मध्यभारत में फिर प्यार का पैगाम लेकर आए परदेशी परिंदे
जिले मे प्रवासी
पक्षियों की आमद
उदयांचल के फिरोजी बाना ओढते और अस्तांचल मे श्वेत रंग की आभा उभरते ही जलस्त्रोतो और जिले के घने जंगल रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षियों के कलरव से गूंज उठते है। हिमालय और साइबेरिया से हजारों मील की यात्रा कर खूबसूरत मेहमान परिंदे इन दिनों जिले के जंगलों मे डेरा डाल चुके है। इन पक्षियों की आमद से वनों की प्राकृतिक सुंदरता दमक उठी है। इंसान की बनाई सरहदों को लांघ कर भारत पहुंचने वाले ये पक्षी बाधाओं की परवाह किए बगैर सतत आगे बढते रहने की प्रेरणा देते है। इनके लिए कोई बेगाना नही सारा जहां अपना है। झुण्ड के झुण्ड आने वाले ये परिंदे बेजुबान होते हुए भी एक दूसरे का दर्द बाखूबी समझते हैं परंतु इंसानो ंमे ऐसी बात कहा ?
(अशोक गर्ग)
उमरिया।भारत मे ऋतुओं के साथ होने वाले परिवर्तन को लोक विज्ञान मे उंचा स्थान प्राप्त है। कांस के फूलने को वर्षां ऋतु के अवसान का संकेत माना जाता है ठीक उसी तरह भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों के बिना सर्दियों की कल्पना नही की जा सकती। यह अलग बात है कि आज की भाग-दौड भरी व्यस्तम जिंदगी मे हमारे पास पक्षियों के लिए समय न हो परंतु इनके क्रियाकलाप अत्यंत रोचक, रहस्मय और प्रेरणादायी होते हैं। यदि इसकी व्याख्या की किसी विषेषज्ञ से कराई जाए तो ये हम इंसानों से कहीं बेहतर और निष्कपट मिलेंगे। बगैर देरी, बगैर कोताही हर साल हजारों मील साइबेरिया से भारत का सफर तय करने वाले ये पक्षी घोसला बनाते है, गृहस्थाी बसाते है, अंडे देते है, बच्चों को बडा करते है और उत्तर तथा मध्य भारत की झुलसा देने वाली गर्मियां शुरू होने पहले विदा हो जाते है।
पक्षी प्रेमी और उनकी जीवन शैली के जानकार ऋषि भट्ट कहते है कि प्रवासी पक्षी दो प्रकार के होते है एक स्थानीय प्रवासी पक्षी और दूसरे मेहमान प्रवासी।स्थानीय प्रवासी पक्षी जो हिमालय जैसे भारत के सर्द मौसम वाले इलाकों से उडकर अपेक्षाकृत गर्म प्रदेषों मे चले जाते है। दूसरे प्रकार के प्रवासी पक्षी सुदूर उत्तर स्थित साइबेरिया से आते है जो अधिकांष उत्तर और मध्य भारत के घने जंगलों मे डेरा डालते हैं। जिले के प्रसिद्व बांधवगढ और घुनघुटी के जंगलों मे ये पक्षी अपनी आमद दे चुके हैं, जिन्हे सुबह और शाम जलाषयों के नजदीक देखा जा सकता है। वनों की मनोरम हरीतिमा, पक्षियों का कलरव और नदियों का कलकल राग मानों प्रकृति इन दिनों अपने पूर्ण यौवन का प्राप्त हो गई हो।
सच्चा प्रेमी होती है चंचल चितवन वाला खंजन
प्रेम या इष्क के नाम पर फरेब अब भले ही इंसान की फितरत बन गई हो परंतु पक्षी कभी बेवफा नही होते और महबूब के नाम पर सब कुछ लुटा देेते है। साथी के वियोग मे सारस के प्राण त्याग देने का उल्लेख तो शास्त्रो मे मिलता ही है। दुनिया का सबसे बडा और अद्भुत कलावंत नर बया पक्षी तब तक घोसले बनाता है जब तक मादा को वह घोसला पसंद नही आ जाता। कजरारे चंचल नयनों वाले खंजन की दीवानगी भी किसी से कम नही। रह-रहकर सुरीली तान छेडने वाला खंजन तब तक गाता है जब तक प्रेयसी प्रेमातुर होकर उसका अनुग्रह स्वीकार नही कर लेती है। भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों मे शायद खंजन ही सबसे