव में किसी प्रकार के जन्म भेद और वर्ण भेद का सतगुरू रविदास ने प्रहार करते हुए विरोध किया है। इसलिए उन्होने कहा है कि हे मानव सतगुरू बिना मैल करै नहीं, मन की करो सफाई गुरू तो परमार्थी होता है जो ऐसा मार्ग बताता है कि आपस की दुश्मनी और भेदभाव न रहे। जो भी संत गुरू के वाणी को स्वीकार करके उस मार्ग में चलता है उसकी सहायता वे हर पल करते है।
गुरू मिले परमार्थाी, जिसने जुगत बताई।
गुरू मिले रविदास, हर पल करै सहाई।।
सतगुरू रविदास सूक्ष्म ज्ञानी पुरूष था, इसीलिए तो वह पानी से भी कंगन मांग किया था और गंगा स्नान करने ब्राह्राण गया था एक नारियल देकर यह कहा था कि जाओ गंगा मैया को इसे मेरे नाम से देना और कहना कि तुम्हारा संत रविदास ने भेजा है इसे स्वयं हाथ में लेने का संदेश भेजा है इसलिए हे गंगा मैया आप अपने हाथ में रविदास का संदेश को ग्रहण कर लो तो सचमुच में पानी भीतर से दो हाथ बाहर निकला और रविदास का भेजा हुआ फल स्वीकार करके एक कंगन रविदास के लिए उस ब्राह्राण को दिया जिसे लोभ लालच के कारण ब्राह्राण ने राजा को दे दिया जब राजा ने रानी को वह कंगन दिया तो रानी ने दूसरा कंगन की मांग कर डाली तो उस ब्राह्राण को राजा ने बुलवाया और दूसरे कंगन की मांग किया तो उसने कंगन गंगा से मिला है बताया तो राजा रानी ब्राह्राण को लेकर गंगा तट गए और ब्राह्राण ने फिर दूसरा कंगन की मांग किया लेकिन वह कंगन पाने में असफल हो गया फिर संतगुरू रविदास के पास गए तो संत गुरू रविदास ने सबके अनुनय विनय करने पर कुण्ड से कंगन निकालकर रानी को दे दिया इस प्रकार की चमत्कार को देखकर राजा रानी प्रमाणित होकर गुरू रविदास को गुरू स्वीकार किए। यह सतगुरू की चमत्कार नहीं थी बल्कि सूक्ष्म तत्व दर्शी तपस्वी त्यागी पुरूष का सत्य प्रमाण था।
पूर्ति प्रकृति के पंच तत्वों ने कियो
इसी शक्ति के कारण 52 राजवंशो को गंगा की असीम कृपा से शिष्य बनाया था, अर्थात सतज्ञानी तपस्वी सतगुरू सेवा के भाव से पंचतत्व प्रभावित थे। पानी पत्थर हवा अग्नि और आकाश सतगुरू को अपना प्यारा संत मानते थे इसीलिए जनसेवा के लिए रविदास गुरू ने जो भी प्रकृति से मांग किया। उसकी पूर्ति प्रकृति के पंच तत्वों ने किया, आपको सामान्य ज्ञान से यह अनोखा और आश्चर्य जरूर लगेगा कि जड़ तत्व कैसे गुरू का कहना मान लेगा लेकिन यह बिल्कुल सत्य है इसीलिए तो मूर्ति का चलकर पास आना सर्प काटे बच्चे को जल के द्वारा ही जीवनदान देना अनोखी और आश्चर्य जनक कहानी है आज विज्ञान के युग में कोई मानने को तैयार नहीं होगा जरूर टिप्पड़ी किया जायेगा। लेकिन हे संत समाज सत्य में वह असीम शक्ति है कि जिसमें जान नहीं है उसमें भी जान डालकर चलने फिरने और बोलने में प्रमाण के लिए किया जा सकता था यह सतगुरू रविदास, गुरू घासीदास के जीवन काल की कहानी में सुना जा सकता है। आदमी जब तक मानने को तैयार नही होता है जब तक उसको स्वयं उसका प्रत्यक्ष प्रमाण न हो जाय। जब सुना जाता है तो कथा कहानीयो पर वही सतगुरू की कृपा होती है तो नास्तिक आदमी को भी सच्चाई की शक्ति का प्रमाण मिल जाता है। विज्ञान में इलेक्ट्रान न्यूट्रान और प्रोट्रान तत्व होते है इलेक्ट्रान और प्रोट्रान न्यूट्रान की चक्कर लगाते रहते है यही तो परमाणु शक्ति है किसी पत्थर या रेत के कण को उस नेत्र से देखने पर कुछ भी दिखाई नहीं देता है।
सूक्ष्म वैज्ञानिक पुरूष थे
