बड़े जालिम है ये सूदखोर: शंखनाद की होनी चाहिए गूंज

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संभागीय मुख्यालय में सूदखोरों पर कार्यवाही की दरकार

शहडोल। कोरोना काल मे जहां एक तरफ लोगो की नौकरी ,रोजगार व व्यापार पूरी तरह से प्रभावित हुआ है। तो वही दूसरी तरफ संभागीय मुख्यालय के लोगो की मजबूरियों व जरूरतों का फायदा उठाकर 7 प्रतिशत 10 प्रतिशत तक अवैध रूप से ब्याज वसूलने का कार्य जोरो पर है। इस अवैध कार्य को कुछ लोगो ने व्यापार बना लिया है। जहाँ उनके निर्धारित एजेंट व्यापारियों व मजबूरी में फंसे लोगों का पता लगा, उनको मदद के नाम पर जरूरत की रक़म दे , मूल से कई गुना अधिक मात्रा में ब्याज वसूला जा रहा है।
चोरी-छुपे दे रहे अंजाम
संभागीय मुख्यालय अवैध ब्याज के व्यापार ने अपनी जड़ें इस कदर जमा ली है कि बीते माहों में हुए शंखनाद के बाद भी इस व्यापार के शिकार अपने शोषणता की कहानी बता रहे हैं। खबर है कि ब्याज के इस अवैध व्यापार को विगत 2008 से ज्यादा पकड़ मिली है, लाखों रूपये के काले धन को इस व्यापार में लगाया गया है। जिसमें टेढ़का, ठुठुआ, अंकुर जैसे बड़े सूदखोर इस कारोबार को चोरी-छुपे अंजाम दे रहे हैं, ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी पुलिस को नहीं है, लेकिन पुलिस तक पीडि़तों के न पहुंचने के चलते इन पर खाकी हाथ नहीं डाल पा रही है।
शहर छोडऩे को मजबूर
मुख्यालय में पुलिस और प्रशासन के नाक के नीचे बड़े राजनीतिक पहुंच व प्रशासन में पकड़ रखने वाले लोगो ,अधिकारी ,व्यापारियों के अवैध पैसे को निचले स्तर पर इस कारोबार में लगाया गया है। सही समय पर कर्ज व ब्याज नहीं चुकाने पर गिरवी रखी वस्तु को बेचना , गाली गलौच करना ,मारना ,डराने का कार्य कर मानसिक रूप से शोषण किया जा रहा है। शहर में हुए कई हादसे इस से भी जुड़े हुए हैं, जहाँ गरीब ब्याज के चक्र में फंस कर खुद को नुकसान पहुंचाने या शहर छोड़ कर चले जाने में मजबूर हो गया है।
कर्मचारियों को बनाते हैं निशाना
सूदखोरों से आसानी से पैसा मिल जाता है। सो, लोग इनके चंगुल में फंस जाते हैं, मगर दूरगामी परिणाम भयंकर होते हैं। इनकी ब्याज अब तक कई परिवारों को तबाह कर चुकी है। जिले भर में पंजीकृत सूदखोर की संख्या महज आधा दर्जन है, अवैध सूदखोरों की संख्या 100 से भी ज्यादा है। मुख्यालय के सूदखोर न सिर्फ गरीब बस्तियों को टार्गेट करते हैं, बल्कि इनकी नजर तृतीय श्रेणी, चतुर्थ श्रेणी के राज्य सरकार के कर्मचारी एवं रेलवे के कर्मचारी के साथ ही मध्यवर्गीय परिवार होता है, जिससे इन्हें धमकाकर वसूली करने में आसानी हो जाती है।
कोर्ट से भी वसूली नहीं
जानकारों की माने तो प्रदेश में साहूकार अधिनियम, 1934 में संशोधन किया गया है। संशोधन के अनुसार साहूकारी के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा। यदि कोई गैर लाइसेंसी साहूकार ऋण देता है तो, ऐसे सभी ऋण प्रदेश साहूकार अधिनियम, 1934 में प्रस्तावित नए प्रावधानों के अनुसार शून्यवत समझे जाएंगे। किसी भी न्यायालय के माध्यम से ऐसे कर्जे की वसूली भी नहीं की जा सकेगी। सूत्रों की माने तो शहर के बदमाश सूदखोरी का धंधा चला रहे हैं या सूदखोरों को इनका संरक्षण है। गुंडा तत्वों के डर से सूदखोरों का शिकार व्यक्ति पुलिस तक नहीं पहुंच पाता।
इनका कहना है…
सूदखोरों के खिलाफ कार्यवाही के लिए हम तत्पर हैं, शिकायत मिलने के बाद तत्काल कार्यवाही की जायेगी।
रत्नांबर शुक्ला
कोतवाली प्रभारी
शहडोल

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