लोकप्रिय पक्षी है। खंजन इतना सुदर्षी होता है मानो प्रकृति देवी ने फुरसत से इसका श्रृंगार किया हो। चंचल चितवन वाले खंजन के कजरारे नयनों की उपमा से हिंदी साहित्य अटा पडा है। रामचरित मानस मे गोस्वामी जी कहते है- “ जानि शरद ऋतु खंजन आए, पाई समय जिमि सुकृत सुहाए।” जबकि मैथली शरण गुप्त के महाकाव्य साकेत मे उर्मिला आयोध्या मे आए खंजनों को देखकर कहती है- “ निरख सखी ये खंजन आए, उन मेेरै रंजन मे नयन इधर मन भाए।” बादलों ने आसमान को अलविदा कह दिया है, जलाषयों का जल ठहर गया है, कुमुदनी, कमल खिलने लगे है, खेत-खलिहानों और घाटों मे खंजन इठलाने लगे है। खंजन को जलाषयों का वातावरण बहुत भाता हैं। बेहद शर्मीले खंजन को यहां दुम उपर नीचे करते देखा जा सकता है जो इंसानों की आहट पाते ही फुर्र हो जाता है। भारत आकर खंजन
प्रजनन करते है बच्चे पालते है और मई जून के पहले इनका जोडा हम सबकों प्रेम और प्रीत की रीत सिखाकर हिमालय की ओर उड जाता है।
गरजती है बदूंके, चलते है तीर
सर्दियो के सबाव पर आते ही झील, नदिया, ताल-तलैया प्रवासी पक्षियों के कलरव से गुलजार हो जाते है। प्रकृति की अद्वभुत और अनुपम देन ये मेहमान परिंदे न केवल हमारे आकर्षण का केंद्र बल्कि किसानों और पर्यावरण के मित्र भी होते है। बेहद भावुक, शर्मीले और निष्कपट होने के बावजूद ये इंसानों की कू्रर कुदृष्टि से नही बच पाते। प्रवासी पक्षियांे पर कहीं बंदुके गरजती है तो कही चिडिमारांे के तीरे इनका सीना बेध देते है। भारत आने वाले कई प्रवासी पक्षी अपने वतन नही लौट पाते। मनुष्य की निर्मम और अमानवीय हरकत से कई पक्षियों का परिवार बिखर जाता है तो कई विरह मे विहवल होकर दम तोड देते हैं। संुदर-सलोने नन्हे पक्षियों की जान मांस भक्षियों के स्वाद और मुंह का निवाला बन जाती है तो कई जादू टोटके की भेंट चढ जाते हैं। यद्यपि वन और पर्यावरण विभाग इस पर नियंत्रण के दावे करते है परंतु अब तब ये अप्रभावी और कमतर ही साबित हुए है।
घट रही प्रवासी पक्षियों की संख्या
पक्षियों के संरक्षण के प्रति प्रयत्नषील पक्षी प्रेमी और उनकी जीवन शैली के जानकर ऋषि भट्ट कहते है कि जिले मे साल दर साल प्रवासी पक्षियों की आमद घटती जा रही है। बिगडते पर्यावरण, घटते वन और जलस्त्रोतों के नजदीक इंसानी बसाहट के कारण पक्षियों को रहबसर का उपयुक्त वातावरण नही मिल रहा है। ऐसे मे संवेदनषील और शर्मीले स्वाभाव के पक्षी अब नजर नही आ रहे है। उन्होने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पर्यावरण के असंतुलन और विकरण के कारण पक्षियों की कई बेहद खूबसूरत और दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है।
मारे नही प्यार दे…….
पक्षियों की दुनिया अत्यंत रोचक और रहस्यमी है। पक्षी प्रकृति प्रदत बेहद खूबसूरत जीवी की श्रेणी मे आते है। बेजुबान होते हुए भी ये अत्यंत भावुक होते है जो प्रेम, संवेदना और कू्ररता के अंतर को समझ सकते हैं। पक्षियों के साथ मानव के रिष्तों का उल्लेख प्राचीनतम ग्रंथो मे भी मिलता हैं। इनकी कहानियां हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। महाभारत, रामायण और ऋग्वेद की ऋचाओं मे पक्षियों का अद्भुत और रोचक चित्रण मिलता है। ये बेजुबान हमारे अतिथि है इन्हे मारे नही, प्यार दे, हमारी परंपरा भी तो है अतिथि देवो भवः।