इस तथ्य को तो विज्ञानिक ही अपने सूक्ष्म यंत्र से देख पाते और समझ पाते है। मुझे तो ऐसा लगता है कि संतगुरू रविदास केवल ज्ञानी पुरूष ही नहीं थे जो समाज में फैली कुरीतियों को खुरेद कर बाहर निकाल रहें थे बल्कि वे सूक्ष्म वैज्ञानिक पुरूष थे जो प्रकृति के भीतर पहुचकर उस परमाणु शक्ति को प्रसन्न करके उससे मांगने और मनाने में सक्षम थे। सूक्ष्म गुरू में शिव, रविदास, गुरूघासीदास  को मैं मानता हूॅ इसलिए कि उनके जीवन में जो सत्य कहानी बताई जाती है वह सामाजिक बुराई ही नहीं बल्कि सूक्ष्म शक्ति से जुड़ा हुआ प्रसंग है। सिकन्दर बादशाह ने जब साधु संतो को बंदी बनाकर चक्की चलवाया था साथ में संतगुरू रविदास को भी चक्की चलवाया तो उसके राजभर के चक्की आप ही आप चलने लगे थे इसी लिए तो तुगल का बाद में संतगुरू रविदास को जहॉ वे ठहरे थे वहॉ का जमीन दान दिया था जो आज तोड़ दिए गए है। यह तो 600 वर्ष पहले की घटना है, यह तो सत्य का ही प्रमाण था।
सत का गुण उस गुरू में होना चाहिए
सतगुरू वही है सत्य को आधार मानकर चलता है, लेकिन आज झूठ लालच अहंकार लोभी को सतगुरू माना जा रहा है आज के सतगुरू जो जेल मे रहने लगे है ऐसे लोग अपने लोगो के लिए अपने चाहने वालो के लिए गुरू हो सकते हैं, लेकिन जहॉ गुरू के सामने सत जुड़ता है तो वह सतगुरू हो जाता है अर्थात सत का गुण उस गुरू में होना चाहिए। सत तो निर्विकार है, समदर्शी है अविनाशी है अजन्मा है नष्ट होने वाला नहीं है तो उस सत को गुरू में जोड़ा नहीं जाना चाहिए सतगुरू तो वही है जो सृष्टि को अपना मानता हो और किसी से किसी प्रकार का भेदभाव न करता हो वही सही मायने मे समदर्शी सतगुरू है। यह गुण संतगुरू रविदास में देखा और सुना जा सकता है उन्होने कहा है-
ऐसा चाहूं राज मैं मिलै सबन को अन्न।
छोट बड़े सब सम बसै रविदास रहे प्रसन्न।।
इस दोहे से स्पष्ट होता है कि सतगुरू रविदास सबको समान रूप  से चाहते और भेद भावना नहीं रखते है उन्होने अपने जीवन काल में एक नगर बसाया था जो आज भी उत्तर प्रदेष में है उसका नाम उसने बेगमपुरा रखा था इसका अर्थ होता है बिना किसी प्रकार के गम के स्वतंत्रता पूर्वक बिना भेदभाव के रहने वाला नगर यह उनकी कल्पना ही नहीं था बल्कि करके अपने जीवन काल में करके दिखाया था। यह सत्य प्रमाण है।
शिव है यही शिव के लिए संकेत
ठीक वैसे ही संतगुरू घासीदास ने मानव मानव एक समान कहकर समाज में कहा था और उसने भी करके दिखा दिया आज से 300 वर्ष पहले की बात है तेलासी नामक गांव में तेली लोहार और यादव रहा करते थे गुरू घासीदास ने सत्य का प्रमाण एक बच्चे को तालाब से पानी मंगाकर जीवन दान दिया था गांव के लोग इतना प्रभावित हुए कि पूरे गांव के लोग सत्य को मानने के लिए संकल्पित और समर्पित हो गए आज वह गांव तेलासी धाम के नाम से जाना जाता है माता सफूरा को जीवनदान, मरे हुए गाय को जीवनदान देकर गुरू घासीदास छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध हो गए है केवल एक ही सत्य का प्रमाण नही बल्कि अनेको उदाहरण है जिसके नाम से टूटे हुए समाज को जोडऩे का काम गुरू घासीदास ने किया था, इसीलिए सूक्ष्म ज्ञानी गुरू घासीदास को छत्तीसगढ़ का गुरू के रूप में माना और स्वीकारा जाता है इसी तरह से षिव ऐसे सतगुरू हैं जिनके पूजा पाठ में किसी प्रकार की बली नहीं दी जाती है। यह सत्य प्रमाण है कि जहां जीव है वहॉ शिव है यही शिव के लिए संकेत है। यत्र जीव, तप षिव सत्य है पत्थर की पूजा शिव के लिए नही बल्कि जीव पेड़ पौधे जहॉ जीव है वहॉ षिव की पूजा सेवा रूप में हैै। सत्य को सत्य रूप में प्रमाणित तो किया जा सकता है, लेकिन झूठ के कल्पना को सत्य रूप में प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। पुनीराम गुरूजी का संदेश पढ़कर समझने का प्रयास करें।
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