कॉलरी की स्कूल बसों में क्षमता से अधिक बच्चे

प्रबंधन को बड़े हादसे का इंतजार, परिवहन विभाग भी नहीं देता ध्यान
इन्ट्रो-सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक स्कूली बसों में इंतजाम नहीं किए गए हैं। स्कूलों की बसों में सुरक्षा के लिए ना तो फायर सिस्टम है और ना ही फस्र्ट एड बॉक्स। नियमों की परवाह किए बिना जिले में ऐसी कई बसें सडक़ों पर दौड़ रही है। जिससे बच्चों की जान जोखिम में रहती है, परिवहन विभाग को स्कूली बसों की जांच करने की फुर्सत नहीं है।
नौरोजाबाद। एसईसीएल जोहिला क्षेत्र के अंतर्गत केंद्रीय विद्यालय एवं अन्य विद्यालय के लिए नौरोजाबाद उपक्षेत्र के लिए तीन बसें आवंटित की गई है, जिन बसों में सवार होकर बच्चे अपने-अपने विद्यालय जाते हैं, इन बसों के लिए कालरी प्रबंधन ने निर्धारित रूट दिया हुआ है, जो की सभी बस मालिको के लिए वर्क आर्डर जारी किया गया है, जिसमे यह स्पष्ट लिखा है कि बसे नगर के विभिन्न वार्डो से बच्चों को लेकर गंतव्य तक जाएगी, परंतु कुछ बस मालिक अपने फायदे के लिए कम दूरी का रूट खुद ही निर्धारित कर लिए है, यहां तक कि इन बस मालिको की धौस इतनी है कि कालरी के अधिकारी इनसे डरते है।
बड़ी घटना के इंतजार में प्रबंधन
केन्द्रीय विद्यालय में लगी बस बस क्रमांक एमपी 54 टी 0254 निर्धारित रूट, बस पास को नजर अंदाज करते हुए अपने मन मुताबिक चलती है, निर्धारित संख्या से अधिक बच्चों को ठूंस कर बैठाया जाता है। बस की केबिन में 15-20 बच्चे बैठना आम बात है। सुरक्षित यातायात के नियमों एवं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करने के लिए कोई भी जिम्मेदार मौजूद नहीं है। केंद्रीय विद्यालय के समीप एक हनुमान टेक पुल है, जिसमें ओवरलोड बस होने से आए दिन अनहोनी होने का खतरा बना रहता है, इधर प्रबंधन भी घटना या दुर्घटना के बाद ही जागता है। ऐसा लगता है कि मानों प्रबंधन किसी बड़ी अनहोनी के इंतजार में बैठा है। बसों की हालात देखने के लिए कालरी प्रबंधन के अधिकारी कभी बसों का निरीक्षण नही करते।
स्कूली बसों के लिए निर्धारित मापदण्ड
विद्यालय में लगी बसों के लिए शासन ने गाइड लाईन तय की हुई है, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि बसों के आगे-पीछे स्कूल बस लिखा होना चाहिए, स्कूली बसों में फस्र्ट एड बॉक्स का होना जरूरी है, प्रत्येक बसों में आग बुझाने के उपकरण चाहिए और नहीं है तो उसे लगाना जरूरी है। अगर किसी स्कूल प्रबंधन की ओर से किसी एजेंसी से बस अनुबंध पर ली गई है तो, उस पर ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिए, बसों में सीट क्षमता से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए, प्रत्येक स्कूल बस में हॉरिजेंटल ग्रिल लगे हो, स्कूल बस पीले रंग की हो, जिसके बीच में नीले रंग की पट्टी पर स्कूल का नाम और फोन नंबर होना चाहिए, बसों के दरवाजे को अंदर से बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए, बस में सीट के नीचे बैग रखने की व्यवस्था होनी चाहिए, बसों में स्कूल के शिक्षकों का होना जरूरी है, जो बच्चों पर नजर रख सके। प्रत्येक बस चालक को कम से कम 5 साल का भारी वाहन चलाने का अनुभव हो, किसी भी ड्राइवर को रखने से पहले उसका सत्यापन कराने की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की है, एक बस में कम से कम दो चालकों का होना जरूरी है, चालक का कोई चालान नहीं होना चाहिए और न ही उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज हो।
अभिभावकों को रखना चाहिए ध्यान
स्कूल बस में अपने बच्चों को चढ़ाते वक्त अभिभावको को भी कुछ अहम बातों को ध्यान रखना चाहिए, बस खड़ी होने के बाद बच्चों को उसमें सवार करें, इसके अलावा बस ड्राइवर की हरकतों पर हमेशा नजर बनाए रखें, सबसे अहम बात यह है कि इस बात का ध्यान रखें कि कहीं ड्राइवर नशे में तो नहीं है, बस में हेल्पर के साथ स्कूल की ओर से एक जिम्मेदार शख्स की तैनाती करनी होती है, जिसकी बच्चों को बस में चढ़ाते और उतारते वक्त अहम जिम्मेदारी रहती है, अगर यह जिम्मेदार बस में नही है, तो अभिभावकों को इसकी तत्काल शिकायत स्कूल प्रबंधन से करनी चाहिए, इसके साथ ही अभिभावकों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बस के अंदर बच्चों को बैठने की जगह मिलती है या नहीं, बसें सुरक्षा मानकों का पालन कर रही हैं या नही, इसका भी ख्याल अभिभावकों को रखना चाहिए।