1857 की कांति में रणभूमि में शहीद विध्यं का इकलौता राज्यनायक

सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पंडित रणजीत राय दीक्षित ने अभूतपूर्व योगदान देकर अपना नाम इतिहास में अमिट कर गये जब 1857 की कांति का बिगुल बजा तो बिहार के कुॲर सिंह आजादी का अलख जगाने के लिये रीवा की ओर कूच किये और सोहागी कटरा के रास्ते अगस्त 1857 में अपनी 5000 हजार के फौज के साथ डभौरा पहुँचे जहॉ पंडित रणजीत राय और डभौरा की आमजनता ने इनका भव्य स्वागत किया कुॲर सिंह अपनी सेना के साथ डभौरा दुर्ग में 03 दिवस रूके इसके उपरांत वह बांदा की ओर चले गये। डभौरा रीवा-सतना-बांदा व इलाहाबाद के मध्य में होने से कांतिकारियों का रणनीतिक गढ़ बन गया साथ ही डभौरा का घनघोर जंगल क्रांतिकारियों के छिपाव के लिये उपयुक्त भी था। पंडित रणजीत राय ने डभौरा की एक बडी सैन्य टुकड़ी कुउर सिंह के सहायता के लिये उनके साथ भेजी थी अप्रैल 1858 में ठाकुर रणमत सिंह व श्याम शाह अंग्रेजो से छिपते हुये डभौरा की गढ़ी में आ गये और चित्रकूट में अंग्रेजी जनरल व्हाइटलॉक के आक्रमण के बाद जून 1858 में तिरौहा के दीवान राधा गोविन्द अवस्थी अपनी सेना के साथ डभौरा दुर्ग में शरण ली अंग्रेजो की एक पेटॉलिग पार्टी जो कि डभौरा से गुजर रही थी और डभौरा में सैन्य गतिविधि का पता लगाने का प्रयास कर रही थी उसे रणजीत राय दीक्षित के सैन्य टुकडी द्वारा मार दिया गया जब यह खबर अंग्रेजो को प्राप्त हुई तो उन्होने मानिकपुर इलाहाबाद एवं रीवा की अंग्रेजी सेना को डभौरा पर आक्रमण करने का आदेश दिया अंग्रेजी सेना का नेत्रत्व कर्नल बेरिंग कर रहा था जबकि रीवा की बटालियन का नेत्रत्वकर्ता कैप्टन आसवर्न था यह युध्द अगस्त 1858 में डभौरा के पास मुरकटा के मैदान में लड़ा गया युध्द के दौरान कांतिकारी सेना का नेत्रत्व पंडित रणजीत राय दीक्षित कर रहे थे और भीषण युध्द में पंडित रणजीत राय दीक्षित अपने 02 पुत्र और नाती शत्रुजीत राय दीक्षित व डभौरा की सेना के साथ मातृभूमि की रक्षा के लिये शहीद हो गये अंग्रेजो ने तोप लगाकर उनके डभौरा स्थित दोनो दुर्ग को जमीदोंज कर दिया। जिसके अवशेष आज भी डभौरा में स्थित हैं।
आजादी के 77 वर्ष उपरांत आज भी यह क्रांति नायक उपेक्षा का शिकार रहे और उनके जन्मस्थली या विध्यं क्षेत्र में उनके नाम पर न कोई स्मारक शासकीय भवन या चौक-चौराहों का नामकरण तक न हो सका जबकि विध्यं के इस लाल ने अपने प्राणों सहित अपना सर्वस्य मातृभूमि के लिये अर्पित कर दिया।